सिकल सेल रोग (SCD) काफी जटिल कंडीशन होती है जो दुनियाभर में लाखों लोगों को प्रभावित करती है। इसमें व्यक्ति की इम्युनिटी और आंतरिक अंग भी प्रभावित होते हैं । जिससे व्यक्ति को गंभीर दर्द और अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
सिकल सेल रोग में रेड ब्लड सेल्स हंसिये के आकार की अर्थात सिकल शेप की हो जाती है। जिससे उन्हें ब्लड वेसल्स में आवाजाही करने में मुश्किल होती है। यही वजह है सिकल सेल रोग से पीड़ित व्यक्तियों को अकसर खून की कमी, दर्द और आंतरिक अंगों में क्षति का जोखिम रहता है। खास बात यह है कि ये एक जेनेटिक डिसऑर्डर है। जो अपने पेरेंट्स से मिले एबनॉर्मल जींस के कारण किसी व्यक्ति में होता है।
यह एक लाइफलॉन्ग कंडिशन है जिसके लिए समुचित मैनेजमेंट जरूरी है। इसके लक्षणों, कारणों और उपचारों को समझने से मरीज और उनके परिवार सशक्त बनते हैं और वे सिकल सेल रोग का अधिक कारगर तरीके से प्रबंधन कर सकते हैं। मेडिकल एडवांसमेंट और समुचित केयर से सिकल सेल रोग का बेहतर प्रबंधन किया जा सकता है और स्वास्थ्य बेहतर होता है, जिससे बेहतर ढंग से जीवन चलाया जा सकता है।
सिकल सेल रोग (SCD) आनुवांशिक विकार है, जो कि हिमोग्लोबिन प्रोडक्शन के लिए जिम्मेदार HBB जीन में म्युटेशन की वजह से होता है। इस म्युटेशन की वजह से एब्नॉर्मल हिमोग्लोबिन (HbS) बनता ह जिसके चलते रक्त में मौजूद लाल रक्त कणिकाएं (आरबीसी) काफी सख्त, चिपकने वाली और सिकल शेप की हो जाती हैं, और ऑक्सीजन लेवल कम हो जाता है।
सिकल सेल रोग (SCD) एक प्रकार का ऑटोसोमल रिसेसिव पैटर्न है। जिसके लिए सिकल सेल जीन की दो कॉपी (दोनों पेरेंट से एक-एक) की जरूरत होती है, जो रोग का कारण बनता है। एक सिकल सेल जीन और एक सामान्य जीन वाले लोग कैरियर्स (सिकल सेल ट्रेट) होते हैं और आमतौर से उनमें किसी किस्म का लक्षण नहीं होता लेकिन ऐसे लोगों से उनके बच्चों को जीन आनुवांशिकी से मिलती है।
सिकल सेल रोग के अलग-अलग लक्षण होते हैं और मरीजों में इनकी गंभीरता भी अलग होती है। कुछ आम लक्षणों में शामिल हैंः
अक्सर छाती, पेट, जोड़ों और हड्डियों में तेज दर्द महसूस होता है। यह उस स्थिति में होता है जबकि सिकल शेप वाले रेड ब्लड सेल्स रक्त नलिकाओं में रक्तप्रवाह में अवरोध पैदा करते हैं।
इसकी वजह से मरीज को हमेशा थकान महसूस होती है, पीलापन रहता है और सांस फूलने की शिकायत भी होती है, जो कि सिकल सेल्स के प्रीमैच्योरली ब्रेकडाउन होने की वजह से रक्त में हेल्दी रैड ब्लड सेल्स की कमी होने के कारण होता है।
हाथों और पैरों में सूजन (डेक्टलाइटिस):
यह नवजातों और छोटी उम्र के बच्चों में आम है।
मरीज के स्पलिन (तिल्ली) को क्षति पहुंचने की वजही से बार-बार इंफेक्शन, खासतौर से निमोनिया की शिकायत होती है।
क्रोनिक एनीमिया तथा पोषण की कमी के चलते शारीरिक विकास में देरी होती है और बच्चों में प्यूबर्टी भी सामान्य से अधिक उम्र में होती है।
