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सेहत-संवाद

Barbara O’Neill : 8 बच्चों की मां और फेमस नेचुरोपैथ बारबरा ओ’नील दे रही हैं प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़े सवालों के जवाब

71 वर्षीय बारबरा ओ' नील दुनिया भर में प्राकृतिक चिकित्सा और उपायों के बारे में जागरुकता फैला रही हैं। भारत में जहां आयुर्वेद रसोई और जीवनशैली का हिस्सा है, वहां उन्हें बहुत सारी चीजें आकर्षित करती हैं। प्राकृतिक चिकित्सा कैसे जीवन और सेहत के लिए काम कर सकती हैं, इस पर उन्होंने लंबी बातचीत की।
Published On: 9 May 2025, 12:30 pm IST
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सभी चित्र देखे Barbara-O-Neill ki journey me bahut sare ups and downs rahe
बारबरा ओ नील का जीवन बहुत सारे उतार-चढ़ाव से भरा रहा। चित्र : बारबरा ओ नील

Barbara O’Neill 71 वर्ष की उम्र में भी साल के नौ महीने यात्राओं पर रहती हैं। ऐसी यात्राएं जहां उन्हें सेहत, प्राकृतिक चिकित्सा और प्राचीन उपचारों  पर घंटों बोलना होता है, ढेरों लोगों से मुलाकात करनी होती है। वे प्राकृतिक चिकित्सा की अभ्यासी  हैं, लेखक हैं और इन सबसे बढ़कर 8 बच्चों की मां हैं। उनकी फिटनेस, सक्रियता और आत्मविश्वास किसी  के लिए भी प्रेरणास्रोत हो सकता है। इस अंतरराष्ट्रीय मातृत्व दिवस (International Mother’s Day 2025) के उपलक्ष्य में हमने हेल्थ शॉट्स पर उनसे विशेष बातचीत की। हेल्थ शॉट्स के खास कॉलम सेहत संवाद (Health Talk) के अंतर्गत उन्होंने न सिर्फ प्राकृतिक चिकित्सा के बारे में विस्तार से बात की, बल्कि अपने निजी जीवन और अनुभवों पर भी खुलकर बात की।

कौन हैं बारबरा ओ नील (Barbara O’Neill)

आज सोशल मीडिया का जाना-माना नाम हैं। वे प्राकृतिक चिकित्सा पर भरोसा करती हैं और लोगों को इसे सही तरह से उपयोग के बारे में जानकारी देती हैं। संयोग से वे प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में आईं और पूरे समर्पण से उन्होंने इसके माध्यम से लोगों की मदद की। देश-विदेश की यात्राएं, सोशल मीडिया पर दो मिलियन से ज्यादा फॉलोअर्स और एक जाना-माना नाम बनने की यात्रा इतनी आसान भी नहीं रही। तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद अपने 8 बच्चों की परवरिश उन्हें सुकून देती हैं। हेल्थ शॉट्स के कॉलम सेहत संवाद (Health Talk) में पढ़िए बारबरा ओ नील (Barbara O’Neill) से उनके जीवन और नेचुरोपैथी के बारे में एक खास बातचीत।

1 अपने बारे में कुछ बताइए, आपकी शिक्षा-दीक्षा, पारिवारिक माहौल, ताकि हमारे पाठक आपको और बेहतर तरीके से जान सकें।

मैं (Barbara O’Neill early life) ऑस्ट्रेलिया में पली-बढ़ी, मगर मूलत: मेरा परिवार स्कॉटलैंड से है। बचपन में हमारे घर में रोज़ रात को खाने में एक जैसा ही खाना होता था। सॉसेज या मैश किए हुए आलू और फ्रोजन मटर या बीन्स। मुझे तो यही लगता था कि दुनिया में सिर्फ़ सफेद ब्रेड ही होती है। जब मुझे सर्दी लगती, तो मां मुझे डॉक्टर के पास ले जातीं और डॉक्टर एक मीठी सी सिरप वाली दवा दे देते।

Barbara O’Neill journey with naturopathy starts at the age of 25
बारबरा ओ नील महज 25 साल की उम्र में सेहत के प्रति जागरुक हो गईं थीं। चित्र : बारबरा ओ नील

