डेंगू मच्छरों की वजह से होने वाली गंभीर संक्रामक बीमारी है जिसमें पीड़ित व्यक्ति को बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, रैशेज़, मिचली और उलटी जैसी शिकायतें होती हैं। हम यहां आपको डेंगू के बारे में कुछ जानकारी दे रहे हैं जैसे इसके लक्षण, किस वजह से यह होता है, इससे बचने के लिए क्या किया जा सकता है, यह संक्रमण होने पर क्या करें व क्या नहीं करें और इसके इलाज के क्या-क्या विकल्प उपलब्ध हैं।
डेंगू, मच्छरों विशेष तौर पर एडीज़ इजिप्टाई मच्छर द्वारा संचारित किया जाने वाला वायरल संक्रमण है। यह संक्रमण ट्रॉपिकल व सब ट्रॉपिकल क्षेत्रों में काफी आम समस्या है। डेंगू संक्रमण के ज़्यादातर मामले पीड़ित व्यक्ति तक सीमित रहते हैं, कई बार ऐसे मामलों में डेंगू हेमेराजिक फीवर (DHF) और गंभीर किस्म का डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS) जैसी परेशानियां आ सकती हैं, जिनकी वजह से मरीज़ के जीवन के लिए खतरे पैदा हो जाते हैं।
प्राथमिक रूप से इसकी वजहें बढ़ी हुई वैस्क्यूलर परमिएबिलिटी और शॉक होते हैं। भारत में डेंगू वायरस के सभी चारों सीरोटाइप देखने को मिलते हैं। देश में डेंगू के बुखार का पहला मामला 1956 में तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में पाया गया था।
एडीज़ मच्छरों का प्रजनन आम तौर पर शहरी इलाकों में होता है और यही वजह है कि यह बीमारी सबसे ज़्यादा शहरी इलाकों में होती है। हालांकि, मनुष्यों की वजह से होने वाले पर्यावरणीय और सामाजिक आर्थिक बदलावों की वजह से यह रुझान बदल रहा है। इसके परिणामस्वरूप एडीज़ मच्छर ग्रामीण इलाकों में भी पाए जाने लगे हैं जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस बीमारी के फैलने की आशंकाएं काफी बढ़ गई हैं।
विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से डीएफ/डीएचएफ के मामले सामने आते रहते हैं जिनमें आंध्र प्रदेश, दिल्ली, गोवा, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पॉन्डिचेरी, पंजाब, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और चंडीगढ़ प्रमुख हैं।
मादा एडीज़ मच्छर आम तौर पर डेंगू वायरस से तब संक्रमित होते हैं, जब वह किसी ऐसे व्यक्ति को काटती हैं जो डेंगू की बीमारी के गंभीर फेबराइल (वायरेमिया) चरण में होता है। 8 से 10 दिनों की इंक्यूबेशन अवधि (मच्छर में) के बाद मच्छर संक्रमित हो जाते हैं और जब संक्रमित मच्छर किसी को काटते हैं, तो वायरस उन तक पहुंच जाता है और मच्छर का स्लाइवा व्यक्ति के घाव में प्रवेश कर जाता है।
एडीज़ एजिप्टी घरों, निर्माण साइटों और फैक्ट्रियों जैसे लगभग पूरी तरह मानव-निर्मित घरेलू परिवेश में प्रजनन करते हैं। ऐसे मच्छरों के लिए प्राकृतिक आवास पेड़ों के बीच बनी दरारें, पत्तियों के सिरे और नारियल के खोल होते हैं।
अमूमन देखा जाता है | क्या करें:
क्या नहीं करें:
|
उपचार | बचाव है उपचार से ज्यादा जरूरी
|
डेंगू के लक्षणों में बुखार आना, सिरदर्द, थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया, रेट्रो-ऑर्बिटल दर्द, मांसपेशियों में दर्द, जोड़ों का दर्द प्रमुख है। त्वचा या अन्य अंगों से अचानक खून निकलना, काले रंग का मल, नाक से खून निकलना, मसूड़ों से खून आना और पेट में दर्द, गंभीर रूप से डिहाइड्रेशन, बेहोशी की स्थिति, ऐसे चिंताजनक लक्षण हैं जिनसे डीएचएफ या डीएसएस के संकेत मिलते हैं।
तीन दिन से अधिक बुखार बना रहे तो डॉक्टर की देखरेख में डेंगू सेरोलॉजी टेस्ट करवाएं। यह एक आसान ब्लड टेस्ट है, जिसे आप किसी भी पैथोलॉजी लैब में करवा सकते हैं। आपके खून के नमूने से तीनों टेस्ट – IgG, IgM, और NS1 किए जाते हैं। टेस्ट के नतीजे के आधार पर डॉक्टर आपको दवाइयों और आगे के उपचार के बारे में बताएंगे।
