यौन संचारित रोग यानि एसटीडी संक्रमण का एक समूह है जो मुख्य रूप से यौन संपर्क से फैलता हैं। ये संक्रमण सीमेन, सलाइवा और वैजिनल फ्लुइड्स से इन्फेक्शन्स ट्रांसमिट होता है। आमतौर पर योनि, गुदा या मौखिक सेक्स से फैलते हैं।
यौन संचरित रोग एवं यौन संक्रमण दुनिया भर में एक बढ़ती हुई समस्या है। इसके कारण हर साल बहुत सारे युवा अपना स्वास्थ्य, आत्मविश्वास और संबंधों में हानि का सामना कर रहे हैं। असुरक्षित यौन संबध, संक्रमित सूईं या खून के कारण ये रोग फैल सकते हैं। जबकि हाइजीन की कमी महिलाओं और पुरूषों दोनों में यौन संक्रमणों का कारण बनते हैं।
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में अपने जीवनकाल के दौरान हर 4 में से 1 इंसान सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज से ग्रस्त होता है। 2020 के आंकड़ों के अनुसार 37.4 करोड़ लोगों में इस संक्रमण का खतरा पाया गया था। क्लैमाइडिया के 12.9 करोड़, गोनोरिया से ग्रस्त लोगों की तादाद 8.2 करोड़, सिफलिस से 7.1 करोड़ लोग ग्रस्त पाए गए और ट्राइकोमोनिएसिस से ग्रस्त लोगों की तादाद 15.6 करोड़ है। इस संक्रमण का खतरा युवाओं में तेज़ी से बढ़ रहा है।
दरअसल, यौन अंगों की साफ सफाई और सेक्स के बाद स्वच्छता का ख्याल न रख पाने के कारण बैक्टीरियल इन्फेक्शन का सामना करना पड़ता है। ये महिलाओं और पुरूषों दोनों में यौन संचारित रोग की संभावना को बढ़ा सकता है। इससे शरीर में हर्पीस, गोनोरिया और सिफलिस जैसे एसटीआई का जोखिम बढ़ने लगता है। इसके अलावा प्रेगनेंसी के दौरान बच्चे में एसटीआई के ट्रांसमिशन के कारण लो बर्थ वेट, आई प्रॉबल्म और सेप्सिस का खतरा बना रहता है।
कंडोम के बिना सेक्स करना इस समस्या का प्रमुख कारण साबित है। एसटीआई यौन गतिविधि के माध्यम से फैलता है। वहीं कुछ मौखिक सेक्स से भी फैलते हैं। इसके अलावा कई यौन साथी यानि अगर किसी एक व्यक्ति का विभिन्न व्यक्तियों के साथ यौन संबंध हैं, तो ऐसे लोगों में भी संक्रमण का खतरा बहुत बढ़ जाता है।
इन दिनों टैटू उपकरण का अधिक उपयोग एसटीडी का कारण साबित हो सकता है। दूषित उपकरणों को सेनिटाइज़ किए बगैर इस्तेमाल करने से यौन संचारित रोग फैल सकते हैं। इससे स्किन कैंसर की समस्या का भी जोखिम बढ़ने लगता है।
यौन संचारित रोग गर्भावस्था में भी शरीर को प्रभावित करते है। प्रसव और स्तनपान के दौरान मां से बच्चे में एसटीडी का संचरण होने लगता है। इससे बच्चे के शरीर में कई लक्षण दिखने लगते है। ऐसे बच्चों का बर्थवेट आम बच्चों की तुलना में कम होता है। इसके अलावा कमज़ोर दृष्ठि और जन्मजात विकृति का सामना करना पड़ता है।
वे लोग जो नशे में रहते हैं और नशा करने के लिए अन्य लोगों से नीडल साझा कर लेते हैं। उनमें बढ़ने वाला रक्त संपर्क यौन संचारित रोग का कारण साबित होता हैं। नशीली दवाओं के इंजेक्शन के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली नीडल्स से यौन संचारित रोग जैसे एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी फैल सकते हैं।