यही सोचते-सोचते मैं एक मानसिक स्वास्थ्य नर्स बनी। तब मुझे पूरा यकीन था कि अगर कोई बीमार है, तो दवा ज़रूरी है। लेकिन सब कुछ तब बदलने लगा जब मैं 24–25 साल की थी और मेरी पहली बच्ची को कान में दर्द हुआ। मैं उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले गई। छह हफ्तों में उसे चार बार एंटीबायोटिक दी गईं, फिर भी उसका दर्द बार-बार लौट आता।

तभी मैंने पहली बार गंभीरता से सोचना शुरू किया कि क्या कोई और रास्ता हो सकता है। मैं दवाइयों के अलावा किसी इलाज के बारे में कुछ नहीं जानती थी। प्राकृतिक इलाज या घरेलू नुस्खों के बारे में मैंने कभी सुना भी नहीं था। लेकिन वहीं से मेरी एक नई तलाश शुरू हुई।

इस सफर में मुझे निराशा नहीं हुई। मैंने दुनिया भर से अलग-अलग प्राकृतिक इलाजों के बारे में जाना साधारण लेकिन असरदार उपायों (Barbara O’Neill on natural healing) के बारे में। और मुझे खुशी है कि मैंने इसके बाद पांच और बच्चों को जन्म दिया। फिर 28 साल पहले मेरी शादी माइकल से हुई, जिनके पहले से दो बच्चे थे।
अब हमारे कुल आठ बच्चे हैं। और मुझे संतोष है कि जब से मैंने इन वैकल्पिक इलाजों को अपनाया, मैंने अपने बच्चों को दवा नहीं दी किसी को भी तब से एक भी ऐंटीबायोटिक नहीं दी गई।

2 प्राकृतिक चिकित्सा अर्थात नेचुरोपैथी की तरफ आपका रुझान कैसे हुआ? 

मेरी ज़िंदगी में एक खास मोड़ आया, और वो था जब मेरी पहली बेटी को छह हफ्तों में चार बार एंटीबायोटिक दी गई। उस वक्त मुझे पहली बार एहसास हुआ कि कुछ तो ठीक नहीं है। जब मेरे अगले बच्चे को कान में दर्द हुआ, तो इस बार मैं डॉक्टर के पास नहीं गई। मैं अपने पड़ोस में रहने वाली एक बुज़ुर्ग महिला के पास गई। मैं 25 साल की थी और वो 85 साल की। मैंने उनसे पूछा, “जब आपको बचपन में कान दर्द होता था, तो आपकी मां क्या करती थीं?”

उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, “मां प्याज़ को भाप में गर्म करती थीं और फिर उसे कान पर लगाती थीं।” मैंने भी वैसा ही किया।

मैंने गर्म प्याज़ अपने बेटे के कान पर रखा। वो दो घंटे गहरी नींद सोया और जब उठा तो दर्द पूरी तरह गायब था। वही पल था जब मुझे पूरी तरह समझ में आ गया कि दवाइयों के अलावा भी रास्ते हैं।

3 क्या इसके लिए आपने कोई फॉर्मल ट्रेनिंग ली?

कई सालों तक मैंने प्राकृतिक इलाज के लिए कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली थी। 24 साल की उम्र में मैंने इस रास्ते पर चलना शुरू किया। शायद प्याज़ वाले उस अनुभव के करीब छह महीने बाद मैं एक ईसाई बनी। तब मेरे मन में सवाल उठने लगे भगवान शरीर को कैसे देखते हैं? वो इसे कैसे काम करते हुए देखना चाहते हैं? और जब शरीर ठीक से काम नहीं करता, तो क्या भगवान चाहते हैं कि हम दवाइयों का सहारा लें?

इन्हीं सवालों के बीच मैंने समझा कि जो प्राकृतिक उपाय हैं जैसे जड़ी-बूटियां, फूल, और भोजन ये भी भगवान की ही बनाई हुई चीजें हैं, ठीक वैसे ही जैसे शरीर। और ये आपस में मिलकर काम करते हैं।

धीरे-धीरे मैंने पढ़ना शुरू किया, खुद पर आज़माया, प्रयोग किए और एक-एक करके मैंने अपने लिए एक तरह का “उपायों का थैला” तैयार कर लिया। जब मैं कहती हूं “थैला”, तो मेरा मतलब है कि मेरे मन में एक ऐसा संग्रह बन गया जिसमें अलग-अलग प्राकृतिक उपाय थे जिन्हें मैं ज़रूरत के अनुसार इस्तेमाल कर सकती थी।