डेंगू के बुखार के लिए कोई खास एंटी वायरल इलाज नहीं है। इसके इलाज में अधिक ध्यान लक्षणों से राहत दिलाने और रोगी को रिकवरी प्रक्रिया में मदद देने पर होता है। निम्नलिखित कदम उठाकर इससे उबरा जा सकता है:
आराम करें और ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशंस का सेवन कर खुद को हाइड्रेटेड रखें।
बुखार व दर्द कम करने के लिए एसीटामिनोफेन/पैरासिटामोल जैसी दर्द निवारक दवाएं लें।
ऐसी दवाएं लेने से बचें जो ब्लीडिंग का जोखिम बढ़ा सकती हैं।
गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत पड़ सकती है जिससे रोगी की हालत पर अच्छी तरह नज़र रखी जा सके, इंट्रावेनस फ्लुइड्स स सपोर्टिव केयर दी जा सके।
सटीक जांच, उचित इलाज और आपकी स्थिति को लेकर इलाज के मार्गदर्शन के लिए डॉक्टर से अवश्य मिलें।
ऐसा देखने में आया है कि डेंगू से पीड़ित होने पर कुछ लोग पपीते के पत्तों का पानी, गिलॉय का रस या पपीते का सेवन करते हैं। लेकिन सच यह है कि इन पदार्थों के सेवन का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और न ही इनके प्रयोग तथा प्रभावों के बारे में किसी तरह के शोध / परीक्षण हुए हैं।
अत: इनके प्रयोग से बचना चाहिए। पपीते के पत्तों और गिलॉय के इस्तेमाल से कुछ लोगों में गैस्ट्राइटिस तथा उल्टी आने की शिकायत भी देखी गई है। डेंगू के दौरान हमें उल्टी होने से हर हाल में बचना चाहिए। प्लेटलैट्स का घटना और बढ़ना खुद-ब-खुद होने वाली प्रक्रिया है, इसलिए ट्रेल रिजल्ट आने तक हमें किसी भी वैकल्पिक तरीके का प्रयोग करने से बचना चाहिए।
यह भी पढ़ें – डेंगू होने पर घटने लगा है प्लेटलेट काउंट, तो इन 8 घरेलू सामग्रियों से बढ़ाएं इनकी संख्या
डेंगू का बुखार एक वायरस की वजह से होता है और इसे एडीज़ मच्छर फैलाते हैं, जिसे शरीर पर सफेद बैंड होने की वजह से एडीज़ मच्छर कहा जाता है।
एडीज़ मच्छर मुख्य रूप से दिन के समय सक्रिय रहते हैं और ऐसे मच्छरों के काटने का मुख्य समय सुबह जल्दी से लेकर देर दोपहर तक होता है। एडीज़ मच्छर को दिन में बढ़चढ़कर काटने के लिए जाना जाता है और यह मच्छर 400 मीटर तक की सीमित दूरी तक उड़ सकते हैं। खून की एक पूरी खुराक के लिए मच्छर को कई लोगों को काटना होता है और वे उन सभी लोगों को संक्रमित करते हैं।
एडीज़ मच्छरों में यह प्रवृत्ति होती है कि वे मनुष्यों को प्राथमिक तौर पर त्वचा के खुले हिस्सों पर काटते हैं। आम तौर पर वे एड़ियों, पैरों, पैर के निचले हिस्सों और बांहों पर काटते हैं। इन मच्छरों को घुटने से नीचे के हिस्सों में काटने के लिए जाना जाता है। लंबी बांहों वाले कपड़े, लंबे पैंट पहनकर खुली हुई त्वचा को सुरक्षित रखने के उपाय कर और मच्छरों को दूर रखने वाली दवाएं इस्तेमाल करने से मच्छरों के काटने से बचा जा सकता है।
डेंगू वायरस लोगों में संक्रमित एडीज़ प्रजाति के मच्छरों के काटने से फैलता है। बहुत कम मामलों में ही डेंगू, खून चढ़ाने, अंग प्रत्यारोपण या नीडल स्टिक की चोट के माध्यम से फैल सकता है। गर्भवती महिला जिसे पहले से डेंगू का संक्रमण हो, गर्भावस्था या बच्चे के जन्म के समय पर यह वायरस महिला से बच्चे तक पहुंच सकता है। अब तक डेंगू की एक ऐसी रिपोर्ट आई है जिसमें मां के दूध के माध्यम से डेंगू संक्रमण हुआ। हालांकि मां के दूध के फायदों को देखते हुए डेंगू के जोखिमों के बावजूद माताओं को दूध पिलाने के लिए कहा जाता है।
डेंगू के रैशेज बुखार आने के 3-4 दिनों के भीतर दिखने लगते हैं और लगभग पूरे शरीर में फैल जाते हैं। कई बार डेंगू के रैशेज में खुजली हो सकती है और बुखार के दौरान इनकी वजह आपको परेशानी और चिड़चिड़ापन हो सकता है। अगर आपको रैशेज में खुजली हो रही हो, तो आपको हाथ के पंजों या तलवों में सूजन के साथ-साथ त्वचा की संवेदनशीलता की शिकायत भी हो सकती है। बुखार के कम होने और मरीज़ की सेहत में सुधार होने के साथ-साथ रैशेज गायब होने लगते हैं।