योग की मदद से शरीर को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है। इसकी अलग अलग मुद्राओं से ब्रीदिंग, बेंडिंग और स्ट्रेचिंग पर ध्यान केंद्रित किया जाता हैं। योग के इन्हीं रूपों में से एक है कुंडलिनी योग, जिसमें न सिर्फ स्ट्रेचिंग और ब्रीदिंग शामिल हैं बल्कि मेंडिटेशन को भी सम्मिलित किया जाता है। इस योगासन की मदद से फिजिकल हेल्थ की अपेक्षा सेल्फ अवेयरनेस और आध्यात्मिक जागृति पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। ये एक ऐसा अभ्यास है जो तन और मन के साथ.साथ आत्मा को भी जागृत करने में मदद करता है। चाहे आप योगी हो या एक आम इंसान इस योग मुद्रा के माध्यम से आपके शरीर को कई प्रकार के फायदे मिलते हैं। जानते हैं कुंडलिनी योग क्या है और किस प्रकार से है ये स्वास्थ्य के लिए कारगर (Kundalini yoga mudra in hindi)।
योग में कुंडलिनी का मतलब जीवन शक्ति से है, जिसमें रीढ़ की हड्डी पर को एक कुंडलित नाग की तरह माना जाता है। अलग अलग मुद्राओं से होता हुआ, जो शीर्ष तक पहुंचता है। हॉलिस्टिक हेल्थ गुरू गुरु डॉ मिकी मेहता कहते हैं कि योग का यह रूप आध्यात्मिकता और शरीर के ऊर्जा केंद्रों या चक्रों पर पूरी तरह से आधारित है। ये योग प्राणायाम, ध्यान और जप को मिलाकर तैयार हुआ है। इस योग मुद्रा का लक्ष्य आत्म.जागरूकता और चेतना के स्तर को बढ़ाना है।
यदि आप कुंडलिनी योग का प्रयास करना चाहते हैं तो नीचे बताई गई मुद्राओं का अभ्यास करें
सत क्रिया कुंडलिनी योग के मूलभूत आसनों में से एक है। इसमें ध्यान मुद्रा में बैठकर और अपने पेट को अंदर की ओर खींचें और मंत्र का जाप करें। एक्सपर्ट के अनुसार ये आसन नर्वस सिस्टम को संतुलित करता है और कुंडलिनी एनर्जी के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है।
इस योग मुद्रा में स्ट्रेंथ और फोकस से बाजूओं का बैलेंस मेंटेन रखना होता है। हथेलियों पर पूरे शरीर के वज़न को नियंत्रित करने वाले इस योग के दौरान मंत्र का जाप करें। इससे न केवल एकाग्रता बढ़ती है बल्कि डिवाइन पावर से जोड़ने में भी मददगार साबित होता है।
कुंडलिनी योग के दौरान सुखासन और पद्मासन जैसी ध्यान मुद्राओं पर अधिक जोर दिया जाता है। इस प्रकार से ध्यान के अनुभव को गहरा करने और ऊर्जाओं को एकत्रित करने के लिए मंत्रोच्चारण कर सकते हैं। शारीरिक क्षमता के अनुसार ध्यान मुद्रा में बैठें।
सबसे पहले वज्रासन में बैठें और गहरी सांस लें। अपने हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और धीरे.धीरे सांस छोड़ें। घुटनों के बल जमीन पर बैठने के बार शरीर को कमर से आगे की ओर झुकाएं और माथे को जमीन पर लगाएं। गहरी सांस लें और मंत्रों का उच्चारण करें। इस सौम्य विश्राम मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर में आत्म नियंत्रण और संयम बढ़ने लगता है।
इस बारे में डॉ मेहता कहते हैं कि कुंडलिनी योग में सांस पर नियंत्रण पाने की तकनीक शामिल है। इसकी मदद से शरीर में पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम को संतुलित करने में मदद मिलती है। इस संतुलन से फोकस बढ़ने लगता है और इमोश्नल हेल्थ भी बूस्ट होती है।
कुंडलिनी योग से शरीर में लचीलापन, ताकत और स्ट्रेंथ बढ़ने लगती है। इससे मांसपेशियों की मज़बूती बढ़ती है और शरीर में रक्त का प्रवाह नियमित होने लगता है। शरीर को फिट और एक्टिव रखने के लिए इसका नियमित अभ्यास फायदेमंद साबित होता है।
कुंडलिनी योग में अक्सर ध्यान और कुछ चुनिंदा आसन शामिल होते हैं, जिससे इमोशनल हेल्थ बूस्ट होती है। इसे निरंतर करने से मन में उठने वाले विचार अपने आप मन से मुक्त होने लगते है और दिमाग को सुकून और शांति की प्राप्ति होती है। इससे मन को भ्रमित करने वाले विचारों से मुक्ति मिल जाती है।
कुंडलिनी ऊर्जा का विकास होने से मन में अंतर्ज्ञान यानि इंटयूशन पावर और रचनात्मकता बढ़ने लगती है। इसके नियमित अभ्यास से अजना चक्र यानि तीसरी आंख को एक्टीवेट किया जा सकता हैए। मिलताडॉ मेहता के अनुसार इससे स्पष्टता, अंतर्दृष्टि और क्रिएटीविटी को बढ़ावा मिलता हैं।
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