फिर जब मेरी माइकल से 28 साल पहले शादी हुई, तो उन्होंने मुझसे कहा, “मैं एक रिट्रीट सेंटर शुरू करना चाहता हूं, और इसके लिए ज़रूरी है कि तुम्हारे पास कोई योग्यता हो। ताकि हम प्रैक्टिशनर-ओनली हर्ब्स ले सकें,” जैसे कि कुछ खास औषधियां वगैरह।

तब मैंने एक पोषण (न्यूट्रिशन) कोर्स किया और न्यूट्रिशन और डायटेटिक्स में ट्रेनिंग ली। मुझे वह कोर्स करना बहुत अच्छा लगा क्योंकि उसमें मुझे शरीर के बारे में और भी गहराई से सीखने को मिला खासकर जड़ी-बूटियों के बारे में। यह बात अब करीब 20 साल पुरानी है।

4 भारत में हर क्षेत्र में गुरु-शिष्य परंपरा है और हम ऐसा भरोसा करते हैं कि गुरु, गाइड या एक अच्छे मेंटोर के मार्गदर्शन में ही आप किसी क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल कर पाते हैं। अपनी अब तक की यात्रा में आप किसे अपना गुरु मानती हैं?

अगर मुझसे पूछा जाए कि मेरी ज़िंदगी में कोई एक ऐसा इंसान रहा है जिसने मुझे रास्ता दिखाया, तो मैं शायद किसी एक नाम पर नहीं रुक पाऊंगी। क्योंकि जिन लोगों की किताबें मैंने पढ़ीं उन्होंने भी मुझे एक दिशा दी। एक दिन मैंने बाइबिल (Psalm 32 verse 8) में पढ़ी, , जिसमें ईश्वर कहते हैं, “मैं तुझे बुद्धि दूंगा और उस मार्ग की शिक्षा दूंगा जिस पर तुझे चलना चाहिए; मैं हमेशा तुझ पर अपनी नजर का समर्थन रखूंगा।”

इसलिए अगर सच कहूं, तो मैं मानती हूं कि ईश्वर ही मेरे सच्चे मार्गदर्शक रहे हैं। उन्होंने ही मेरी राह में अलग-अलग लोग लाए, मुझे अलग-अलग किताबों से मिलवाया। लेकिन जब मैंने पोषण का कोर्स किया, तब मेरे शिक्षक का नाम डीन आर्मिटेज था। उनकी समझ, उनका ज्ञान मैंने बहुत सराहा। अगर किसी एक इंसान का नाम लेना हो, जिसने सबसे गहरा प्रभाव छोड़ा, तो वे डीन ही होंगे।

5 एक महिला होने के नाते, चिकित्सा के क्षेत्र में, वह भी एक ऐसी चिकित्सा जो आपके देश के हिसाब से अलग तरह की है, उसमें आपका अनुभव कैसा रहा?

मैंने छह बच्चों (Barbara O’Neill on motherhood) को पाल-पोसकर बड़ा किया, और फिर 28 साल पहले दो और बच्चे मेरे जीवन में जुड़े। इस सफर में मैंने जाना कि महिलाएं स्वभाव से ही पालन-पोषण करने वाली होती हैं। ऐसा नहीं है कि पुरुष ऐसा नहीं कर सकते कई पुरुषों में भी यह खूबी होती है। मैंने कुछ ऐसे पुरुष भी देखे हैं जो बहुत संवेदनशील होते हैं, और कुछ महिलाएं भी जो औरों से ज़्यादा अच्छी देखभाल करना जानती हैं। लेकिन आम तौर पर देखा जाए, तो महिलाओं में यह गुण जन्मजात होता है।

मेरे लिए प्राकृतिक इलाज एक तरह से मां होने की भूमिका का ही हिस्सा बन गया। मैंने कभी यह दावा नहीं किया कि मैं डॉक्टर हूं या किसी विषय की बहुत बड़ी विशेषज्ञ हूं। जब कोई मुझसे मदद मांगता है, तो मैं बस यही कहती हूं, “अगर मेरी जगह तुम होते, तो मैं यह करती।”

शायद इसी वजह से मुझे अपने काम को लेकर ज़्यादा आलोचना का सामना नहीं करना पड़ा।
हाँ, मैंने सुना है कि विकिपीडिया पर मेरे बारे में कुछ नकारात्मक बातें लिखी गई हैं, लेकिन मैंने उन्हें खुद नहीं पढ़ा। मेरा मानना है कि ये बातें इसलिए कही जाती हैं क्योंकि जो उपाय मैं बताती हूं, वो आम मेडिकल तरीकों से काफी अलग हैं। जब कुछ चीज़ें अलग होती हैं, तो उन्हें सभी लोग आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते।

क्या कभी आलोचना और बाधाओं का भी सामना करना पड़ा?

