लिवर सिरोसिस लिवर में खराबी आने की वह स्थिति है, जिसमें लिवर पूर्ण रूप से कार्य नहीं कर पाता है और धीरे धीरे क्षतिग्रस्त होने लगता है। इससे अन्य शारीरिक अंगों पर उसका प्रभाव नज़र आने लगता है। शीघ्र इलाज न करवाए जाने पर सिरोसिस यानि एक घाव विकसित होने लगता है, जो गंभीर जटिलताओं का कारण बनने लगता है। हेपेटाइटिस या लगातार बहुत ज्यादा मात्रा में शराब पीने से यह रोग तीव्रता से बढ़ने लगता है और गंभीर हो जाता है।
1980 के बाद से ही भारत में लिवर संबंधी रोगों में लगातार वृद्धि हो रही है। दुनिया भर में होने वाले इन रोगों का 18 प्रतिशत से ज्यादा भार भारत में ही है। उपचार सुविधाओं की कमी और सही रिसर्च न हो पाने की स्थिति में यह माना जा सकता है कि आंकड़ें और भी ज्यादा हो सकते हैं। इनमें भी फैटी लिवर डिजीज की बढ़ोतरी लिवर सिरोसिस के जोखिम को बढ़ा रही है। यह ऐसा घातक रोग है जिसका पता बहुत देर से चलता है।
वास्तव में लिवर शरीर में बनने वाले टॉक्सिक पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। मगर लिवर सिरोसिस होने पर यह डैमेज होने लगता है और ब्लड प्यूरिफाई करने और पोषक तत्वों का निर्माण करने में असमर्थ हो जाता है। सिरोसिस के कारण लिवर डैमेज की समस्या को ठीक करना संभव नहीं हो पाता है। अगर समय रहते यानी अर्ली स्टेज पर इस समस्या को जान लिया जाए, तो कुछ मामलों में यह समस्या रिवर्स हो पाती है।
नियमित तौर पर अल्कोहल समेत अन्य विषाक्त पदार्थों का सेवन करने से उसका असर लिवर पर पड़ने लगता है, जो सिरोसिस की समस्या का मुख्य कारण साबित होता है। शराब का रोजाना सेवन करने से लिवर के सेल्स डैमेज होने लगते हैं। इससे उस व्यक्ति में लिवर सिरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।
वे लोग जो ओवरवेट हैं, उनमें भी सिरोसिस की समस्या के पनपने का खतरा बढ़ जाता है।दरअसल, नॉन अल्कोहलिक फैटी एसिड और नॉन अल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस भी इस रोग की संभावना को बढ़ा देते हैं।
हर वह व्यक्ति जिसे क्रोनिक हेपेटाइटिस हुआ हो, वह जरूरी नहीं कि सिरोसिस की चपेट में आए। मगर इसके कारण लिवर के डैमेज होने का जोखिम बढ़ जाता है।
कुछ दवाएं जैसे अल्फामेथिलडोपा, एमियोडेरोन, मेथोट्रेक्सेट, आइसोनियाज़िड या कुछ अन्य विषाक्त पदार्थ लिवर की समस्या का कारण बनने लगते हैं।
ऑटोइम्यून संक्रमण लिवर में पनपने वाले बैक्टीरिया, एलर्जी और वायरस का कारण साबित होता है। इससे शरीर का इम्यून सिस्टम वीक होने लगता है, जो शरीर के स्वस्थ ऊतकों पर हमला करते हैं। साथ ही ये ब्लड सेल्स को भी नुकसान पहुंचाने लगते हैं।
प्रमुख लक्षण | लिवर सिरोसिस के साथ होने वाली अन्य जटिलताएं1. हाई ब्लड प्रेशर की समस्याइस स्थिति को पोर्टल हाइपरटेंशन के रूप में भी जाना जाता है। लिवर सिरोसिस होने पर रक्त के नियमित प्रवाह में कमी आने लगती है। इससे लिवर में खून लाने वाली नस में दबाव बढ़ जाता है, जो हाई ब्लड प्रेशर का कारण बनने लगता है। 2. पैरों और पेट में सूजनपोर्टल नस में बढ़े हुए दबाव से पैरों में तरल पदार्थ जमा हो सकता है, जिसे एडिमा कहा जाता है। वहीं पेट में जमा फ्लूइड को एससाइटस यानि जलोदर कहा जाता है। एडिमा और जलोदर की समस्या उस समय होती है, जब लिवर एल्ब्यूमिन जैसे ब्लड प्रोटीन को बनाने में असमर्थ होता है। 3. प्लीहा का बढ़नाइसके चलते प्लीहा यानि तिल्ली में सफेद रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स फंसने लगते है। इससे प्लीहा में सूजन आ जाती है। ये एक ऐसी स्थिति है जिसे स्प्लेनोमेगाली के रूप में जाना जाता है। ब्लड में कम सफेद रक्त कोशिकाएं और प्लेटलेट्स सिरोसिस का पहला संकेत हो सकता है। 4. ब्लीडिंग का होनापोर्टल हाइपरटेंशन की समस्या ब्लड को छोटी नसों में रीडायरेक्ट करने का कारण बनती है। नसों में ज्यादा दबाव के आने से वे तनावग्रस्त होने लगती हैं। इससे गंभीर रक्तस्राव होने लगता है। 