पीसीओडी

UPDATED ON: 13 Sep 2023, 18:47 PM
मेडिकली रिव्यूड

पीसीओडी यानि पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिज़ीज़, हार्मोनल असंतुलन और जेनेटिक प्रभाव के कारण शरीर में बढ़ने लगती है। आमतौर पर एक हेल्दी पीरियड साइकिल के चलते दोनों ओवरीज़ हर महीने फर्टिलाइज़ड एग्स को रिलीज करती हैं। अगर कोई महिला पीसीओडी से ग्रस्त है, तो वो केवल इममेच्योर या फिर आंशिक रूप से फर्टिलाइज़्ड अंडे रिलीज़ करती है, जो सिस्ट में चले जाते हैं। इससे न केवल ओवरीज़ में स्वैलिंग आने लगती है, बल्कि ओवरीज़ का साइज़ भी बढ़ने लगता है। 

यूं तो आवरीज़ सीमित मात्रा में मेल होर्मोन एण्ड्रोजन को प्रोड्यूस करती हैं। मगर पीसीओडी की स्थिति में आपके शरीर में एण्ड्रोजन की मात्रा बढ़ने लगती है। इसके चलते आपको हेयरलॉस, वेटगेन और अनियमित पीरियड साइकिल का सामना करना पड़ता है। इसकी रोकथाम के लिए लाइफस्टाइल में कुछ सामान्य बदलाव लाना और स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श करना जरूरी है।

PCOD painful aur irregular period se judi samasya hai
पीसीओडी दर्दनाक और अनियमित पीरियड से जुड़ी समस्या है। चित्र : शटरस्टॉक

पीसीओएस

पीसीओएस एक ऐसा बॉडी डिसऑर्डर है, जिसमें महिलाओं की बॉडी में मेल हार्मोन अत्यधिक मात्रा में बढ़ने लगता है। इससे बॉडी में एग रिलीज़ होने बंद हो जाते हैं। इसके चलते शरीर को मोटापा, और हेयरफॉल की समस्या से जूझना पड़ता है। 

पीसीओएस सोसायटी ऑफ इंडिया की मानें, तो भारत में हर पांचवी महिला इस समस्या की शिकार है। ऐसे बहुत से मामले देखने को मिलते हैं, जिसमें महिलाएं लंबे वक्त तक अपनी इस कंडीशन से अनजान रहती हैं। उन्हें इस बारे में उस वक्त पता चलता है जब वे शादी के कई सालों बाद भी प्रेगनेंट नहीं हो पाती। डॉक्टरी जांच के दौरान वे इस समस्या के बारे जान पाती हैं।

पीसीओडी

पीसीओडी महिलाओं को होने वाली एक ऐसी समस्या है, जो हार्मोन में असंतुलन के कारण महिलाओं को प्रभावित करती है। इसके चलते महिलाओं को प्रेगनेंसी संबधी समस्याओं से जूझना पड़ता है। इस समस्या में बॉडी कम मैच्योर एग्स को प्रोडयूस करती है। जो आगे चलकर सिस्ट में बदल जाते हैं। 

पीसीओडी : कारण

हर पल तनाव में रहना।
लाइफ स्टाइल का इंबैलेंस होना
उचित खानपान का न होना
दिन भर में कोई फिजिकल एक्टिविटी न करना
स्मोंकिग और अल्कोहल इनटेक बढ़ाना
तेज़ी से वेटगेन करना
रात को देर तक जागते रहना।

पीसीओडी : महत्वपूर्ण तथ्य

अमूमन देखा जाता है

ये एक ऐसा डिसऑर्डर है, जो आमतौर पर युवतियों में देखने को मिलता है। पीसीओडी का संबध प्रेगनेंसी न होने से जुड़ा हुआ है। पहली पीरियड साइकिल के साथ ही बहुत सी युवतियों को इस समस्या से होकर गुज़रना पड़ता है। इसके चलते उन्हें मोटापा और चेहरे पर अनचाहे बाल नज़र आने लगते हैं। इसके अलावा मुहांसों की समस्या भी इसका एक लक्षण है। किसी भी प्रकार की समस्या से बचने के लिए डॉक्टरी संपर्क आवश्यक है।

प्रमुख लक्षण

शरीर में वज़न का बढ़ना
मुहांसों का निकलना
प्रेगनेंसी में दिक्कतें
मेटाबोलिक डिजीज़

उपचार

पीसीओडी के जोखिम को कम करने के लिए कुछ खास बातों का ख्याल रखना ज़रूरी है। इसके चलते अपने रूटीन में एक्सरसाइज और योग को कुछ देर के लिए ज़रूर शामिल करें। इसके अलावा खान पान की आदतों को नियमित करना ज़रूरी है। हेल्दी डाइट लेने से आपका शरीर कई प्रकार की स्वास्थ्य संबधी समस्याओं से बचा रहता है। इसके अलावा अल्कोहल, स्मोकिंग और अन्य नशीले पदार्थों से दूरी बनाकर रखें। इसका शरीर पर कुप्रभाव दिखने लगता है। खुद को कोलेस्टेरोल से बचाने के लिए खाने में गुड फैट्स और सीमित मात्रा में कार्बोहाइड्रेट का सेवन करना ज़रूरी है।