अपने इस सफर में मुझे आलोचना का सामना (Barbara O’Neill life journey) भी करना पड़ा है। खासकर साल 2019 में कुछ लोगों ने मेरे खिलाफ सरकार में शिकायतें दर्ज करवाई थीं। लेकिन मैंने इन लोगों को कभी देखा नहीं, न ही वे कभी हमारे रिट्रीट पर आए। असल में बात बस इतनी थी कि मेरी बातें पारंपरिक दवा प्रणाली या फार्मास्युटिकल सोच से अलग थीं।

आलोचना तब ज्यादा चुभती है जब वो किसी अपने की तरफ से हो, लेकिन इन लोगों से तो मेरा कोई संपर्क भी नहीं था। जब मैंने उनके आरोपों को देखा, तो कुछ हद तक मुझे हंसी भी आई, क्योंकि उनमें कोई ठोस आधार नहीं था। फिर भी, दुर्भाग्य से सरकार ने इन बातों को गंभीरता से लिया। जबकि आरोप बहुत मामूली थे — जैसे एक उदाहरण में उन्होंने कहा कि बकरी का दूध खतरनाक हो सकता है, जबकि इससे जुड़ी कोई मौत नहीं हुई।

मैंने इन बातों को निजी तौर पर नहीं लिया। मुझे बस यही लगा कि शायद उन्हें मेरे तरीके से असहमति है। हां, ये ज़रूर थोड़ा झटका देने वाली बात थी कि इतनी छोटी-छोटी बातों को लेकर मुझे ऑस्ट्रेलिया से प्रतिबंधित कर दिया गया। लेकिन धीरे-धीरे समझ आया कि मामला शायद सिर्फ मेरे काम का नहीं था, बल्कि गहराई में कुछ और भी था।

हमें लगा कि यह सब एक राजनीतिक कदम का हिस्सा था। मैं मानती हूं कि अगर मुझसे कोई गलती हुई हो, तो मुझे उसे समझना चाहिए और सुधारना भी चाहिए। लेकिन जो सलाह मैं लोगों को देती हूं, मैं उन पर पूरा विश्वास रखती हूं। मैं खुद उनके असर को देख चुकी हूं। मैंने पिछले 40 सालों में हजारों लोगों की सेहत में सुधार होते देखा है।

इसलिए मुझे यकीन है कि जो मैं करती हूं, वह सही है। और जब आपको खुद पर विश्वास होता है कि आप सच्चाई के रास्ते पर हैं, तो अगर कभी-कभी कोई आपको कटघरे में खड़ा कर भी दे, तो उससे मन ज़्यादा नहीं डगमगाता।

7. भारत में आयुर्वेद पर बहुत भराेसा किया जाता है, जिसमें जड़ी-बूटियों और जीवनशैली के माध्यम से उपचार किया जाता है। इसके के संदर्भ में आपके विचार क्या हैं?

मैं इसमें ज़रूर एक समानता देखती हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि आप दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रहते हों, हमारा शरीर ऐसा बनाया गया है कि वो खुद को ठीक कर सके। और ऐसे कई प्राकृतिक उपाय हैं जो शरीर की इस प्रक्रिया को सहारा दे सकते हैं — चाहे वो साधारण देह-उपचार हों या फिर जड़ी-बूटियां।

ayurvedic tips for anxiety.
आयुर्वेद भारत का खजाना है। चित्र : शटरस्टॉक

जहां भी मैं जाती हूं, हर देश की अपनी एक अलग हर्बल पद्धति होती है, अपने-अपने तरीके होते हैं। इस तरह की समानताएं मुझे हर जगह देखने को मिलती हैं।

8. आपकी राय में आचार-विचार और व्यवहार सेहत को किस हद तक प्रभावित करते हैं? 

