उम्र बढ़ने के साथ शरीर कई प्रकार के बदलावों से गुजरता है। महिलाओं में खासकर मेनोपॉज के बाद हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। मसल्स घटने की प्रक्रिया तेज होने से शरीर में फैट बढ़ने लगता है। दूसरी ओर, नींद की कमी और मूड स्विंग की शिकायत आम हो जाती है। ऐसी तमाम समस्याओं का एक कारगर समाधान है स्ट्रेंथ ट्रेनिंग ( strength training for fitness), जो मसल्स और हड्डियों के घनत्व यानी बोन डेंसिटी को होने वाले नुकसान को रोकता है। आप अच्छी नींद ले पाती हैं।
हड्डियों के रोग ऑस्टियोपोरोसिस को ‘साइलेंट थीफ’ भी कहते हैं, जो बढ़ती उम्र के साथ गंभीर होती जाती है। इंटरनेशनल ऑस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन के अनुसार, विश्व में प्रत्येक तीन में से एक महिला इसकी गिरफ्त में है। भारत में करीब 61 मिलियन लोग इससे ग्रसित हैं, जिनमें 80 फीसदी महिलाएं हैं।
बीते दो दशक में लाइफस्टाइल में आए बदलाव के कारण ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या और विकराल हो गई है। डॉक्टरों के अनुसार, इससे बचाव का एकमात्र उपाय है एक्सरसाइज एवं बैलेंस्ड डाइट। एक्सरसाइज में स्ट्रेंथ ट्रेनिंग सबसे अधिक कारगर मानी जाती है।
विभिन्न अध्ययनों से भी यह साबित हुआ है कि स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करने से महिलाओं की बोन डेनसिटी में अपेक्षाकृत काफी सुधार आता है। उनकी कनेक्टिव टिशू स्ट्रेंथ बढ़ती है और ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग से मसल्स का निर्माण होता है और फैट बर्न होते हैं। साथ ही इस्ट्रोजेन, प्रोजेस्ट्रोन एवं टेस्टोस्टेरॉन जैसे हॉरमोन्स के लेवल में भी सुधार आता है।
यह एक प्रकार की फिजिकल एक्टिविटी है जिससे मसल्स को मजबूत बनाया जा सकता है। इसे रेजिजटेंस ट्रेनिंग भी कहते हैं जिसमें डंबबेल, वेट मशीन, इलास्टिक बैंड्स अथवा शरीर के वजन से कसरत की जाती है। रनिंग, स्वीमिंग, जुंबा, साइक्लिंग एवं अन्य एरोबिक एक्सरसाइजेज से ये बिल्कुल अलग होती है।
जैसे-जैसे समय बदल रहा है। भ्रांतियां दूर हो रही हैं। महिलाएं अपनी फिटनेस को लेकर जागरूक हो रही हैं। वैसे ही उनमें नए फिटनेस मेथड्स को अपनाने का चलन बढ़ रहा है। स्ट्रेंथ ट्रेनिंग उनमें से एक है। आखिर इसके फायदे जो कमाल के हैं।
एक्सपर्ट्स के अनुसार, इसे करने से मसल्स की स्ट्रेंथ, आकार एवं शक्ति बढ़ती है। शरीर में लचीलापन आता है। मेटाबॉलिज्म में सुधार आता है। टाइप 2 डायबिटीज एवं कार्डियोवास्कुलर रोगों का खतरा कम होता है। शारीरिक समस्याओं से निजात मिलने के अलावा मानसिक तनाव भी कम होता है। व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास पैदा होता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने महिलाओं के लिए कुछ विशेष स्ट्रेंथ ट्रेनिंग एक्सरसाइज की सिफारिश की है।
इस एक्सरसाइज में एक साथ कई मसल समूहों पर काम किया जाता है, जैसे क्वाड्रिसेप्स, ग्लूट्स, हैमस्ट्रिंग आदि। इससे शरीर का निचला हिस्सा, पैर एवं हिप्स के मसल्स मजबूत होते हैं। 10 मिनट स्कैवाट करने से बॉडी की एक्स्ट्रा फैट बर्न होती है।
हिप्स एवं पेट के फैट से छुटकारा पाने में ग्लूट ब्रिज एक्सरसाइज (strength training for fitness) काफी कारगर है। यह एक्सरसाइज हिप्स की मसल्स को एक्टिव करती है। इससे हिप्स में तनाव महसूस नहीं होता है। जो पूरा दिन ऑफिस में डेस्क के पीछे काम करते हैं, उनका लंबे समय तक बैठे रहने से ग्लूट मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। हैमस्ट्रिंग में अकड़न आ जाती है। वे इस एक्सरसाइज के जरिये उन प्रॉब्लम्स से छुटकारा पा सकते हैं।
यह एक मूड बूस्टर एक्सरसाइज माना जाता है। इससे स्टिफ मसल्स ठीक हो जाती हैं। उनका स्ट्रेस कम हो जाता है। इससे मसल्स और शरीर तो मजबूत बनते ही हैं। साथ में फ्लेक्सिबिलिटी भी आती है बॉडी में। पेट की मांसपेशियां एक्टिव होने से बेली फैट कम होता है।
वजन बढ़ने से होने वाली समस्याओं से सतर्क रहने के लिए
बीएमआई चेक करेंयह फुलबॉडी वर्कआउट (strength training for fitness) है। इससे पीठ में मजबूती आती है। बॉडी फ्लेक्सिबल बनती है। कैलोरी बर्न करने में भी यह काफी फायदेमंद है। क्रॉलिंग को एक बेहतरीन कार्डियोवास्कुलर एक्सरसाइज भी माना जाता है।
यह स्ट्रेंथ एक्सरसाइज बॉडी के निचले हिस्से के मसल्स पर अच्छे (strength training for fitness) से काम करता है, जिसमें हैमस्ट्रिंग्स, ग्लूट्स एवं क्वाड्रिसेप्स शामिल हैं।
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