5. पीलिया की संभावनापीलिया तब होता है जब क्षतिग्रस्त लिवर रक्त से पर्याप्त बिलीरुबिन नहीं निकालता है। पीलिया के कारण त्वचा में पीलापन और आंखों का सफेद होना और पेशाब काला पड़ने लगता है। 6. हड्डियों से जुड़े रोगसिरोसिस के शिकार लोगों की हड्डियां कमज़ोर होने लगती हैं, जिससे फ्रैक्चर का ज्यादा खतरा बना रहता है। इसके अलावा हड्डियों में दर्द व ऐंठन की भी समस्या रहती है। 7. लिवर कैंसर का खतरासिरोसिस के कारण यकृत यानी लिवर कैंसर की संभावना बढ़ने लगती है। धीरे-धीरे लिवर को क्षतिग्रस्त करने वाली ये बीमारी कैंसर का रूप धारण कर लेती है। आंकड़े बताते हैं कि लिवर कैंसर विकसित करने वाले लोगों का एक बड़ा हिस्सा पहले से ही लिवर सिरोसिस की समस्या से ग्रस्त रहा होता है। |
सिरोसिस के प्रारंभिक चरण में कोई भी लक्षण नज़र नहीं आता। इसके लक्षण तब तक प्रकट नहीं होते हैं, जब तक कि लिवर बुरी तरह क्षतिग्रस्त न हो जाए।
लिवर फंक्शन टेस्ट की मदद से यकृत रोग और यकृत की विफलता के बारे में जानकारी मिलती है। इसकी मदद से ब्लड में लिवर से जुड़े लिवर एंजाइम, प्रोटीन और बिलीरुबिन के स्तर को मापा जाता हैं। ब्लड टेस्ट की मदद से किसी बीमारी या उसके साइड इफेक्ट की जानकरी हासिल होती है।
पेट के अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे इमेजिंग टेस्ट आपके लिवर के आकार और बनावट को दिखा सकते हैं। इलास्टोग्राफी नाम का एक विशेष प्रकार का इमेजिंग टेस्ट होता है। इससे लिवर में कठोरता या फाइब्रोसिस के स्तर को मापने के लिए अल्ट्रासाउंड या एमआरआई तकनीक का उपयोग करते हैं।
लिवर की जांच के लिए लिवर के एक टिशु सैंपल को लैब टेस्ट के लिए ले जाया जाता है। हॉलो नीडल के माध्यम से नमूना लिया जाता है। पर यह ज़रूरी नहीं है कि बायोप्सी की मदद से सिरोसिस की पुष्टि हो पाए और कारण की जानकारी मिल सके।
सिरोसिस के ज्यादातर मामलों में लिवर अपना काम करना बंद कर देता है। इस स्थिति में लिवर ट्रांसप्लांट की ही सलाह दी जाती है। ये अंतिम उपचार विकल्प माना जाता है। इसके लिए मृत व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में लिवर ट्रांसप्लांट किया जाता है या फिर जीवित डोनर से यकृत के हिस्से के साथ लिवर को बदला जाता है।
सिरोसिस से ग्रस्त लोगों को शराब का सेवन बंद कर देना चाहिए। यदि शराब को रोकना मुश्किल है, तो डॉक्टर की सलाह से शराब की लत कार्य से बचने के लिए काउंसलिंग और रीहैब समेत विभिन्न कार्यक्रम में हिस्सा ले सकते हैं।
आवश्यक दवा इस बात पर निर्भर करती है कि लीवर को अब तक कितना नुकसान हुआ है। अगर सिरोसिस लॉन्ग टर्म वायरल हेपेटाइटिस से है, तो आपको एंटीवायरल दवाएं जैसे लैमिवुडीन, एंटेकाविर और टेनोफोविर डिसोप्रोक्सिल फ्यूमरेट निर्धारित की जा सकती हैं। अगर सिरोसिस विल्सन रोग से होता है, तो डी.पेनिसिलामाइन जैसी दवाए और ट्राइएंटिन का उपयोग किया जाता है।
लिवर सिरोसिस यकृत को धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त करता है। वे लोग जो लिवर सिरोसिस का शिकार हैं, अगर अर्ली स्टेज पर ही इसका उपचार और रोकथाम के उपाय अपना लें, तो वे 12 वर्ष या उससे अधिक समय तक भी जीवित रह सकते हैं। पर लापरवाही की स्थिति में व्यक्ति की 6 महीने के भीतर भी जान जा सकती है।
शरीर में सिरोसिस की मात्रा बढ़ने से लिवर ग्लाइकोजन को स्टोर करने में सक्षम नहीं रह जाता है। ऐसे में आहार में अधिक ऊर्जा और प्रोटीन की आवश्यकता होती है। सिरोसिस से ग्रस्त व्यक्ति को अपने आहार में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।
अगर उल्टी में खून आने लगे, आंखों में पीलापन बढ़ जाए, सांस लेने में दिक्क्त हो और मांसपेशियों में ऐंठन महसूस हो तो, रोगी को बिना देर किए डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
30 से लेकर 40 वर्ष की उम्र के भीतर अल्कोहलिक लिवर सिरोसिस के लक्षण शरीर में नज़र आने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ-साथ शरीर में इस बीमारी के लक्षण और गंभीर होने लगते हैं।