बिलकुल, हमारा शरीर और मन एक-दूसरे से अलग नहीं किए जा सकते। जो कुछ भी शरीर में होता है, वह मन को प्रभावित करता है, और जो कुछ भी मन में होता है, वह शरीर पर असर डालता है। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि इंसान का मन शांत और स्थिर हो।

एक बाइबल मानने वाली ईसाई के रूप में, मैं यह मानती हूं कि हमें उस अद्भुत शरीर पर विश्वास रखना चाहिए जो ईश्वर ने हमें दिया है, और यह भरोसा रखना चाहिए कि प्राकृतिक उपचार शरीर में अच्छा बदलाव ला सकते हैं।

कई बार हमें बड़े नतीजे दिखते हैं, और कभी-कभी नहीं भी दिखते। जब मुझे किसी प्राकृतिक उपचार से अपेक्षित असर नहीं दिखता, तो मैं थोड़ा और गहराई में जाती हूं। अक्सर मुझे यह देखने को मिलता है कि उसके पीछे किसी न किसी तरह की भावनात्मक उलझन होती है।

ऐसे मामलों में यह ज़रूरी हो जाता है कि उस व्यक्ति से इस बारे में खुलकर बात की जाए — और उन्हें यह समझाया जाए कि अगर वे बहुत तनाव में हैं, अगर उनमें गुस्सा, नाराज़गी या किसी के प्रति क्षमा न कर पाने की भावना है, तो ये सब चीजें शरीर की प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया में रुकावट डाल सकती हैं।

9. इन दिनों लाइफस्टाइल डिजीज यानी जीवनशैली जनित बीमारियां बहुत बढ़ गई हैं, आप इनका समाधान कैसे सुझाती हैं?

मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं, “बारबरा, आप हर हफ्ते किसी नए देश में होती हैं, साल के नौ महीने यात्रा करती हैं — आप ये सब कैसे संभालती हैं?” और मैं उनसे कहती हूं, मैंने इसका एक आसान सा तरीका ढूंढ लिया है। ये तरीका है — स्वास्थ्य के बुनियादी नियम। ये नियम ऐसे हैं जो किसी भी देश में, किसी भी उम्र के व्यक्ति पर लागू होते हैं।

मैंने इन नियमों को एक संक्षेप में रखा है: SUSTAIN ME

S – Sunshine (सूरज की रोशनी)
हर दिन कुछ समय सूरज की रोशनी में बिताना ज़रूरी है। यह शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है।
U – Use of Water (पानी का सही उपयोग)
हमें खुद को अच्छी तरह से हाइड्रेट रखना चाहिए। पानी न केवल पीने के लिए, बल्कि एक इलाज की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
S – Sleep (नींद)
जल्दी सोना ज़रूरी है। नींद के समय शरीर खुद को ठीक करता है और ऊर्जा से भरता है।
T – Trust in Divine Power (ईश्वर पर विश्वास)
हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि हमारा शरीर ईश्वर की रचना है और वह खुद को ठीक करने की क्षमता रखता है।
A – Abstain (त्याग करना)
कुछ चीज़ों से दूरी बनाना बहुत ज़रूरी है। मैंने यह फैसला किया है कि मैं अपने शरीर में कोई भी जहरीली चीज़ नहीं डालूंगी — न खाने के ज़रिए, न त्वचा पर। अगर आप चाहते हैं कि शरीर सही से काम करे, तो कुछ आदतें छोड़नी पड़ेंगी।
I – Inhale (सांस लेना)
हमें सही तरीके से सांस लेना चाहिए — नाक से अंदर और नाक से ही बाहर। यह शरीर को सुकून देता है।
N – Nutrition (पोषण)
मैं पौधों पर आधारित खाना खाती हूं। मुझे पौधे बहुत पसंद हैं क्योंकि उनमें शरीर के लिए ज़रूरी हर तत्व होता है जो उसे ठीक करने में मदद करता है।
M – Moderation (संतुलन)
हर अच्छी चीज़ में संतुलन ज़रूरी है। जैसे अभी मैं धूप का आनंद ले रही हूं, लेकिन साथ में अपनी घड़ी भी देख रही हूं — ताकि ज़्यादा देर धूप में रहने से जल न जाऊं।
E – Exercise (व्यायाम)
चाहे मैं दुनिया के किसी भी कोने में रहूं, बारिश हो रही हो या धूप, अगर मैं बाहर नहीं जा सकती तो अंदर ही पुश-अप्स, स्क्वैट्स और स्ट्रेचिंग कर लेती हूं। शरीर को हर दिन चलाना ज़रूरी है।
मैंने पढ़ा है, समझा है और खुद अनुभव किया है कि ये सरल से नियम ही सच्चे स्वास्थ्य की नींव हैं।

