दिव्या वैष्णवा न सिर्फ बुजुर्गों और युवाओं को नशा मुक्ति के लिए जागरूक करती हैं, बल्कि बच्चों को भी नशे का शिकार होने से बचाती हैं। इसके अलावा हरियाणा पुलिस विभाग को दिव्या जेजे एक्ट (JJ act), पॉस्को एक्ट (POCSO act), (Gender sensitisation) लैंगिक समानता और टीचर्स को बाल संरक्षण एवं मानसिक स्वास्थ्य (child protection in schools, anti bullying, mental health awareness) की ट्रेनिंग देती हैं।
लैंगिक भेदभाव, यौन उत्पीड़न, बाल शोषण को दूर करने वाले सामाजिक जागरूकता कार्यक्रमों से भी वे जुड़ी हैं। वर्तमान में दिव्या “बच्चे उनकी दुनिया’ (BUD Foundation) की डायरेक्टर हैं।
दिव्या का बचपन दिल्ली में बीता। जब छोटी थीं, तो वे देखतीं थीं कि कुछ घरों में लोग नशे के शिकार थे। इनमें बुजुर्ग और युवा ही नहीं, बल्कि कुछ बच्चे भी शामिल थे। वे समझ रहीं थीं कि नशा न केवल उनका स्वास्थ्य खराब करता है, बल्कि इससे उनका पूरा परिवार भी बिखर जाता है। नशे के कारण बहुत से परिवारों को आर्थिक दिक्कतें झेलनी पड़तीं हैं। इसका असर सभी के शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर पड़ता है।
यह सब देखकर दिव्या का मन कसैला हो उठता और वे सोचतीं कि नशेबंदी के खिलाफ कुछ काम किया जाए। वे सोचतीं कि नशा करने वाले को यदि नशा से होने वाली समस्याओं से अवगत कराया जाए, तो संभवत: उनके नशे की आदत छूट जाए।
सामाजिक काम करने की प्रेरणा दिव्या को अपनी मां से मिली। उनकी मां आभा वैष्णव अंडरप्रिविलेज्ड बच्चों को पढ़ातीं थीं। इससे उन बच्चों के जीवन में बदलाव आते हुए उन्होंने करीब से देखे। यह सब देखकर उन्हें अच्छा लगता। इसलिए उन्होंने सारी पढ़ाई सोशल वर्क (Licensed Social Worker) में करने की ठानी।
दिव्या को उनके माता-पिता और परिवार का हमेशा सहयोग मिला है। वे कहती हैं, “मैं भाग्यशाली रही कि मुझे टीचर्स भी अच्छे मिले। मेरी टीचर डॉ. भारती शर्मा का मेरे जीवन में सबसे अधिक प्रभाव रहा। मैं जब उन्हें समाज के लिए काम करते देखती, तो मुझे अच्छा लगता। मैंने उनसे काफी-कुछ सीखा और आगे बढ़ पाई।’
दिव्या बताती हैं, “मैं एक ट्रेन्ड सोशल वर्कर हूं। मैंने बीए और एम ए सोशल वर्क से किया। एमफिल और पीएचडी की डिग्री भी इसी विषय में ली। यदि आपको इस तरह का एक्सपोजर मिलता है, तो आपका खुद ही मन करने लगता है कि समाज के लिए कुछ किया जाए।
कुछ ऐसा किया जाए, जिससे किसी के जीवन में बदलाव आ सके। इससे खुद में भी बदलाव आ जाता है। फिर अच्छाई की तरफ हम बढ़ते चले जाते हैं।”
दिव्या नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने के अलावा, बाल संरक्षण के लिए भी काम करती हैं। महिला सशक्तिकरण, ऑफिस या वर्क प्लेस में यौन उत्पीड़न कैसे रोका जाए, इसके लिए भी काम करती हैं। जेजे एक्ट (JJ act), पॉस्को एक्ट (POCSO act), (Gender sensitisation) लैंगिक समानता और टीचर्स को बाल संरक्षण एवं मानसिक स्वास्थ्य (child protection in schools, anti bullying, mental health awareness) की ट्रेनिंग देती हैं। बच्चों के साथ काम करने वाले लोगों को भी वे ट्रेनिंग देती हैं।
