ऑस्टियोफाइट्स (हड्डी बढ़ना)

Published: 30 Apr 2024, 20:34 PM
मेडिकली रिव्यूड

बोन स्पर्स, जिन्हें ऑस्टियोफाइट्स भी कहा जाता है। आमतौर से किसी हड्डी पर दबाव बढ़ने, हड्डियों के आपस में लगातार रगड़ खाने, या उन पर स्ट्रैस होने की वजह से विकसित होते हैं। इसका निदान सर्वप्रथम आपका फैमिली डाॅक्टर ही करता है। मगर उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि यह कितनी गंभीर स्थिति है।

osteophytes aka bone spurs ek painful condition hai
ऑस्टियोफाइट्स या हड्डी बढ़ना एक दर्दनाक स्थिति है। चित्र : अडोबीस्टॉक

वास्तव में हमारा शरीर अपनी मरम्मत का सारा तंत्र अपने साथ रखता है। हड्डी में किसी तरह की चोट लगने या नुकसान पहुंचने पर शरीर उसकी रिपेयरिंग की तैयारी करता है। यह प्रक्रिया अगर बार-बार दोहराई जाए तो कैल्शियम जमा होने लगता है। इस अनावश्यक और अनियंत्रित जमाव के कारण हड्डी बढ़ने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जिसे ऑस्टियोफाइट्स या बोन स्पर्स भी कहा जाता है।

यह जानना जरूरी है कि बोन स्पर्स किसी तरह के लक्षणों को पैदा नहीं करते, लेकिन यदि ये आसपास के नर्व्स या टिश्यूज़ को दबाने लगें या ज्वाइंट मूवमेंट को प्रभावित करने लगें, तो इनके कारण काफी दर्द और अन्य कई समस्याएं हो सकती हैं। इलाज इस बात पर निर्भर होता है कि लक्षण कितने गंभीर हैं, और इलाज के तौर पर दवाओं, फिजिकल थेरेपी, इंजेक्शन या कुछ मामलों में, सर्जरी की सलाह भी दी जाती है।

बोन स्पर्स शरीर के विभिन्न भागों में विकसित हो सकते हैं। यहां तक की रीढ़ की हड्डी, कंधों, कूल्हों, घुटनों, पैरों और हाथों पर भी। इनकी लोकेशन और गंभीरता के अनुसार लक्षण दिखायी देते हैं। अगर आपको लगता है कि आपके शरीर के किसी हिस्से में बोन स्पर्स की समस्या है या आप लगातार दर्द और तकलीफ का सामना कर रहे हैं, तो सटीक डायग्नॉसिस तथा उपचार के लिए हैल्थकेयर प्रोफेशनल को कंसल्ट करना जरूरी है।

ऑस्टियोफाइट्स (हड्डी बढ़ना) : कारण

ऑस्टियोआर्थराइटिस

यह सबसे सामान्य कारण है। ऑस्टियोआर्थराइटिस दरअसल, जोड़ों की हड्डियों के सिरों पर मौजूद कार्टिलेटज में धीरे-धीरे घिसाव की वजह से होता है। कार्टिलेज घिसने से हड्डियों में आपस में रगड़न होती है और स्पर विकसित होता है।

उम्र बढ़ना (एजिंग)

बढ़ती उम्र के साथ-साथ कई बार कुछ लोगों की हड्डियों में भी बदलाव आने लगता है। बोन स्पर ऐसी ही एक स्थति है। यह अक्सर वियर एंड टियर की वजह से होता है, जो सालों-साल चलने वाली प्रक्रिया होती है।

जोड़ों को क्षति या संघात (ज्वाइंट डैमेज या ट्रॉमा)

किसी ज्वाइंट में चोट लगना जैसे फ्रैक्चर या डिस्लोकेशन के कारण कई बार शरीर उस प्रभावित हिस्से की हीलिंग के लिए उस जगह पर अतिरिक्त हड्डी का निर्माण करने लगता है। यह अतिरिक्त हड्डी ही कई बार स्पर में बदल जाती है।