Barbara-O-Neill ne Naturopathy par books bhi likhi hain
बारबरा ने प्राकृतिक चिकित्सा उपायों पर कई किताबें भी लिखी हैं। चित्र : बारबरा ओ नील

10. हेल्थ एक सबसे ज्यादा ट्रेंडिंग और बढ़ती हुई इंडस्ट्री है, क्या इसका लाभ सचमुच आम आदमी को मिल रहा है?

मुझे लगता है कि यह इस पर निर्भर करता है कि “स्वास्थ्य” शब्द से क्या मतलब लिया जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया में स्वास्थ्य उद्योग असल में स्वास्थ्य उद्योग नहीं है, बल्कि यह एक बीमारियों का उद्योग है, क्योंकि यह एक गलत सिद्धांत पर आधारित है कि हमारा शरीर विकसित हुआ है, इसलिए यह खुद को ठीक नहीं कर सकता — इसे दवाई चाहिए।

लेकिन सच यह है कि दवाइयां कभी भी रोग को ठीक नहीं कर सकतीं। तो जब सवाल में “स्वास्थ्य” पूछा जाता है, तो मुझे उम्मीद है कि लोग जो कुछ भी स्वस्थ मानते हैं, वह वास्तव में स्वस्थ होगा, लेकिन अफसोस की बात है कि लोग खुद को स्वस्थ कह सकते हैं, जबकि वह सच में नहीं होता।

बाइबिल में कहा गया है, “सब चीजों को परखो; जो अच्छा हो, उसे पकड़ो।” यानी, इसे आजमाओ। अगर यह काम करता है, तो करो। लेकिन मैं कभी ज़हर नहीं आजमाऊंगी। किसी भी चीज़ को आजमाने से पहले, आपको यह पता करना चाहिए कि उसमें क्या है — इसमें क्या सामग्री है — तब जाकर आप इसे आज़माने का निर्णय लें।

11. पहले जो क्रेज दवाओं के लिए था अब वही सप्लीमेंट्स के लिए है, आप इनके बारे में क्या कहेंगी? क्या इनका इस्तेमाल सही है?

मैं आपको बताना चाहूंगी कि मैं हर दिन कोई सप्लीमेंट्स नहीं लेती। मैं खूब पानी पीती हूं, यह सुनिश्चित करती हूं कि मैं पौष्टिक आहार खा रही हूं। और मुझे सच में लगता है कि लोग जो पैसे सप्लीमेंट्स पर खर्च करते हैं, अगर वे वो पैसे बचा कर रखें, तो शायद वे साल में एक बार मेरे रीट्रीट या किसी भी ऐसी जगह जा सकते हैं, जहां उन्हें ज्यादा लाभ मिल सके।

अब, यह कहने के बाद, मैं यह मानती हूं कि कुछ मामलों में, कुछ सप्लीमेंट्स जरूरी हो सकते हैं। कल मैंने एक आदमी से बात की, जो अपनी हार्ट मेडिकेशन को बंद करने का सोच रहे थे। तो मैंने उनसे कहा, “खून की धमनियों को साफ रखने के लिए, रोज़ कयेन मिर्च खाना बहुत ज़रूरी है। दिल की मांसपेशियों को आराम देने के लिए मैग्नीशियम लेना भी ज़रूरी है। और हॉकथॉर्न बेरी, जो एक हर्ब है और दिल को मजबूत करता है, वह भी लेना महत्वपूर्ण है।” यह सिर्फ एक उदाहरण है कि कुछ मामलों में कुछ सप्लीमेंट्स जरूरी हो सकते हैं।

12. डिटॉक्स, सीड्स साइकलिंग, और भी बहुत सारे ट्रेंड सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते हैं, क्या ये सचमुच सेहत के लिए फायदेमंद हैं?

