अनियमित खानपान और अनहेल्दी लाइफस्टाइल पाचन संबंधी समस्याओं का कारण साबित होती है। अधिकतर लोगों को दस्त, ब्लोटिंग और पेट दर्द की समस्या का सामना करना पड़ता है। अगर शरीर को बार–बार इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो ये अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative colitis) का संकेत हो सकता है। ये एक प्रकार का सूजन वाला आंत्र रोग (Inflammatory bowel disease) यानि आईबीडी (IBD) है जो पाचन तंत्र के एक हिस्से में सूजन और घाव पैदा कर देता है। इस स्थिति को अल्सर कहा जाता है। अल्सरेटिव कोलाइटिस बड़ी आंत यानि लार्ज इंटेस्टाइन की सबसे भीतरी परत को प्रभावित करता है, जिसे मलाशय कहा जाता है। इस समस्या के लक्षण एकदम से बढ़ने की जगह धीरे धीरे शरीर में विकसित होने लगते हैं।
अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative colitis) एक क्रॉनिक ऑटोइम्यून डिज़ीज है, जो कोलन और मलाशय में सूजन का कारण बनने लगती है। इससे आंतों की परत में अल्सर का सामना करना पड़ता है, जिससे ब्लीडिंग और म्यूकस लीकेज की समस्या बनी रहती है। दरअसल, इस समस्या के चलते कोलन की परत पर अल्सर बन जाता है, जो मलाशय से शुरू होकर ऊपर की ओर फैलता है। इसके चलते बार बार मल त्याग और बलगम और मवाद का स्राव होने लगता है।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार अल्सरेटिव कोलाइटिस के 8 से 14 फीसदी रोगियों के परिवार में अल्सरेटिव कोलाइटिस का इतिहास होता है और प्रथम श्रेणी के रिश्तेदारों में रोग विकसित होने का जोखिम चार गुना अधिक होता है। इस समस्या का जोखिम महिलाओं के अलावा पुरूषों में भी देखने को मिलता है। इस रोग की शुरुआत की अधिकतम आयु 30 वर्ष से 40 वर्ष के बीच होती है। हांलाकि दुनिया भर में अल्सरेटिव कोलाइटिस के मामले समय के साथ बढ़ रहे है।
द लैंसेट के अनुसार ये रोग अक्सर परिवार के सदस्यों में बढ़ने का जोखिम बना रहता है। रिपोर्ट के मुताबिक अगर आपके माता पिता या भाई बहन में से कोई इस बीमारी से पीड़ित है, तो आपका जोखिम 10 गुना बढ़ जाता है।
आम तौर पर 30 से 40 की उम्र में अल्सरेटिव कोलाइटिस के मामले बढ़ने लगते है। वहीं 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में इस समस्या के विकसित होने की संभावना और अधिक बढ़ जाती है।
ऑयली फूड इस समस्या के लक्षणों को दूसरों की तुलना में अधिक ट्रिगर करते हैं। लगातार बहुत अधिक वसा वाले खाद्य पदार्थ खाने से इस समस्या का खतरा बढ़ने लगता है। इसके अतिरिक्तए क्लिनिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोलॉजी में 2021 के रिसर्च के मुताबिक लो फैट्स और उच्च फाइबर वाला आहार खाने से वास्तव में जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
अल्सरेटिव कोलाइटिस एक ऑटोइम्यून कंडीशन है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ टिशूज पर हमला करती है। प्रतिरक्षा प्रणाली आम तौर पर संक्रमण के कारण को नष्ट करने के लिए रक्त में सफेद रक्त कोशिकाओं को जारी करके संक्रमण से लड़ती है। मगर अल्सरेटिव कोलाइटिस में प्रतिरक्षा प्रणाली कोलन में फ्रेंडली बैक्टीरिया को गलत समझती है, जो पाचन में सहायता करते है।
स्टूल पास करने के साथ ब्लड नज़र आता है, जो चमकीला लाल, गुलाबी या लगभग काले रंग भी हो सकता है। हर बार मल के साथ ब्लीडिंग होने लगती है।
मॉडरेट डिज़ीज़ वाले लोगों को दिन में 4 से 6 बार मल त्याग करना पड़ता है क्योंकि आपका सूजन वाला कोलन भोजन को ठीक से प्रोसेस नहीं कर सकता है।
यह अचानक और लगातार महसूस होने वाली भावना है कि आपको मल त्याग करने की आवश्यकता है, लेकिन जब आप जाने की कोशिश करते हैं तो कुछ नहीं होता है।द्ध
पेट में हल्का दर्द और बेचैनी बनी रहती है। इसके चलते लोअर लेफ्ट एबडॉमन पर दबाव, ऐंठन या सूजन महसूस होने लगती है।
आहार का बड़ा हिस्सा शरीर में उचित तरीके से अवशोषित नहीं हो पाता है। इसके चलते धीरे धीरे वेटलॉस कस जोखिम बढ़ने लगता है।
हल्का बुखार हर समय बना रहता है। इसके चलते पुरानी सूजन आपके तापमान को बढ़ा सकती है और आलस्य का भी सामना करना पड़ता है।