गलत शारीरिक मुद्रा या एलाइनमेंट

लगातार गलत मुद्रा या बोन मिसएलाइनमेंट के कारण भी ज्वाइंट्स पर अनावश्यक दबाव पड़ता है, जिसके चलते समय के साथ कई बार बोन स्पर विकसित हो जाता है।

अधिक या बार-बार इस्तेमाल

कुछ गतिविधियों में बार-बार एक जैसी मूवमेंट का दोहराव होता है, जैसे खेल-कूद में या किसी खास काम-धंधे की वजह से, और उस स्थति में शरीर के किसी खास ज्वाइंट पर स्ट्रैस बढ़ सकता है, जो कई बार बोन स्पर का कारण बन सकता है।

मोटापा

अक्सर शरीर का सामान्य से ज्यादा वजन होने से ज्वाइंट्स पर अनावश्यक दबाव पड़ता है जो बोन स्पर्स का भी कारण बन सकता है, खासतौर से वेट-बियरिंग ज्वाइंट्स जैसे की घुटनों और कूल्हों आदि में।

आनुवांशिकी (जेनेटिक्स)

कुछ लोग अपनी आनुवांशिक संरचना के कारण बोन स्पर्स के मरीज बन सकते हैं। यदि आपके परिवार के किसी सदस्य को यह पहले हो चुका हो तो आपके भी इसकी गिरफ्त में आने की संभावना बढ़ जाती है।

ऑस्टियोफाइट्स (हड्डी बढ़ना) : लक्षण

बोन स्पर्स, जिसे ऑस्टियोफाइट्स भी कहा जाता है, आमतौर से किसी लक्षण को पैदा नहीं करता, लेकिन किसी नर्व या अन्य किसी संरचना पर दबाव पड़ने से लक्षण उभर सकते हैं। ये लक्षण बोन स्पर की लोकेशन और साइज़ पर निर्भर करते हैं। सामान्य लक्षणों में शामिल हैंः

दर्द – बोन स्पर्स के कारण प्रभावित भाग में दर्द हो सकता है। कई बार यह दर्द हल्का होता है और कभी-कभी काफी तीखा भी होता है जो मूवमेंट होने पर और गंभीर हो सकता है।

मूवमेंट का प्रभावित होना – बोन स्पर्स की वजह से आसपास के ज्वॉइंट्स की मोशन प्रभावित हो सकती है, जिसके कारण कसावट और मूवमेंट में कठिनाई होती है।

सूजन – प्रभावित भाग में इंफ्लेमेशन और स्वेलिंग की समस्या भी हो सकती है।

कोमलता – बोन स्पर के आसपास का हिस्सा छूने पर कोमल महसूस होता है।

ज्वाइंट फंक्शन में कमी आना – ज्वाइंट्स में बोन स्पर्स के कारण ज्वाइंट फंक्शन पर असर पड़ता है, जो कमजोरी, अस्थिरता पैदा करता है और इसकी वजह से कई बार सामान्य गतिविधियों में भी परेशानी महसूस होती है।

सुन्न पड़ना या झनझनाहट महसूस होना – यदि बोनस स्पर की वजह से आसपास की नर्व्स पर दबाव बढ़ता है तो प्रभावित अंग सुन्न पड़ सकता है या उसमें झनझनाहट महसूस होती है। कई बार ऐसे भाग में कमजोरी भी महसूस होती है।

गांठ दिखायी देना/महसूस होना – कुछ मामलों में, खासतौर से यदि बोन स्पर त्वचा की सतह के नज़दीक होता है, तो आप महसूस कर सकते हैं या आपको हड्डी में उभार की तरह दिखायी देता है।

ऑस्टियोफाइट्स (हड्डी बढ़ना) : निदान

पहले पहल ऑस्टियोफाइट्स या हड्डी बढ़ने की समस्या का निदान आपके नियमित डॉक्टर ही करते हैं। मगर स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए वे आपको विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाने की सलाह दे सकते हैं। बोन एवं जॉइंट एक्सपर्ट, रुमेटोलॉजिस्ट एवं ऑर्थोपैडिक डॉक्टर इसकी जांच कर सकते हैं। इसके बाद वे निम्न जांच करवाने की सलाह देते हैं –

