आज से कुछ महीने पहले लिंथोई चनंबम ने जब बोस्निया की राजधानी साराजेवो में ब्राजील के रीस बियांका को 1-0 से हराकर विश्व कैडेट जूडो चैंपियनशिप के 57 किग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीता, तो पूरे देश में जश्न मनाया जाने लगा। जश्न क्यों न हो, क्योंकि ऐसी जीत जूडो में पहले किसी ने दर्ज नहीं की थी। नया इतिहास रचने पर लिंथोई भी बहुत खुश और उत्साहित थीं। जब वे इंफाल हवाई अड्डे पर पहुंची, तो उनका स्वागत पारंपरिक मणिपुरी संगीत समूह द्वारा किया गया। लिंथोई को यह संगीत विशेष रूप से प्रिय है। इसमें मणिपुरी स्ट्रिंग वाद्य यंत्र पेना और ड्रम बजाया जाता है। उन्हीं संगीतमयी और भव्य स्मृतियों को फिर से जिंदा करने के लिए हम हेल्थ शॉट्स पर ले आए हैं लिंथोई चनंबम को। आइए जानते हैं इस छोटी सी उम्र में यह गौरव अपने नाम करने वाली लिंथोई (linthoi chanambam) के अब तक के सफर और संघर्ष के बारे में।
लिंथोई चनंबम मात्र 8 साल (2014) की थीं, जब उन्होंने जूडो के लिए खेलना शुरू कर दिया। उन्होंने जूडो खेलने की प्रेरणा कोसोवो गणराज्य के पहले ओलंपिक जूडो चैंपियन मजलिंडा केल्मेंडी से ली। केल्मेंडी अब खेल से रिटायर हो चुके हैं। पर उन्हें इस खेल को सिखाने की जिम्मेदारी ली मयाई लांबी स्पोर्ट्स अकादमी, मणिपुर में जूडो के मुख्य कोच सुरजीत मेइतेई ने।
मेइतेई को इस बात का विश्वास है कि लिंथोई एक दिन ओलंपिक पोडियम पर जरूर खड़ी होंगी। और लिंथोई लगातार उनके मार्गदर्शन में मेहनत करती रहीं। जबकि इन दिनों लिंथोई के कोच हैं ममुका किज़िलाशविली। लिंथोई का मानना है कि बिना सहयोग के कोई भी कार्य संपन्न नहीं होता है।
इसलिए वे हेल्थ शॉट्स से कहती हैं, “ इस उपलब्धि के लिए मैं अपने सभी कोच और माता-पिता को धन्यवाद देना चाहती हूं, जिन्होंने मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया। मेरी सफलता का कोई विशेष राज नहीं है। कड़ी मेहनत और समर्पण का ही फल है मेरी सफलता।”
बचपन से ही लिंथोई एक खिलाड़ी बनने का सपना देखती थीं। उनके गांव में जूडो बहुत प्रसिद्ध है। इसलिए उन्होंने जूडो खेल को चुना। वे अभी मणिपुर के हायर सेकेंडरी स्कूल (सी.टी.) में 11 वीं कक्षा में हैं। वे पढ़ाई को भी जारी रखना चाहती हैं। राह कठिन है और उन्हें दो गुनी मेहनत करनी पड़ती है।
लिंथोई कहती हैं, ‘पढ़ाई और खेल को समान रूप से बनाए रखना आसान नहीं है। लेकिन मैं 24 घंटे प्रशिक्षण नहीं ले रही होती हूं। एक दिन में अधिकतम साढ़े तीन घंटे तक का लगातार प्रशिक्षण लेना पड़ता है। इसलिए दिन में कम से कम 1-2 घंटा मैं पढ़ाई के लिए जरूर समय निकाल लेती हूं।”
लिंथोई को प्रशिक्षण के क्रम में अलग-अलग राज्यों में जाना पड़ता है। जब उनसे बात हो रही थी, तो वे जूडो प्रशिक्षण के लिए बेल्लारी, कर्नाटक में थीं। हालांकि इस साल के लिए उनका कोई मुकाबला नहीं है। इसलिए वे देश के बाहर कैंप में भाग लेने की योजना बना रही हैं।
मात्र 16 साल की उम्र में लिंथोई ने अलग- अलग प्रतियोगिता में कई पदक अपने नाम कर लिए। कैडेट विश्व चैंपियनशिप बोस्निया (स्वर्ण) के अलावा, उन्होंने एशियन ओशिनिया कैडेट चैंपियनशिप 2021 (कांस्य), एशियन ओशिनिया जूनियर चैंपियनशिप 2021 (रजत), एशियाई चैंपियनशिप बैंकोक (स्वर्ण) हासिल किया। कड़ी मेहनत को मूलमंत्र मानने वाली लिंथोई कहती हैं, ‘मेरा अंतिम लक्ष्य ओलंपिक चैंपियन बनना है। इससे पहले मैं रूकना नहीं चाहती हूं।’
लिंथोई कहती हैं, मैं अपनी और अपने बाद वाली पीढ़ी से कहना चाहती हूं कि केवल खेल या पढ़ाई ही नहीं, आप जिस क्षेत्र में भी आगे बढ़ना चाहते हैं, तो उसके लिए दिल से प्रयास करें। शुरूआती असफलता मिलने पर उसे कभी नहीं छोड़ें। परिणाम बहुत जल्द नहीं मिल सकता है, लेकिन चलते रहें। आप एक दिन निश्चित रूप से सफल होंगे।
यह भी पढ़ें :- धरती मेरी मां हैं और ये पेड़ मेरे बच्चे, मिलिए राजस्थान की ट्री वुमेन अनुपमा तिवाड़ी से