घर के काम निपटा कर काम पर जाना और काम से लौट कर फिर काम में जुट जाना। यह महिलाओं की एक सार्वभौमिक चुनौती है। इसके बाद भी लगातार काम करने के बाद भी न ताे उन्हें वह सराहना मिलती है जिसकी वे हकदार हैं, न ही वह सफलता, जिसके लिए वे जी जान से जुटी रहती हैं। नेशनल लाइब्रेरी और मेडिसिन के शोध बताते हैं कि ज्यादातर परफेक्शनिस्ट लोग किसी न किसी ट्रॉमा से गुजर रहे होते हैं। ये अनकहे, अनसुलझे ट्रॉमा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संचरित होते हैं।
तनाव, आघात और अवसाद एक फंगस की तरह है, जिसका थोड़ा-बहुत असर आसपास के लोगों पर जरूर पड़ता है। और परिवार किसी भी व्यक्ति के सबसे पास की ईकाई है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में जब दुनिया भर की खास महिलाओं को पुरस्कृत, सम्मानित किया जा रहा है, हमने महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी उन मुद्दों पर बात की, जिन्हें आम कहकर इग्नोर कर दिया जाता है। इस सप्ताह के सेहत संवाद में हमारे साथ हैं मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट आरुषि सेठी शाह (Arushi Sethi Shah on mental health) ।
आरुषि सेठी शाह एक मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट हैं। जो मेंटल हेल्थ के लिए कॉरपोरेट के साथ भी काम कर रही हैं। वे मेंटल हेल्थ के लिए काम करने वाली संस्था त्रिजोग की सहसंस्थापक हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझने की शुरुआत तब हुई जब वे सिर्फ 21 वर्ष की थीं। वर्ष 2015 में जब नेपाल में भूकंप आया तब वे नेपाल की यात्रा पर थीं। यह विश्व का तब तक का दूसरा सबसे बड़ा भूकंप था और इसमें जानमाल की भारी क्षति हुई थी। कई भारतीय वहां फंसे हुए थे, जिनमें आरुषि भी एक थीं। भारतीय सेना के c130 हरक्यूलिस विमान की मदद से भारतीयों का वहां से निकाला गया। इस भूकंप में 8 हज़ार लोगों की मौत और ढाई हज़ार से ज्यादा घायल हो गए थे।
इस हादसे से गुजरना आरुषि (Arushi Sethi Shah on mental health) के लिए एक बड़ा सदमा था। एक तरह से यह आरुषि का दूसरा जन्म था, उन्हें बचा लिया जाना उनके लिए भी किसी चमत्कार से कम नहीं था। मगर मानसिक स्तर पर एक लंबी लड़ाई अभी बाकी थी। इस दुखद हादसे की दर्दनाक यादें उनके मन-मस्तिष्क को खरोंच रहीं थीं। वे एंग्जाइटी (Anxiety) और पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) की शिकार हो गईं। ये आरुषि की खुशकिस्मती थी कि उनकी मां उनके साथ थीं। जो खुद मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को बहुत अच्छी तरह समझती हैं, और इसका अनुभव भी रखती हैं।
आरुषि की मां ने उन्हें इस हादसे की बुरी यादों से बाहर आने में मदद की। रिकवरी का यह समय उनके लिए एक नई सोच और नए बदलाव का समय था। वे कहती हैं, “जब मैं एंग्जाइटी और अवसाद से बाहर आ रही थी, तब मुझे अहसास हुआ कि मेरे पास ताे मां है। जो मेरी भावनाओं और मेरी समस्याओं को बहुत अच्छी तरह समझ सकती हैं। मगर उन लोगों का क्या होता होगा, जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी (Arushi Sethi Shah on mental health) कोई भी मदद नहीं मिल पाती। और यही मेरे लिए त्रिजोग की स्थापना का कारण बना।”
वे आगे कहती हैं, “तब भी मेंटल हेल्थ क्लीनिक और मनोचिकित्सक तो होते थे, लेकिन उनके पास जाने वाले लोगों को अकसर पागल ही समझा जाता था। वे उपचार के क्रम में आपकी मदद कर सकते थे, मगर ऐसा माहौल नहीं था कि आप अपने मनोभावों को उनके साथ बांट सकें। मैंने महसूस किया कि ईश्वर ने मुझे इस कार्य के लिए यह नया जीवन दिया है। ताकि मैं उन लोगों की मदद कर सकूं, जो किसी भी तरह की मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं।”
आरुषि के संकल्प की ही ताकत है कि वे अब तक 25 मिलियन से ज्यादा लोगों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी सलाह और मदद दे चुकी हैं। उनके साथ 350 मनोवैज्ञानिकों की टीम है, जो अलग-अलग तरह की समस्याओं के विशेषज्ञ हैं।