1 एक्सरे – एक्सरे के माध्यम से हड्डी में होने वाले किसी भी बदलाव को देखा जा सकता है।

2 सीटी स्कैन – यह एक्सरे की ही उन्नत तकनीक है। जो हड्डियों की संरचना और उसमें हो रहे बदलाव की गहन तस्वीरें निकाल सकता है।

3 एमआरआई – अगर आपकी हड्डी में हो रहे बदलाव को समझने में डॉक्टर एक्सरे और सीटी स्कैन के बाद भी असमर्थ रहते हैं, तो वे आपको एमआरआई करवाने की सलाह दे सकते हैं। चुंबकीय और रेडियो तरंगों से की जाने वाली इस प्रक्रिया में हड्डी डीप इमेजिंग हो सकती है।

4 इलैक्ट्रोकंडक्टिव टेस्ट – इस टेस्ट की सलाह डॉक्टर तब देते हैं, जब उन्हें यह देखना हो कि बोन स्पर के कारण आपकी रीढ़ की हड्डी को कितना नुकसान पहुंचा है। यह नर्व के इमेजिंग कर सकते हैं।

यह भी पढ़ें – ऑस्टियोअर्थराइटिस से बचाने में मददगार हो सकती है फिजियोथेरेपी, एक्सपर्ट बता रहे हैं कैसे 

ऑस्टियोफाइट्स (हड्डी बढ़ना) : उपचार

बोन स्पर्स का उपचार कई फैक्टर्स पर निर्भर करता है, जैसे कि लक्षण कितने गंभीर हैं और स्पर्स की लोकेशन क्या है। यहां कुछ सामान्य उपचार विकल्पों की जानकारी दी जा रही हैः

पारंपरिक उपचार 

अक्सर, शुरू में इलाज के लिए दर्द और सूजन को मैनेज करने की कोशिश की जाती है, जिसमें सिकाई करना, बर्फ लगाना, ओवर-द-काउंटर मिलने वाली दर्द निवारक दवाओं जैसे आइबुप्रोफेन या एसिटामिनोफेन का प्रयोग और फिजिकल थेरेपी शामिल हैं।

ऑर्थोटिक डिवाइस 

कुछ मामलों में, ऑर्थोटिक डिवाइसों के प्रयोग की सलाह भी दी जाती है। ताकि शारीरिक तकलीफ कम हो सके और सपोर्ट भी मिले, इनमें शू इन्सर्ट या ब्रेसेज़ का प्रयोग शामिल हैं।

स्ट्रैचिंग और स्ट्रैंथनिंग के व्यायाम 

खास तरह के व्यायाम/एक्सरसाइज़ करने से आपके शरीर में लचीलापन बढ़ता है और शरीर अधिक ताकतवर बनता है, जिसका फायदा यह होता है कि बोन स्पर्स की वजह से पैदा होने वाले लक्षण दूर हो सकते हैं। इसी तरह, आपकी व्यक्तिगत जरूरतों के आधार पर फिजिकल थेरेपी की सलाह भी दी जा सकती है।

कॉर्टिकोस्टेरॉयड इंजेक्शन

प्रभावित हिस्से में कॉर्टिकोस्टेरॉयड के इंजेक्शन लगाने से सूजन और दर्द में आराम मिलता है। लेकिन इनका इस्तेमाल काफी सोच-समझकर करना चाहिए। क्योंकि इनके साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं और अक्सर अन्य उपचारों के साथ इन्हें दिया जाता है।

सर्जरी 

अगर पारंपरिक इलाज विधियां बेअसर रहती हैं और मरीज को कोई आराम नहीं मिलता और बोन स्पर्स के कारण काफी दर्द महसूस हो तो जरूरी होने पर, अन्य कंडीशंस जो कि इसका कारण हों, जैसे कि आर्थराइटिस या टेंडनाइटिस, तो उनका इलाज करना चाहिए।

प्रत्येक मरीज के मामले में सही उपचार के लिए उनकी कंडीशन के मद्देनज़र हैल्थकेयर प्रोफेशनल से सलाह करना जरूरी है।

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ऑस्टियोफाइट्स (हड्डी बढ़ना) : संबंधित प्रश्न

क्या हड्डियों के बढ़ने या ‘बोन स्पर्स’ को नेचुरली खत्म किया जा सकता है?