दिव्या सामाजिक कार्यों के अलावा कुछ और नहीं करना चाहतीं। बारहवीं के बाद उनकी पूरी पढ़ाई इसी क्षेत्र में हुई है। उन्हें पढ़ने-लिखने का शौक है। दिव्या एक घटना का उल्लेख करती हैं। उन्होंने देखा कि जो लोग अनट्रेंड काम जैसे कि गाड़ी साफ करना आदि करते हैं, वे सुबह तो बिजी रहते हैं, लेकिन शाम उनकी खाली रहती है। इसलिए वे नशे की तरफ मुड़ जाते हैं। यदि उन्हें बिजी कर दिया जाए, तो उनकी नशे की आदत छूट सकती है।
वे बताती हैं, “मैंने पांच साल पहले वुडवर्किंग का काम शुरू कर दिया। अन्ट्रेन्ड लोगों को इस काम से जोड़ना शुरू किया। उन्हें वुड वर्क की ट्रेनिंग दी और उन्हें काम भी देने लगीं। फिर मैंने पाया कि जैसे ही नशे की आदत के शिकार लोगों ने स्किल सीखा, वे खाली वक्त में वुड वर्क करने लगे। नशे की आदत भी उनकी छूटती चली गई।
आमतौर पर जब समाज को सुधारने का काम किया जाता है या कैंपेन किया जाता है, तो कई तरह की दिक्कतें आती हैं। दिव्या इन दिक्कतों को बहुत हल्के में लेती हैं। वे कहती हैं कि शुरुआत में तो लोग बात ही नहीं मानते। बच्चों को यदि पढ़ने के लिए प्रेरित करती हूं, तो परिवार बाधाएं उपस्थित करने लगता है। वे बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना नहीं चाहते हैं।
उन्हें लगता है कि घर के काम कौन करेगा? इतना जान लें कि जब किसी काम में परिवार, कम्यूनिटी और एडमिनिस्ट्रेशन का सपोर्ट मिलता है, तो कोई भी काम आसान हो जाता है। चाहे वह नशा छुड़ाने जैसा कठिन काम ही क्यों न हो। जागरूक होने पर ही लोग जुड़ते हैं और काम आसान हो जाता है।
वे कहती हैं, “कई बार तो लोग नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान को ही गलत समझ लेते हैं। एक छोटा सा उदाहरण देती हूं। मैं लोगों को बताती हूं कि नशे से कैसे दूर रह सकते हैं या शरीर को क्या नुकसान हो सकते हैं? यदि परिवार का कोई सदस्य किसी खास नशे की लत में पड़ गया है, तो उसे कैसे निकाला जा सकता है। इन सभी बातों का लोग गलत मतलब निकाल लेते हैं। उन्हें लगता है कि मैं नशे की गिरफ्त से बाहर निकालने की बजाय उनके बीच नशे को प्रमोट कर रही हूं। बार-बार कहने पर ही उन्हें सही बात समझ में आती है।’ दिव्या स्त्रियों और बच्चों के अधिकारों के लिए कार्य करने के लिए हरियाणा पुलिस डिपार्टमेंट से 2017 में पुरस्कृत भी हो चुकी हैं।
वे मानती हैं कि किसी भी सामाजिक कार्य का उद्देश्य समाज में बदलाव लाना होता है। लोगों में जो भी गलत आदते हैं, वे बदल पाएं। सबसे ज्यादा तो बच्चे नशे की लत से दूर रहें।
बच्चों को सुरक्षित और खुशहाल माहौल देना बड़ों का काम होता है। किसी भी समाज में बच्चे स्वस्थ होंगे, खुश होंगे, पढ़-लिख रहे होंगे, तो वह समाज हमेशा आगे बढ़ेगा। नेल्सन मंडेला ने भी कहा था कि यदि समाज के बारे में जानना चाहते हैं, तो समाज के बच्चों को देखिए। बच्चे खुश और स्वस्थ हैं, तो समाज भी आगे बढ़ता है।
दिव्या बताती हैं कि उन्हें एडमिनिस्ट्रेशन और समाज का साथ मिला, तो राहें आसान होती गईं। वे बताती हैं, गुरुग्राम में जब भी हमने कभी जागरूकता अभियान चलाया या कुछ नया प्रोजेक्ट शुरू करने की कोशिश की, तो गुरुग्राम पुलिस डिपार्टमेंट, शिक्षा विभाग और डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन से सपोर्ट मिला। कभी ऐसा नहीं लगा कि हम अकेले कुछ काम करने की कोशिश कर रहे हैं। हमेशा लोगों ने साथ दिया। लोग आए और जुड़े। दिव्या की तरह सभी सोशल वकर्स को सपोर्ट मिले।
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