ब्लॉक्ड ब्लड वैसलस की वजह से रेटिनोपैथी और आंखों की अन्य कई जटिलताएं भी पैदा हो जाती हैं।
त्वचा और आंखों में पीलापन जो कि रेड ब्लड सेल्स के ब्रेकडाउन की वजह से होता है।
सिकल सेल रोग के सटीक डायग्नॉसिस के लिए कई प्रक्रियाओं की मदद ली जाती है ताकि सही तरीके से निदान होने के बाद रोग का उपयुक्त ढंग से मैनेजमेंट भी किया जा सके।
कई देशों में नवजातों की ब्लड टेस्ट की मदद से रूटीन जांच की जाती है। इसके लिए शिशु की एड़ी में सुई से मामूली छेद कर खून की कुछ बूंदें निकाली जाती हैं, और इन्हें इनमें सिकल हिमोग्लोबिन (Hbs) की मौजूदगी का पता लगाने के लिए जांच की जाती है।
नवजातों की इस प्रकार शुरुआत में ही जांच से तत्काल जरूरी हस्तक्षेप और रोग की पुष्टि होने पर रोग का मैनेजमेंट करना आसान होता है। इसका नतीजा यह होता है कि कई तरह की गंभीर जटिलताओं से बचा जा सकता है और दीर्घकालिक परिणामों में भी सुधार होता है।
सिकल सेल रोग (SCD) के निदान और एनीमिया के अन्य प्रकारों से इसे अलग करने के लिए कई तरह के ब्लड टेस्ट उपलब्ध हैं। हिमोग्लोबिन इलैक्ट्रोफोरेसिस सबसे आम टेस्ट है, जो अलग-अलग प्रकार के हिमोग्लोबिन की पहचान करता है।
यह टेस्ट मरीज के ब्लड में (Hbs) – सिकल हिमोग्लोबिन तथा अन्य एब्नॉर्मल हिमोग्लोबिन की मौजूदगी की पुष्टि करता है। अन्य टेस्ट में कंपलीट ब्लड काउंट (CBC) भी शामिल है जो ब्लड हेल्थ का मूल्यांकन करता है और रेटिक्यूलोसाइट काउंट से नई बनने वाली लाल रक्त कणिकाओं के उत्पादन की माप की जाती है।
आनुवांशिकीय जांच या जेनेटिक टेस्टिंग से HBB जीन में म्युटेशन की पहचान कर डायग्नॉसिस की पुष्टि की जाती है। यह खासतौर से प्रीनेटल डायग्नॉसिस और कैरियर स्क्रीनिंग में उपयोगी होता है। जेनेटिक टेस्टिंग में ब्लड या टिश्यू सैंपल की जांच कर सिकल सेल रोग (SCD) का कारण बनने वाले खास म्युटेशन का पता लगाया जाता है।
प्रीनेटनल जनेटिक टेस्टिंग, जैसे कि एम्नियोसेंटेसिस या क्रोरियोनिक विलस सैंपलिंग (CVS) से भ्रूण में सिकल सेल रोग (SCD) का पता लगाने में मदद मिलती है। एम्नियोसेंटेसिस में, गर्भ में भ्रूण के आसपास मौजूद फ्लूड का नमूना लिया जाता है, जबकि CVS में प्लेसेंटल टिश्यू का सैंपल लिया जाता है।
ये टेस्ट यह पता लगाने में मदद करते हैं कि भ्रूण को सिकल सेल रोग (SCD) है या वह सिकल सेल ट्रेट का वाहक (कैरियर) है। आरंभिक चरण में ही डायग्नॉसिस से सूचना आधारित फैसला लेने तथा नवजात की देखभाल की तैयारी करने में मदद मिलती है।
सिकल सेल रोग (SCD) से ग्रस्त बच्चों में, रेग्युलर ट्रांसक्रेनियल डॉपलर अल्ट्रासाउंड (TCD) स्क्रीनिंग की सलाह दी जाती है ताकि स्ट्रोक के रिस्क का आकलन किया जा सके। ट्रांसक्रेनियल डॉपलर अल्ट्रासाउंड (TCD) हमारे ब्रेन की रक्तवाहिकाओं में रक्तप्रवाह की गति (वेलोसिटी) का पता लगाता है, जिससे उन बच्चों में स्ट्रोक के रिस्क का मूल्यांकन किया जा सकता है जिन्हें रेग्युलर ब्लड ट्रांसफ्यूज़न जैसे प्रीवेंटिव उपचार से लाभ हो सकता है।
