राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-2021) के अनुसार, भारत में एक बड़ी संख्या में महिलाओं को घरेलू हिंसा (Domestic Violence) का सामना करना पड़ता है। भारत में 18 से 49 वर्ष की आयु की लगभग 30 प्रतिशत विवाहित महिलाओं ने कभी न कभी घरेलू या यौन हिंसा का अनुभव किया है। यह सच है कि शरीर से घाव मिट सकते हैं। मन पर लगी चोटें लंबे समय तक रह सकती हैं। महिलाएं भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आघात का शिकार हो सकती हैं। घरेलू हिंसा के आघात से उबरने (how to heal from domestic violence trauma) के लिए क्या उपाय किये जा सकते हैं। यह जानने के हेल्थ शॉट्स ने मनोचिकित्सक और लाइफ और बिजनेस कोच डॉ. चांदनी तुगनैत से बात की।
यह देखा गया है कि घरेलू हिंसा के कारण सबसे पहली बात जो सामने आती है, वह है दुर्व्यवहार करने वालों द्वारा पहुंचाई गई शारीरिक क्षति। इससे प्रभावित महिलाएं अक्सर चोट, फ्रैक्चर, आंतरिक चोटों और अन्य शारीरिक बीमारियों से पीड़ित हो जाती हैं। डॉ. तुगनैत कहती हैं, ‘इन चोटों पर चिकित्सकीय ध्यान देने की जरूरत है। अन्यथा इससे लम्बे समय तक हेल्थ प्रॉब्लम का कारण बन सकती हैं। दुर्व्यवहार के कारण यौन संचारित संक्रमण (Sexually Transmitted Infection), अवांछित गर्भधारण और लंबे समय तक दर्द का अनुभव हो सकता है।
घरेलू हिंसा के कारण महिलाओं को अक्सर डर, चिंता और स्ट्रेस डिसऑर्डर का सामना करना पड़ता है। धमकियों और अपमानजंक व्यवहार के कारण व्यक्ति टूट जाता है। भावनात्मक आघात से अवसाद, आत्मसम्मान में कमी और मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम होने का खतरा बढ़ सकता है।
अपमानजनक संबंधों के कारण महत्वपूर्ण वित्तीय चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है। दुर्व्यवहार करने वाले सदस्य पर निर्भरता पीड़ित को वित्तीय समस्या से जूझने का कारण बन सकता है। अपमानजनक स्थिति से बचने के लिए पीड़ित संसाधनों के बिना भी रह जाते हैं। वित्तीय बाधाएं लोगों को कानूनी मदद लेने, सुरक्षित आवास हासिल करने या चिकित्सा जैसे आवश्यक संसाधनों तक पहुंचने से रोक सकती हैं। यह आर्थिक अस्थिरता उनके स्वतंत्र रूप से जीवन जीने के रास्ते में बाधा खड़ी कर सकती है।
घरेलू हिंसा अक्सर पीड़ितों को उनके समर्थन नेटवर्क से अलग कर देती है।
इससे वे अकेले महसूस करते हैं। वे परिवार और दोस्तों से कट जाते हैं। दुर्व्यवहार करने वाले लोग पीड़ित के सामाजिक संबंधों को तोड़ने और प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। इससे पीड़ित के लिए मदद मांगना या दुर्व्यवहार का खुलासा करना मुश्किल हो जाता है। एक मजबूत सहायता प्रणाली के अभाव में स्थिति और भी बदतर हो जाती हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि इससे निराशा की भावना पैदा हो सकती है।
घरेलू दुर्व्यवहार से उबरना एक चुनौतीपूर्ण यात्रा हो सकती है। डॉ. तुगनैत कहती हैं कि इसके लिए व्यावहारिक रणनीतियों के साथ-साथ परिवार और दोस्तों का सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण रखना भी जरूरी है। पेशेवर की भी मदद ली जा सकती है।