पीसीओडी : लक्षण

पीरियड साइकिल का गड़बड़ाना 

पीसीओडी के चलते महिलाओं की पीरियड साइकिल अनियमित होने लगती है। इसके चलते महिलाओं में ऑलिगोमेनोरिया जैसी समस्या बढ़ने लगती है। इसके तहत महिलाओं को सालभर में 9 बार या उससे कम पीरियड आते हैं। इसके अलावा महिलाओं को एमेनोरिया का भी सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में कुछ महिलाओं को कभी कभार कई महीनों तक लगातार पीरियड नहीं आते है। 

इनफर्टिलिटी 

इसके चलते शरीर में ओव्युलेशन नहीं हो पाता है। इससे गर्भवती होने की संभावना धीरे-धीरे कम होने लगती है। इसके चलते शरीर में इनफर्टिलिटी की समस्या पैदा होने लगती है।

चेहरे पर अनचाहे बालों का बढ़ना 

शरीर में इसका स्तर बढ़ने से चहरे पर मुहांसे और अनचाहे बाल नज़र आने लगते हैं। इसके चलते आपके गालो, चिन और शरीर के विभिन्न हिस्सों में बाल बढ़ने लगते हैं। इसके अलावा कुछ लोगों को बाल पतले होने की समस्या से भी जूझना पड़ता है। हार्मोनल असंतुलन के चलते शरीर में कई प्रकार के बदलाव महसूस होने लगते हैं।  

मेटाबोलिक डिसऑर्डर और वजन बढ़ना 

पीसीओडी के चलते महिलाओं के शरीर में होमोसिस्टीन का स्तर बढ़ने लगता है। इसके चलते महिलाओं को मोटापे का शिकार होना पड़ता है। इसमें महिलाओं का वज़न अक्सर बढ़ जाता है।

पीसीओडी : निदान

इसके लिए पैल्विक जांच की जाती है। लक्षणों के बढ़ने के कारण जेनिटल्स की जांच बेहद ज़रूरी है।

ब्लड सैंपल्स के ज़रिए शरीर में हार्मोंन के लेवल की जांच की जाती है। इसके अलावा कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर भी जांचे जाते हैं।

शरीर में अल्ट्रासाउंड के ज़रिए ओवरी की लाइनिंग की थिकनेस को जांचा जाता है। इससे ओवरीज़ को पूरी तरह से टेस्ट किया जाता हैं। इसके अलावा जरूरत पड़ने पर आपकी डॉक्टर आपको ट्यूब टेस्ट करवाने की भी सलाह दे सकती हैं।

पीसीओडी : उपचार

शरीर में होर्मोनल संतुलन के साथ पीसीओडी का इलाज किया जा सकता है। इसके लिए जीवनशैली में सुधार की आवश्यकता होती है। इस दिशा में पहला कदम है समय-समय पर डॉक्टरी जांच करवाना। दरअसल, पीरियड साइकिल समय पर न होने पर दवाएं दी जाती हैं, जिससे होर्मोनल असंतुलन को रोका जाता है। समय पर दवाएं खाएं और ज़रूरी व्यायाम करें।

इसके अलावा डॉक्टर आपको पीरियड नियमित करने के लिए प्रोजेस्टिन हार्मोन मेडिसिन की सलाइ दे सकते हैं। साथ ही मेटफॉर्मिन भी इस समस्या को सुलझाने में मदद करता है। इससे शरीर में इंसुलिन का स्तर नियमित रहता है और टाइप 2 डायबिटीज़ के जोखिम से भी राहत मिल जाती है। अपने आप कोई उपचार करने की कोशिश न करें। केवल डॉक्टरी सलाह से ही दवाओं का सेवन करें।

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पीसीओडी : संबंधित प्रश्न

पीसीओएस और पीसीओडी में क्या है अंतर

पीसीओएस एक मेटाबोलिक विकार है। ऐसे में शरीर के अंदर मेल हार्मोन उच्च स्तर पर प्रोडयूस होने लगते हैं। इसका असर ओव्यूलेशन पर दिखने लगता है। जो इनफर्टिलिटी का कारण बन जाता है। दूसरी ओर अनियमित जीवनशैली के चलते शरीर पीसीओडी की समस्या से ग्रस्त हो जाता है। इसमें ओवरीज़ एग्स प्रोड्यूस करती हैं। मगर वो एग्स सिस्ट में तब्दील हो जाते हैं। दरअसल, ये समस्या ओव्यूलेशन से जुड़ी हुई है।

क्या पीसीओडी से ग्रस्त होने पर भी प्रेगनेंसी हो सकती है?

वे महिलाएं जो इस रोग से ग्रस्त हैं, वे प्रेगनेंट हो सकती हैं। मगर इस स्थिति में उनका शरीर कई दिक्कतों से होकर गुज़रता है। दरअसल, गलत खानपान के कारण शुरू होने वाली इस समस्या में ओवरीज में एग्स पूरी तरह से बन नहीं पाते हैं। न केवल उनकी गुणवत्ता बल्कि आकार में भी अंतर दिखने लगता है। इसलिए जरूरी है कि प्रेगनेंसी प्लान करने से पहले स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श करें।

पीसीओडी से ग्रस्त महिलाओं को कौन से फल खाने चाहिए

इस समस्या का कोई स्थायी इलाज नहीं है। न ही कोई ऐसा फल है जो तुरंत इसका उपचार कर सके। अगर आप इस समस्या सेमुक्ति पाना चाहती हैं, तो सही डाइट और लाइफस्टाइल का पालन करें। इसके लिए स्ट्रॉबेरी, सेब, चेरी, ब्लूबेरी और ब्लैकबेरी को अपनी डेली डाइट में शामिल करना चाहिए।