कोई भी चीज आप जिसके प्यार में होते हैं, वह आपको दुनिया की सबसे हसीन चीज लगती है। फिर चाहें वह कोई व्यक्ति हो या कोई खेल। भारतीय हॉकी की धुरंधर रितु रानी के लिए हॉकी वही प्यार है। जिसने उसे प्यार और प्रसिद्धी ही नहीं गहरा तनाव और अवसाद भी दिया। पर अब रितु रानी फिर से मैदान में लौट आई हैं और तैयार हैं अपनी हॉकी स्टिक के साथ।
रितु रानी भारत की प्रसिद्ध हॉकी प्लेयर हैं और नेशनल हॉकी टीम की कप्तान भी रह चुकी हैं। हाफबैक के रूप में खेलने वाली रितु के नेतृत्व में भारतीय महिला हॉकी टीम वर्ष 2014 एशियाई खेलों में ब्रॉन्ज मेडल जीत पाई। उनकी कैप्टनशिप में ही इंडियन टीम 2014-15 के महिला हॉकी वर्ल्ड लीग सेमीफाइनल में पांचवें स्थान पर आ पाई, जिससे 36 वर्षों के बाद 2016 समर ओलंपिक के लिए भारत क्वालीफाई कर पाया।
मात्र 9 वर्ष की उम्र में हरियाणा के शाहाबाद कुरुक्षेत्र जिला की रितु ने हॉकी खेलना शुरू किया था। रितु ने अपने नेतृत्व में देश को जीत के कई मेडल दिलाए। उन्होंने अपने करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे। इसके बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और खुद की फिटनेस पर हमेशा ध्यान दिया।
रितु के भाई भी हॉकी खेलते हैं, उन्हें देखकर ही उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। रितु के भाई ट्रेनिंग के लिए कोच सरदार बलदेव सिंह के पास जाते थे। उन्होंने ही रितु को अपने साथ लाने को कहा था। और फिर रितु शाहाबाद हॉकी एकेडमी में हॉकी के गुर सीखने लगीं।
वे बताती हैं, ‘जब मैंने हॉकी खेलना शुरू किया, तो मुझे अपने रिलेटिव्स से कई बातें सुननी पड़ती थीं, क्योंकि हॉकी तो शॉट्स पहनकर खेला जाता है। लेकिन मेरे परिवार ने हमेशा मेरा साथ दिया। मुझे याद है कि मुझे हॉकी और पढ़ाई दोनों साथ-साथ करनी पड़ती थी। इसलिए मैं अपने साथ स्कूल ड्रेस लेकर ग्राउंड पर जाती थी। सुबह प्रैक्टिस कर वहीं से स्कूल चली जाती थी।’
रितु मात्र 14 साल की उम्र में भारत की सीनियर टीम में शामिल हो गईं और मात्र 20 साल की उम्र में वे कैप्टन बन गईं। वे 2006 में मैड्रिड वर्ल्ड कप में सबसे युवा खिलाड़ी के रूप में टीम का हिस्सा थीं। रितु ने खेल कोटे से पहले रेलवे ज्वाइन किया और फिर बाद में हरियाणा पुलिस में शामिल हो गईं। उन्होंने अपने नेतृत्व में भारत को कई जीत दिलाई। लेकिन 2016 समर ओलंपिक में भारत को शामिल कराने के बावजूद उन्हें भारतीय टीम से बाहर कर दिया गया। इसकी वजह से कुछ दिनों के लिए उन्होंने हॉकी से संन्यास भी ले लिया था।
रितु कहती हैं, ‘जब मैं ओलंपिक के लिए नहीं चुनी गई, तो यह मेरे लिए एक सदमे की तरह साबित हुआ। टीम की कप्तान होने और टीम के क्वालिफाई करने के बावजूद 2016 में मुझे ओलंपिक के लिए एक खिलाड़ी के रूप में नहीं चुना गया। इससे मैं डिप्रेशन की शिकार हो गई। मैं इतनी दुखी हुई कि मैंने खेल से संन्यास भी ले लिया। लेकिन पति हर्ष शर्मा और परिवार हमेशा मेरे साथ बने रहे। उन लोगों ने मुझे हिम्मत नहीं हारने दिया और मैंने फिर से खेलना शुरू कर दिया। मैंने अपनी फिटनेस और स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान दिया और खुद को डिप्रेशन से बाहर निकाला।’
रितु ने जब दोबारा खेलना शुरू किया, तो कुछ दिनों के बाद वे प्रेगनेंट हो गईं। बच्ची का जन्म सिजेरियन से हुआ था, इसलिए दोबारा ग्राउंड पर लौटने में उन्हें साल भर का समय लग गया। वे कहती हैं, प्रेगनेंसी के बाद उनका 15 किलो वजन बढ़ गया था। सिर्फ वर्कआउट और विल पावर की मदद से मैंने न सिर्फ वेट लॉस किया, बल्कि खुद को फिट भी रखा। मैंने बॉडी वेट एक्सरसाइज और डाइट के अनुसार भोजन लिया।
ऑयली फूड और जंक फूड को अपने से दूर रखा। अब मैं दोबारा से हॉकी खेलने लगी हूं और राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली प्रतियोगिता में कुछ महीनों बाद भाग भी लेने वाली हैं।
रितु कहती हैं, यदि रूटीन में हॉकी खेला जाए, तो इससे भी आप फिट रह सकती हैं। सप्ताह में सिर्फ 4 दिन हॉकी खेलने पर भी एक्सट्रा फैट बर्न हो सकते हैं। इसके लिए आप दिन में वर्क आउट करें और शाम में 1 घंटा हॉकी खेलें। रितु बेटी को भी हॉकी प्लेयर बनाना चाहती हैं। वे उसे अपने साथ हॉकी ग्राउंड ले जाती हैं और अपने खेल के वीडियोज भी उसे दिखाती हैं।
नेशनल स्पोट्र्स डे पर रितु संदेश देती हैं, आज के समय में खेलना बहुत जरूरी है। हॉकी ही नहीं, आप कोई भी स्पोर्ट खेल सकती हैं। इससे न सिर्फ आपका शरीर कई प्रकार की बीमारी से दूर रहेगा, बल्कि इधर-उधर की बातों में उलझने की बजाय दिमाग अपने लक्ष्य पर केंद्रित रह पाएगा। हॉकी टीम वर्क गेम है, इसलिए यह सामाजिक समरसता भी सिखाती है।
भारत में हर वर्ष 29 अगस्त को हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद सिंह की जयंती के अवसर पर खेल दिवस मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद के नेतृत्व में 1928, 1932, 1936 में भारत ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत पाया था।
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