हड्डी बढ़ने का एक सबसे कॉमन कारण मोटापा है। अगर आप का मोटापा अधिक है और आपका बॉडी पॉश्चर ठीक नहीं है, तो आपके लिए इसका जोखिम ज्यादा हो सकता है। इस तरह अगर आप अपना वजन नियंत्रित रखें और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं तो हड्डी बढ़ने के जोखिम को कम किया जा सकता है।

ऑस्टियोफाइट और बोन स्पर के बीच क्या अंतर है?

“ऑस्टियोफाइट” और “बोन स्पर” ऐसे दो शब्द हैं जिनका इस्तेमाल एक दूसरे के लिए किया जाता है, लेकिन चिकित्सकीय शब्दावली में दोनों शब्दों में थोड़ा अंतर होता है। ऑस्टियोफाइट: इस शब्द से आशय, हड्डियों की ऐसी असामान्य वृद्धि से है जो हड्डियों के किनारों पर बन जाती है। ऑस्टियोफाइट्स सामान्य तौर पर जोड़ों पर विकसित होता है जहां हड्डियां एक साथ जुड़ती हैं। बोन स्पर: बोन स्पर ऐसे छोटे और हड्डियों की बनावट होती है जो हड्डियों के किनारों पर विकसित हो जाते हैं।

क्या ऑस्टियोफाइट्स ठीक हो सकते हैं?

ऑस्टियोफाइट्स खुद से ठीक नहीं होता है, इसके बढ़ने के पीछे की वजहों को कई बार अच्छी तरह ठीक किया जा सकता है। ऑस्टियोफाइट्स के उपचार में आम तौर पर दर्द को नियंत्रित रखने और इंफ्लेमेशन को कम करने की ओर ध्यान दिया जाता है।

ऑस्टियोफाइट्स अच्छा है या बुरा?

ऑस्टियोफाइट्स को बोन स्पर्स के तौर पर भी जाना जाता है, यह संदर्भ के हिसाब से अच्छा और बुरा दोनों हो सकता है। अच्छा: ऑस्टियोफाइट्स कई बार किसी दबाव या चोट की वजह से बन जाते हैं और प्रभावित जोड़ के लिए स्वाभाविक स्टैबलाइज़र यानी स्थिरता देने वाले कारक के तौर पर काम करता है। बुरा: ऑस्टियोफाइट्स अगर इतने बड़े हो जाएं कि उनका प्रभाव नसों, खूनों की नसों या आसपास के हिस्सों पर पड़ने लगे तो यह समस्या बन सकता है। इसकी वजह से दर्द हो सकता है, गतिविधि में मुश्किल हो सकती है या अन्य लक्षण देखने को मिल सकते हैं।

क्या बोन स्पर्स को ठीक किया जा सकता है?

कई मामलों में आराम, फिजिकल थेरेपी और एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाओं जैसे पारंपरिक उपचार बोन स्पर्स के लक्षणों को ठीक करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि, ऐसे पारंपरिक उपाय काम न आएं और बोन स्पर्स की वजह से अधिक दर्द हो रहा हो या चलने-फिरने में दिक्कत हो रही हो तो सर्जरी के बारे में सोचा जा सकता है। बोन स्पर्स की सर्जरी में अलग से विकसित हुए हड्डियों के टिश्यू को निकाल दिया जाता है और उनके विकसित होने के कारणों को ठीक किया जाता है।