लोगों के बारे में जानना, उन्हें समझना और उनकी पहचान करना ज़रूरी है। मगर कई बार व्यक्ति अपने आप से अंजान रहता है। वो अपनी क्षमताओं, इच्छाओं और भावनाओं से अनभिज्ञ रहता है। ऐसे में आत्म विश्लेषण यानि सेल्फ अनेलिसिस बेहद ज़रूरी है। इससे व्यक्ति अपने अस्तित्व को खोजने में सक्षम महसूस करता है। हालंकि इन दिनों सेल्फ अनेलिसिस से जुड़े कई प्रकार के कोर्स और वर्कशॉप ऑर्गनाइज़ की जाती है। मगर उससे पहले इन आसान टिप्स की मदद से आप आसानी से आत्म विश्लेषण कर पाऐंगें। जानते हैं आत्म विश्लेषण किसे कहा जाता है और इसे करने के लिए इन टिप्स की लें मदद।
सेल्फ अनेलिसिस उस प्रोसेस को कहा जाता है जिसमें व्यक्ति अपने व्यवहार से लेकर अपने कार्य तक अपनी क्षमताओं की पहचान कर उसे इवैल्यूएट करता है। आत्म विश्लेषण एक ऐसा आईना है, जिसमें व्यक्ति अपने सार्म्थय से लेकर अपने अंदर छिपे हुनर और त्रुटियों की पहचान कर पाता है। इससे व्यक्ति की मेंटल और इमोशनल हेल्थ बूस्ट होने लगती है। दरअसल, अपने बारे में जानकारी एकत्रित करने के बाद व्यक्ति का खुद के प्रति जुड़ाव बढ़ने लगता है।
इस बारे में बातचीत करते हुए गंगा राम हास्पिटल में साइकॉलोजिस्ट, सीनियर कंसलटेंट, डॉ आरती आनंद बताती हैं कि सेल्फ अनेलिसिस से व्यक्ति में बदलाव नज़र आने लगता है और वो किसी भी चैलेंज को डील कर सकता है। इससे व्यक्ति अपनी खूबियों के साथ अपनी कमियों को जानता है और उसे दूर करने की दिशा में कार्य भी करने लगता है। इससे व्यक्ति में सकारात्मक बदलाव आने लगते हैं। आत्म विशलेषण को नियमित तौर पर करने से व्यक्ति अपने साथ साथ सोसायटी के लिए भी अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगता है।
व्यक्ति जीवन में कई प्रकार की शारीरिक समस्याओं की चपेट में आता है, जिसे जांच और उपचार की मदद से दूर किया जा सकता है। मगर अर्तंमन में छिपी भावनाएं व्यक्ति जीवन भर अपने अंदर कैद करके रखता है। इतना ही नहीं काम के बोझ के चलते व्यक्ति जीवन की छोटी छोटी खुशियों को सेलिब्रेट करना भूल जाता है और अंदर छिपे हुनर को भी बेवजह दबाए रखता है।
ऐसे में आत्म विश्लेषण करके व्यक्ति अपनी कमज़ोरी और स्ट्रैंथ दोनों की ही भली भांति पहचान कर पाता है। वो जान पाता है कि किन आदतों को नियंत्रित करके वो अपने टारगेट्स को अचीव कर सकता है। आत्म विश्लेषण के दौरान व्यक्ति अपने आचरण, सोच, अनुभव, मौलिक सिद्धातों और विचारों का विश्लेषण करता है। इसका मकसद अपने बारे में जानकारी एकत्रित करना होता है।
दिनभर में कई बार ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जब व्यक्ति गुस्से में आ जाता है और इरिटेट होने लगता है। आत्म मूल्यांकन के वक्त इस बात का ख्याल रखें कि आप कितने वक्त तक गुस्से को अवॉइड करते है और अपना धैर्य बनाए रखते हैं। इससे व्यक्ति अपनी क्षमताओं को भली भांति जान पाता है।
चाहे ऑफिस में आपके कलीग्स हो या घर पर फैमिली मेंबर उनके साथ अपने व्यवहार को इवैल्यूएट करना आवश्यक है। इससे व्यवहार में बढ़ने वाली तब्दीली के बारे में आसानी से जान पाएंगे। इससे इस बात की भी जानकारी मिल पाती है कि नए लोगों से मिलने जुलने में आपको कितना वक्त लगता है।
अपने व्यक्तित्व का आत्म विशलेषण करने का अर्थ केवल अपनी अच्छाइयों के बारे में बात करना नहीं होता है बल्कि अपने अवगुणों और कमियों को स्वीकारना भी है। जैसे कोई व्यक्ति आलसी है या किसी व्यक्ति को बात बात पर गुस्सा आने लगता है, तो सेल्फ अनेलिसिस के ज़रिए इंसान अपनी गलतियों से सीख लेकर आगे बढ़ जाता है।
अधिकतर लोग काम को पूरी इमानदारी और इंटरस्ट से करते हैं। मगर इसी भीड़ में कुछ चुनिंदा लोग ऐसे भी हैं, जो काम को करने से कतराने लगते हैं। सेल्फ अनेलिसिस के दौरान इस बात को समझें कि काम के प्रति आप कैसा भाव रखते हैं, जिससे आप अपनी को दूर करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर बढ़ सकते हैं।
कुछ लोग पार्टी करना पसंद करते हैं, कुछ परिवार के साथ समय बिताते हैं, तो कुछ एकांत में रहकर अपनी खुशी सेलिब्रेट करते हैं। व्यक्ति को इस बात के बारे में जानना आवश्यक है कि उसकी खुशी किसी चीज़ में छिपी है। जिम्मेदारियों के साथ साथ अपनी इच्छाओं और चाहतों पर फोकस करना भी आवश्यक है।
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