दुर्भाग्यवश, इनके बारे में अक्सर बहुत ज्यादा हाइप होती है। अगर इसके पीछे एक डॉलर का निशान हो, तो इस पर बहुत सतर्क रहने की ज़रूरत है। हो सकता है कुछ ऐसे भी हों जो ठीक हों — लेकिन यह कहना मुश्किल है, क्योंकि आपको हर एक का गहनता से विश्लेषण करना होगा।
और मेरे पास इस सबके लिए समय नहीं है। मेरे पास करने के लिए बहुत कुछ है। मुझे किताबें पढ़नी हैं, पहाड़ों को चढ़ना है, समुद्र में कूदना है। मैं हर दिन थोड़ा बहुत पढ़ाई जरूर करती हूं। लेकिन आपको खुद ही इसे खोजना होगा।

13. एंटी बायोटिक्स और एंटी इंफ्लेमेटरी दवाओं के बारे में आपके क्या विचार हैं?

यकीनन, वे शरीर की प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करते हैं। अब, मैं एंटीबायोटिक्स के खिलाफ पूरी तरह से नहीं हूं, लेकिन मुझे लगता है कि अधिकांश लोगों को अपने जीवन में कभी भी इनका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इन्हें केवल एक जीवन-रक्षक उपाय के रूप में रखा जाना चाहिए।

अगर कोई व्यक्ति यह समझे कि उसका शरीर कैसे काम करता है, और अगर किसी समस्या के पहले संकेत पर ही वह अपने शरीर को सही परिस्थितियां देना शुरू कर दे — जैसे कुछ हर्ब्स लेना, या एक दिन का उपवास रखना — तो ज्यादातर मामलों में एंटीबायोटिक्स की जरूरत नहीं होती।

हां, एंटीबायोटिक्स और एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाइयां शरीर की प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करती हैं। शरीर की प्राकृतिक प्रक्रियाओं के साथ काम करना और उसे ठीक करने में मदद करना कहीं बेहतर होता है।

14. शहरी महिलाओं को अपनी सेहत के लिए वे 5 जरूरी बातें, जो आप सुझाना चाहें?

कुछ बहुत ही सरल बातें हैं जो आप कर सकते हैं, और मैं इस बात की गारंटी दे सकती हूं क्योंकि मैंने खुद रेन फॉरेस्ट में सादा जीवन बिताया है। हमारे पास बिजली नहीं थी, तो नाश्ता बनाने के लिए मुझे आग जलानी पड़ती थी, और उस वर्षावन में मेरे साथ छह बच्चे थे। मैंने पाया कि नियमितता बहुत महत्वपूर्ण थी। मुझे हमेशा एक रुटीन पर काम करना पड़ता था। अगर मैं रुटीन को बनाए रखती, तो बहुत कुछ कर सकती थी।

पहली बात तो यह थी कि मुझे सोने का समय जल्दी तय करना था, इसलिए सबसे पहले तो रुटीन रखना ज़रूरी है — हमेशा रुटीन का पालन करें।

दूसरी बात, मैं यह सुनिश्चित करती थी कि मैं हर रात जल्दी सोऊं ताकि मेरा शरीर और दिमाग पूरी तरह से रातभर  में रिचार्ज हो जाए, और सुबह के लिए तैयार हो।

मुझे यह भी सुनिश्चित करना था कि मैं अच्छे से हाइड्रेटेड रहूं। पहले मुझे हाइड्रेटेड रहना बहुत मुश्किल लगता था, मुझे अक्सर सिरदर्द और साइनस की समस्या होती थी, और फिर मैंने पानी की अहमियत को समझा और पानी पीना शुरू किया। अब मुझे साइनस या सिरदर्द की समस्या नहीं होती, तो पानी सच में महत्वपूर्ण है।

शरीर को हिलाना ज़रूरी है, इसलिए मैंने हर दिन किसी न किसी प्रकार का व्यायाम किया। बहुत से युवा लोग, जिनका शरीर अच्छा काम कर रहा होता है, यह नहीं सोचते कि उन्हें इस पर समय देना चाहिए — लेकिन यह बहुत ज़रूरी है, क्योंकि जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, आप महसूस करने लगते हैं कि अगर आपने शरीर को मजबूत नहीं रखा और मांसपेशियों को नहीं बनाए रखा, तो असर दिखने लगता है। तो शरीर को हिलाना ज़रूरी है।

पांचवी बात जो मुझे लगता है, वह है पोषण। जितना हो सके, जैविक खाद्य पदार्थों को चुनना बहुत ज़रूरी है। मैं अपनी डाइट में 50 प्रतिशत कच्चा और 50 प्रतिशत पकाया हुआ रखती हूं क्योंकि कच्चा वह देगा जो पकाया हुआ नहीं दे सकता, और पकाया हुआ वह देगा जो कच्चा नहीं दे सकता।

