सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कदम रखते ही व्यक्ति उसकी गिरफ्त में चला जाता है। हर नोटिफिकेशन पर मोबाइल चेक करने की आदत न केवल वर्क प्रोडक्टिविटी और क्वालिटी को खराब कम रही है, बल्कि इससे मेंटल हेल्थ को भी नुकसान पहुंच रहा है। दिन भर सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने से रिश्तों में टकराव और मनोबल खोने जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है, जो आपके निजी जीवन को खासतौर से प्रभावित करता है। जानते हैं सोशल मीडिया किस प्रकार से आपकी मेंटल हेल्थ को करने लगता है प्रभावित (impact of social media on mental health)।
इस बारे में बातचीत करते हुए काउंसलर और ग्राफोलॉजिस्ट सोनल ओसवाल का कहना है कि सोशल मीडिया एरा में व्यक्ति वास्तविकता से दूर अरियलिस्टिक वर्ल्ड में जी रहा है। वो जीवन में हर चीज़ पाने की इच्छा करने लगा है, जो मेंटल हेल्थ के लिए नुकसानदायक साबित होने लगता है। लोग अक्सर खुद में कमियां ढूढ़ने लगे हैं, जिससे डिप्रेशन, एंग्ज़ाइटी, सेल्फ लोथिंग और फोमो डिसऑर्डर का शिकार हो रहे हैं। इससे बचने के लिए सेल्फ केयर बहुत ज़रूरी है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक देर रात तक फोन का प्रयोग करने से नींद न आने की समस्या का सामना करना पड़ता है। दरअसल मोबाइल की ब्लू लाइट से मेलाटोनिन का स्तर कम होने लगता है, जिससे नींद पूरी नहीं हो पाती है। इस प्रकार से बार बार मोबाइल को चेक करने की आदत नींद की गुणवत्ता पर असर डालती है। इससे डार्क सर्कल्स और मानसिक तनाव बढ़ने लगता है।
वहीं, जर्नल ऑफ़ मेंटल हेल्थ के अनुसार सोशल मीडिया पर दिनभर एक्टिव रहने से व्यक्ति अकेलेपन का शिकार होने लगता है। घण्टों मोबाइल के साथ रहने से उसे अन्य लोगों की कमी जीवन में महसूस नहीं होती है। इसका असर निजी जिंदगी से लेकर ऑफिस लाइफ पर दिखने लगता है।
सोशल मीडिया पर दिन भर स्टेटस, अकांउट और रील्स को चेक करने से लोगों के अंदर आपसी ईष्या, जलन और लो सेल्फ एस्टीम बढ़ने लगती है। व्यक्ति मन ही मन अपनी तुलना अन्य लोगों से करने लगता है और अनरियलिस्टिक वर्ल्ड में जीने लगता है। जहां वो उन सभी सुख सुविधाओं की कामना करता है, जो औरों के पास है।
सोशल मीडिया जहां आपको आगे बढ़ने में मदद करता है, तो वहीं तनाव का कारण भी बनने लगता है। अन्य लोगों के जीवन और उपलब्धियों को देखकर अधिकतर लोग चिंतित होने लगते हैं। इसके चलते वे खुद को आइसोलेट कर लेते हैं और अकेलापन महसूस करने लगते हैं, जो तनाव का कारण साबित होता है।
क्रॉल करते करते कब घण्टों बीत जाते हैं। इसका अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल हो जाता है। इससे समय और एनर्जी दोनों ही बर्बाद होने लगते हैं, जिसके चलते अपने टारगेट्स को अचीव कर पाना मुश्किल लगने लगता है। ये एक प्रकार का एडिक्शन है, जिसमें नोटिफिकेशन को चेक करने के लिए हर पल फोन हाथ में ही रहता है, जिसका असर कार्य पर नज़र आने लगता है।
लोगों का जीवन सोशल मीडिया से बहुत ज्यादा प्रभावित होने लगा है। ऐसे में उनके रिश्तों पर इसका असर नज़र आता है। सोशल मीडिया पर हर समय एक्टिव रहने के चलते वे वास्तिविकता से दूर होते जा रहे हैं। उनकी अपने पार्टनर से असीमित आशाएं, इच्छाएं और चाहतें बढ़ने लगती है, जिसका रियलिस्टिक वर्ल्ड से कोई भी लेना देना होता है। इससे डाइवोर्स के मामले भी बढ़ रहे हैं।
सोशल मीडिया में हर चीज़ पर्फेक्ट तरीके से होता देखकर व्यक्ति खुद को कमज़ोर समझने लगता है। हर कार्य में खुद को कम आंकने से आत्म विश्वास में कमी आने लगती है। अपने व्यक्तित्व को मज़बूत करने की जगह अन्य लोगों को आगे बढ़ता देख अपने आप से मायूस होने लगते है, जो एंग्ज़ाइटी का कारण सिद्ध होता है।
काम से फ्री होने के बाद सोशल मीडिया को चेक करने की आदत को छोड़कर वही समय परिवारजनों के साथ बातचीत करने में बिताएं। न केवल उनके साथ क्वालिटी टाइम स्पैण्ड करें बल्कि कामकाज में उनकी मदद भी करें। इससे जीवन के मूल्यों को बेहतर तरीके से जानने में मदद मिलेगी।
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कस्टमाइज़ करेंअपने खानपान से लेकर फिटनेस तक हर चीज़ का ध्यान रखें। मोबाइल पर दिनभर व्यतीत करने की जगह कुछ वक्त योग और मेडिटेशन के लिए भी निकालें। इससे मेंटल हेल्थ को फायदा मिलता है और शरीर भी स्वस्थ बना रहता है।
जीवन में हर व्यक्ति को हर चीज़ की प्राप्ति नहीं हो पाती है। ऐसे में खुद को आगे बढ़ने के लिए बूस्ट करें और दूसरों की उपलब्धियों से अपनी पर्सनैलिटी को प्रभावित न होने दें।
हर वक्त सोशल मीडिया अकाउंट को चेक करने की जगह कुछ समय निर्धारित कर लें। नोटिफिकेशन को म्यूट पर रखें, ताकि आपका ध्यान बार बार फोन की ओर आकर्षित न हो पाए। रात को सोने से कुछ घण्टे पहले फोन से दूरी बनाकर चलें।
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