अमूमन देखा जाता है | यौन संचारित रोग के प्रकार1. पेल्विक इंफ्लामेटरी डिज़ीज़सीडीसी के अनुसार गोनोरिया, क्लैमाइडिया और ट्राइकोमोनिएसिस आम एसटीआई हैं जो समय पर उपचार नमिलने पर पीआईडी का कारण बन सकते हैं। महिला प्रजनन अंगों के इस संक्रमण को एक बीमारी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। हांलाकि कुछ लोगों में इसके लक्षण नहीं पाए लेकिन कुछ लोगों में कोई लक्षण नहीं होते हैं। इस समस्या से ग्रस्त होने पर पेल्विक पेन, वेजाइनल ब्लीडिंग और डिसचार्ज का सामना करना पड़ता है। 2. सिफलिससिफलिस एक असामान्य संक्रमण है, जो एसटीआई का ही रूप है। संक्रमण सबसे पहले जननांगोंए गुदा या मुंह पर एक या अधिक छोटे गोल घावों के रूप में दिखाई देता है। समय पर उपचार न किया जाए, तो गंभीर लक्षणों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या से ग्रस्त लोगों को मेमोरी लॉस, सुनने और देखने की क्षमता में कमी और हृदय रोग का सामना करना पड़ता है। 3. एचपीवीनेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के अनुसार एचपीवी लगभग सभी सर्विकल कैंसर का कारण बनता है। इसमें 90 फीसदी से अधिक गुदा कैंसर, 75 फीसदी योनि कैंसर और 60 फीसदी से अधिक पेनाइल कैंसर का कारण साबित होता है। एचपीवी यानि ह्यूमन पेपिलोमावायरस, जो वायरस का एक समूह है और कैंसर का कारण साबित होता है। एचपीवी के 200 प्रकार हैं, जो यौन संपर्क से बढ़ता है। इसके चलते सूजन, गांठए, रक्तस्राव और दर्द बढ़ जाता है। 4. एड्सएचआईवी प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है और अन्य वायरस या बैक्टीरिया के संक्रमण और कुछ कैंसर विकसित होने के जोखिम को भी बढ़ा सकता है। इसके चलते वेटलॉस, इंफे्क्शन, थकान और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का सामना करना पड़ता है। |
इसकी मदद से यौन संचारित संक्रमण का पता लगाने में मदद मिलती है।
खाली पेट सुबह खून के नमूने लेकर इस समस्या की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
इस टेस्ट को करने के लिए सलाइवा सैंपल लिया जाता है, ताकि समस्या का पता लगाया जा सके।
एंटीबायोटिक्स दवाओं का सेवन करने से सिफलिस और गोनोरिया के विकास को रोकने में मदद मिलती हैं।
डॉक्टर की जांच के बाद उनकी सलाह से एंटीवायरल दवाओं का भी सेवन किया जाता है।
एक से अधिक सक्स पार्टनर्स से यौन संबध बनाने से एसटीडी का जोखिम बढ़ जाता है। इसके लिए हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस बी का टीका लगवाएं।
एसटीआई बैक्टीरिया, वायरस और पेरासाइट्स के कारण बढ़ने लगते हैं। इसके कारण शरीर में हर्पीस, गोनोरिया और सिफलिस जैसे एसटीआई के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।
ज्यादातर एसटीआई पुरुषों और महिलाओं दोनों को ही प्रभावित करते हैं। हांलाकि कुछ मामलों में इनसे होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं महिलाओं के लिए अधिक गंभीर हो सकती हैं। यदि एसटीआई बच्चे को हो जाता है, तो यह गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है।
एसटीआई के लक्षण बेहद हल्के बने रहते हैं। अधिकतर लोगों को संक्रमण की जानकारी नहीं मिल पाती है। इसके बावजूद एसटीआई हानिकारक हो सकता हैं और ये सेक्स के दौरान फैल सकता हैं।
यौन संचारित रोग संक्रामक होते हैं। ये शरीर के संक्रमित हिस्से को छूने और खास तौर से जननांगों को छूने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने का खतरा बना रहता हैं। ये माँ से नवजात शिशु में भी फैल सकता हैं। इसे बढ़ने से रोकने के लिए समय पर इलाज करवाना ज़रूरी है।
इसके लिए किसी भी यौन गतिविधि में शामिल न हों।इसके अलावा स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं और संतुलित आहार लें। अपने साथी के साथ एसटीआई के बारे में खुलकर चर्चा करें। इसके अलावा समय पर डॉक्टर से जांच करवाएं। उसके बाद हर 3 से 6 महीने में जांच के लिए जाएं।