इमेजिंग स्टडीज़ जैसे कि एक्स-रे, एमआरआई और सीटी स्कैन का इस्तेमाल सिकल सेल रोग (SCD) की जटिलताओं का पता लगाने के लिए किया जाता है। इनमें बोन डैमेज, ऑर्गन एन्लार्जमेंट तथा चेस्ट सिंड्रोम जैसी जटिलताएं शामिल हैं। ये इमेजिंग टेस्ट आंतरिक संरचनाओं की विस्तृत तस्वीर उपलब्ध कराते हैं जिससे मरीज के इलाज संबंधी फैसले लेना आसान होता है।
हालांकि सिकल सेल रोग (SCD) का पूरी दुनिया में कोई उपचार नहीं है, लेकिन कई तरह के उपचारों से इनके लक्षणों को मैनेज किया जा सकता है, जटिलताओं को कम किया जा सकता है और लाइफ क्वालिटी में भी सुधार किया जा सकता हैः
हाइड्रोक्सीयूरियाः यह फीटल हिमोग्लोबिन प्रोडक्शन को बढ़ाकर दर्द की फ्रीक्वेंसी और एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम को घटाता है।
दर्द निवारकः ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक, और कुछ गंभीर मामलों में, प्रेस्क्रिप्शन ओपियोइड्स से दर्द को मैनेज किया जा सकता है।
एंटीबायोटिक्स एवं वैक्सीनेशनः प्रिवेंटिव एंटीबायोटिक्स तथा वैक्सीनेंशन से इंफेक्शंस से बचाव होता है।
नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूज़न से नॉर्मल रेड ब्लड सेल्स बढ़ते हैं, जिससे स्ट्रोक का रिस्क और अन्य जटिलताएं कम होती हैं।
हालांकि सिकल सेल रोग (SCD) के एकमात्र संभावित उपचार में मरीज के बोन मैरो को हेल्दी डोनर मैरो से बदला जाता है। यह हाइ-रिस्क होता है और केवल कुछ गिने-चुने मरीजों के लिए ही उपयुक्त होता है।
प्रयोगात्मक उपचार के तहत् मरीज की जेनेटिक सामग्री को बदला जाता है जिससे नॉर्मल हिमोग्लोबिन बनता है और भविष्य के लिए भरोसा बनता है।
शरीर में पानी की पर्याप्त मात्रा, अधिक तापमान से बचकर तथा स्ट्रेस मैनेज करने से दर्द के संकट से बचा जा सकता है। नियमित व्यायाम और संतुलित आहार भी महत्वपूर्ण है।
हां, प्रीनेटल जेनेटिक टेस्टिंग जैसे कि एम्नयोसेंटेसिस या कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (CVS) से भ्रूण में सिकल सेल रोग का पता लगाया जा सकता है।
दर्द का कारण डीहाइड्रेशन, अधिक तापमान, स्ट्रैस, हाई ऑल्टीट्यूड और इंफेक्शंस हो सकता है।
सामान्य एक्सरसाइज़ प्रायः सुरक्षित और उपयोगी होती है लेकिन अत्यधिक व्यायाम से बचना चाहिए। शरीर में पानी की पर्याप्त मात्रा बनाए रखें और बीच-बीच में ब्रेक लेना न भूलें।
मेडिकल केयर और लाइफस्टाइल एडजस्टमेंट करने से सिकल सेल रोगी भी प्रोडक्टिव जीवन बिता सकते हैं, हालांकि उनके सामने कई चुनौतियां आ सकती हैं।
उपचार में प्रगति होने से जीवन संभाव्यता में सुधार हुआ है, और कई मरीज पचास या अधिक उम्र तक जीते हैं। रैग्युलर मेडिकल केयर और प्रोएक्टिव मैनेजमेंट इस रोग में सबसे जरूरी है।
फलों, सब्जियां, साबुत अनाज और लीन प्रोटीन से युक्त बैलेंस्ड डायट की सिफारिश की जाती है। शरीर में पर्याप्त हाइड्रेशन भी महत्वपूर्ण है। कुछ मरीजों को आयरन सप्लीमेंट्स से बचना चाहिए, बशर्ते डॉक्टर ऐसी सलाह न दें।