नाश्ते के समय, मैं हमेशा ताजे फल खाती हूं और फिर कुछ दालें या बीन्स का कुछ न कुछ सेवन करती हूं — मुझे भारत में दालों और अलग-अलग बीन्स की डिशेज़ बहुत पसंद हैं — और आमतौर पर मैं नाश्ते में इन्हें खाती हूं, साथ में कुछ मेवे और बीज भी।
दोपहर के भोजन में, मैं हमेशा ढेर सारा सलाद खाती हूं, और फिर कुछ और दालें और सब्ज़ियां, शायद कुछ मेवे और बीज भी।
अगर मैं रात में खाती हूं, तो बहुत हल्का — अक्सर सूप या कुछ फल खा लेती हूं। तो पोषण सच में महत्वपूर्ण है।

15.बच्चे बहुत तनावपूर्ण, मोटे और आलसी हो रहे हैं, और यह समस्या पूरे विश्व के सामने है, इसका नेचुराेपैथी में क्या समाधान हो सकता है?

मैं खुश हूं कि आपने बच्चों ज़िक्र किया। माता-पिता ही वे लोग हैं जो यह तय करते हैं कि उनके बच्चे क्या करेंगे। मुझे लगता है कि यह बहुत ज़रूरी है कि बच्चों को तकनीक से बहुत ज़्यादा संपर्क में न लाया जाए, अगर बिल्कुल ज़रूरी न हो, क्योंकि यही एक वजह है कि बच्चे बहुत आलसी हो रहे हैं — क्योंकि वे डिवाइसेज पर गेम खेल रहे हैं।

Yoga ke fayde
बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम करने और दिनभर बैठने की आदत को दूर करने के लिए कम उम्र में योग से परिचित करवाना आवश्यक है। चित्र: शटरस्टॉक

आदर्श रूप से, हमें बच्चों से डिवाइसेज को दूर रखना चाहिए। और इसका मतलब यह भी है कि माता-पिता को खुद भी इन डिवाइसेज के उपयोग में अनुशासन दिखाना होगा, क्योंकि बच्चे वही करते हैं जो आप करते हैं, न कि जो आप कहते हैं।

मुझे यह भी लगता है कि यह बहुत ज़रूरी है कि बच्चों को बहुत छोटी उम्र से पोषक आहार के बारे में बताया जाए। यही मैंने अपने बच्चों के साथ किया, और मेरे बच्चे कुछ भी खा लेते थे, क्योंकि उन्होंने कभी कैंडीज़, चॉकलेट्स या परिष्कृत खाद्य पदार्थों का स्वाद नहीं चखा था। वे प्राकृतिक फल और सब्ज़ियों के साथ बहुत खुश रहते थे।

तो एक बार फिर, यह माता-पिता पर निर्भर करता है — कृपया एक रूटीन बनाएं। कृपया खाने के समय और पानी पीने के समय का पालन करें। जल्दी सोने की आदत बनाना भी ज़रूरी है। अगर आप चाहते हैं कि बच्चा सात बजे तक सो जाए, तो आपको शाम को लगभग पांच बजे से इसकी योजना बनानी होगी। दरअसल, आपको सुबह से ही इसकी तैयारी करनी होगी। उन्हें एक पौष्टिक नाश्ता दें, एक अच्छा लंच और फिर रात में हल्का भोजन दें।

और हां, यह सब आपकी जीवनशैली, स्कूल की आदतों आदि के हिसाब से बदल सकता है, लेकिन यह ऐसा कुछ होना चाहिए जो काम करता हो। याद रखें, हम अपने दिमाग को जीवनभर बदल सकते हैं, और बच्चों को बदलना सबसे आसान होता है।

हमेशा खुश रहें, हमेशा मुस्कान के साथ रहें, और अपने घर में वही रखें जो आप चाहते हैं कि आपके बच्चे खाएं।

यह भी पढ़ें – बेबी को डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए पानी पिलाना चाहिए? बच्चों के डॉक्टर दे रहे हैं इसका जवाब

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लेखक के बारे में
योगिता यादव
योगिता यादव

कंटेंट हेड, हेल्थ शॉट्स हिंदी। वर्ष 2003 से पत्रकारिता में सक्रिय।

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