जोड़ों में दर्द और थकान हड्डियों में गहराई तक पहुंच जाती है। दिनभर थकान की स्थिति बनी रहती है और शरीर को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
हर समय दस्त की हरारत बनी रहती है, जिसके चलते भूख कम लगती है और खाना खाने का अधिक मन नहीं करता है। हर पल पेट भरा हुआ महसूस होता है।
अल्सरेटिव कोलाइटिस का पता लगाने के लिए स्टूल परीक्षण किया जाता है। इसके लिए कैलप्रोटेक्टिन टैस्ट किया जाता हैं, जिससे आंतों में बढ़ने वाली सूजन का पता लगाया जा सके। इस परीक्षण के तहत मल के अलावा उसके साथ आने वाले रक्त या वाइट ब्लड सेल्स की जांच की जाती है। इसकी मदद से अन्य संक्रमणों का पता आसानी से लगाया जा सकता है। इसके लिए एक साफ और स्टरलाइज़ कंटेनर लेकर मल का नमूना दिया जाता है और उसे जांच के लिए लैब में भेजा जाता है।
रक्त के सैपल की मदद से शरीर में संक्रमण और सूजन के संकेतों की जांच की जाती है। रक्त परीक्षण कुछ एंटीबॉडी प्रोटीन की भी जांच करता है, जिन्हें पेरिन्यूक्लियर एंटीन्यूट्रोफिल एंटीबॉडी और एंटीसैकरोमाइसिस सेरेविसिया एंटीबॉडी यानि एएससीए कहा जाता है।
इसके निदान के लिए डॉक्टर जीआई ट्रैक्ट को देखने और लक्षणों की जांच करने के लिए एक लचीली ट्यूब का उपयोग करते हैं, जिसमें एक कैमरा होगा। वे आंतों की परत को बेहतर तरीके से देखने के लिए इस प्रक्रिया के दौरान अल्ट्रासाउंड का भी उपयोग कर सकते हैं।
इसके लिए पेट के क्षेत्र के एक्स.रे, कम्प्यूटरीकृत टोमोग्राफी, सीटी स्कैन या एमआरआई का उपयोग कर सकता है, जिसमें आंतों की रुकावट जैसी जटिलताओं की जांच की जा सकती है।
इन दवाओं में मेसालामाइन शामिल होता है, जो आपकी आंतों में सूजन को कम करने में मदद करता है। हल्के से मध्यम अल्सरेटिव कोलाइटिस में डॉक्टर इसे प्रिस्क्राइब करते है। इन दवाओं को प्रतिदिन मौखिक गोली या रेक्टल सपोसिटरी के रूप में लिया जा सकता है।
स्टेरॉयड पूरे शरीर में सूजन को कम करने में मदद कर सकते हैं। इन्हें मौखिक रूप से या इंजेक्शन के रूप में दिया जा सकता है। स्टेरॉयड एक अल्पकालिक उपचार विकल्प हैए जिसे आमतौर पर केवल तभी निर्धारित किया जाता है जब आप मध्यम से गंभीर सूजन हों।
ये प्रतिरक्षा प्रणाली को संशोधित करने वाली दवाएँ दैनिक गोली या साप्ताहिक इंजेक्शन के माध्यम से दी जाती हैं।
बायोलॉजिक दवाएं प्रतिरक्षा प्रणाली में उन प्रमुख प्रोटीन को टारगेट करती हैं जो सूजन में शामिल होते हैं। हैं। गट एंड लिवर के अनुसार ये दवाएं आमतौर पर मध्यम से गंभीर यूसी के लिए निर्धारित की जाती हैं।
कुछ ऐसे मामले हैं जब सर्जरी पर विचार करने की आवश्यकता होती है, ताकि अनियंत्रित ब्लीडिंग या कोलन में बढ़ने वाली सूजन को कम किया जा सके।
ये संक्रामक रोग नहीं है। हालांकिए कोलाइटिस या कोलन में सूजन के कुछ कारण संक्रामक हो सकते हैं। इसमें बैक्टीरिया और वायरस के कारण होने वाली सूजन शामिल है। ये बीमारी किसी ऐसी चीज के कारण नहीं फैलती है जो किसी दूसरे व्यक्ति को संक्रमित कर सके।
अल्सरेटिव कोलाइटिस से ग्रस्त लोगों को ऑयली, फैटी, स्पाइसी और उच्च फाइबर वाले खाद्य पदार्थ को खाने से वरहेज करना चाहिए। इससे लार्ज इंटेस्टाइन की लाइनिंग प्रभावित होती है, जिससे इस रोग के लक्षण बढ़ने लगते हैं। इस दौरान डेयरी प्रोडक्ट्स, अल्कोलि और कार्बोनेटेड पेय पदार्थ से भी दूरी बनाकर रखें।
इस समस्या से राहत दिलाने के लिए अक्सर दवाएं दी जाती है। मगर समस्या गंभीर होने पर कोलन और रैक्टम को हटाने के लिए सर्जरी की जाती है। इससे स्वास्थ्य संबधी अन्य समस्याओं का जोखिम कम होने लगता है।
वे महिलाएं, जो अल्सरेटिव कोलाइटिस से ग्रस्त हैं, उन्हें पीरियड के दौरान हार्मोनल उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। दरअसल, शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर में आने वाले बदलाव इम्यून सिस्टम और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल फ़ंक्शन को प्रभावित करते हैं। इससे अल्सरेटिव कोलाइटिस वाले व्यक्तियों में सूजन बढ़ जाती है। साथ ही अनियमित पीरियड साइकिल का भी सामना करना पड़ता है।