घरेलू हिंसा का सामना कर चुकी महिलाओं को सबसे पहले अपने ऊपर ध्यान देना चाहिए। इससे उसे अपना जीवन जीने में सहूलियत होगी। चाहे योग का अभ्यास करना हो, किसी पसंदीदा शौक में शामिल होना हो, प्रकृति में समय बिताना हो या बस शांति के साथ समय बिताना हो। ये सभी सेल्फ केयर में मदद क्र सकती हैं, जो मन, शरीर और आत्मा को पोषण दे सकता है। धीरे-धीरे वे गतिविधियों में समय और ऊर्जा निवेश कर साधारण सुखों में भी खुशी पा सकती हैं। यह उन्हें खुशी और संतुष्टि प्रदान करेंगी।
ठोस सपोर्ट सिस्टम बनाना जरूरी है। इससे हील होने में मदद मिलेगी। उन मित्रों, परिवार या सहायता समूहों के साथ जुड़ना जरूरी है, जो उनके अनुभवों को समझते हैं। उनकी बातों को मान्यता देते हैं। वे अपनेपन की बहुत जरूरी भावना प्रदान कर सकते हैं। कहानियां शेयर करना, सलाह मांगना और दूसरों को सहायता प्रदान करने से अलगाव की भावनाओं का मुकाबला हो सकता है। इससे सहानुभूति और समझ का नेटवर्क बन सकता है।
डॉ. तुगनैत कहती हैं कि क्षमा करना भी हीलिंग प्रोपर्टी वाला साबित होगा। घरेलू हिंसा से पीड़ितों को पिछली गलतियों या हानिकारक कार्यों के बोझ से मुक्त होने की जरूरत है। क्रोध और नाराजगी को दबाए रखना व्यक्तिगत विकास और खुशी के रास्ते में आ सकता है। क्षमा से नकारात्मक भावनाओं को दूर करने, अपनी शक्ति पुनः पाने और हील होने में मदद मिलती है।
घरेलू हिंसा के बाद स्वस्थ सीमा स्थापित करना जरूरी है। रिश्तों में स्वीकार्यता और अस्वीकार्यता को स्पष्ट रूप से परिभाषित करें। इससे वे जीवन पर नियंत्रण हासिल कर सकते हैं। सीमा निर्धारित करने से सुरक्षित वातावरण और स्वस्थ रिश्ते बनाने में मदद मिलती है। यह सम्मान, विश्वास और आपसी समझ पर आधारित होते हैं।
घरेलू हिंसा से पीड़ित लोग अक्सर अपने साथ हुए विश्वासघात के कारण विश्वास संबंधी समस्याओं से जूझते हैं। दोबारा भरोसा करना सीखने में समय लगता है, लेकिन यह संभव है। इसमें धीरे-धीरे विश्वसनीय लोगों के लिए खुलना, प्रोफेशनल कि मदद लेना भी शामिल है। लोगों पर विश्वास करें, स्वस्थ संबंध बनाएँ। इससे ख़ुशी और शान्ति दोनों मिल सकती है।
पेंटिंग, मूर्तिकला या लेखन जैसी रचनात्मक कार्यों में संलग्न होने से आत्म-अभिव्यक्ति और भावनात्मक रूप से मजबूत होने में मदद मिलती है। अपनी मनपसन्द कला का पता लगायें। विभिन्न माध्यमों के साथ प्रयोग कर उसमें इंवोल्व होने से बहुत खुशी मिल सकती है।
प्रकृति से जुड़ना एक सकारात्मक और परिवर्तनकारी अनुभव हो सकता है। पीड़ित को बाहर समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करें। चाहे वह पार्क में सैर के लिए जाना हो, पहाड़ों में लंबी पैदल यात्रा करना हो या समुद्र के किनारे बैठना हो। ये सभी क्रियाएं उनमें शांति और खुशी का अनुभव दे सकता है।
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