पहले तो हमें यह समझना होगा कि ट्रॉमा आखिर है क्या। मैं मानती हूं कि हमारे समाज में मानसिक आघात के सर्वाधिक जोखिम हैं। यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति, अलग-अलग तरह के अपराध, आत्महत्याओं की दर ये सभी ट्रॉमा के अनसुलझे रह जाने के कारण और भी अधिक बढ़ रहे हैं। एक ऐसा समाज जहां तरह-तरह के जोखिम हैं, ट्रॉमा जीवन में कभी एंट्री कर सकता है। उसके लिए किसी जीवन-मरण के मसले का पैदा होना जरूरी नहीं है।
माता-पिता का दबाव, घरेलू हिंसा, मौखिक दुर्व्यवहार, गैर-मौखिक दुर्व्यवहार, धमकाना, आत्मविश्वास को दबाना, आत्मसम्मान की कमी ये सभी आघात यानी ट्रॉमा के ही उदाहरण हैं।
हां मुश्किलें तो आईं, पर मैं अपने लक्ष्य के प्रति सजग थी। मुझे मां का सपोर्ट था। मुश्किलों से हारकर पीछे हटना मेरा स्वभाव नहीं है। फिर किसी न किसी को तो शुरुआत करनी ही थी। एक-एक कदम से ही आगे का रास्ता तय होता है, जो अपने पीछे आने वाले लोगों के लिए एक राह बनाते हैं। दस साल के सफर में हमने कई उतार-चढ़ाव देखे। मगर समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए दस साल काफी नहीं हैं। यह अच्छी बात है कि अब सेलेब्रिटीज ने अपने-अपने मेंटल हेल्थ स्ट्रगल के बारे में बात करनी शुरू की है। और मेंटल हेल्थ (Mental health day 10 October) के लिए एक खास दिन भी समर्पित किया गया है। ताकि हम इस पर और ज्यादा बात कर सकें।
अब इसकी जरूरत को समझा जा रहा है! अब युवा भी जाग रहे हैं और कुछ बड़ी कंपनियां भी इसमें सहयोग कर रही हैं। एक बड़ी युवा आबादी को थेरेपी की जरूरत है। मगर अभी और बहुत सारे प्रयास की जरूरत है। सरकार को मेंटल हेल्थ के लिए निवेश करने की जरूरत है। लीडरशिप को इसके लिए आगे आना होगा। तभी कॉरपोरेट्स (Arushi Sethi Shah on mental health) में अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत को समझा जाएगा।
मैं अपने अनुभव से कहती हूं कि किशाेरों और युवाओं को यानी 15 से 30 साल की उम्र के लोगों को बहुत सारी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उम्र, बहुत सारे एक्सपोजर और सोशल मीडिया के कारण इनके सामने सेल्फ एस्टीम, आत्मविश्वास और आत्म सम्मान संबंधी कई मसले हैं। युवाओं में मैरिटल प्रोब्लम्स, काम से संबंधित तनाव, काम का बहुत ज्यादा बोझ और वर्क-लाइफ बैलेंस जैसी समस्याएं हैं।
हमें पहले इस बात को समझना होगा कि हमारा कॉर्पोरेट ढांचा एक महिला के अनुकूल कैसे हो सकता है। हमें अपने कॉरपोरेट कल्चर में बहुत सारे बदलाव करने होंगे। हो सकता है कुछ महिलाएं 9 से 5 की नौकरी न कर पाएं, जबकि कुछ 24/7 भी सक्रिय रहती हैं। हालांकि ज्यादातर महिलाएं दोहरी जिम्मेदारी संभाल रही होती हैं। वे दफ्तर निकलने से पहले कुकिंग और घर के काम निपटाती हैं और फिर काम से लौटकर भी उन्हें दोबारा काम में जुट जाना होता है। बच्चों की देखभाल आज भी महिलाओं के ही जिम्मे है। हमें ऐसी संस्कृति स्थापित करनी होगी जो महिलाओं को कामकाजी क्षेत्र में आगे ले जाए।
कॉरपोरेट वर्ल्ड में अब भी कई तरह की लैंगिक असमानताएं हैं। जब हम कॉरपोरेट के साथ जुड़ते हैं तो एक महिला के स्वास्थ्य, आत्मविश्वास, वर्क-लाइफ बैलेंस पर फोकस करते हुए काम करते हैं। समग्र विकास के 10 जरूरी स्तंभ (holistic pillars) हैं, शारीरिक स्वास्थ्य (Physical health), भावनात्मक स्वास्थ्य (Emotional health), आध्यात्मिक स्वास्थ्य (Spiritual health), सामाजिक स्वास्थ्य (Social health), व्यावसायिक स्वास्थ्य (Occupational health), पोषण संबंधी स्वास्थ्य (nutritive health)।
इन सभी के स्वस्थ होने पर ही मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य (psychological health at work) को बेहतर बनाया जा सकता है। वन टू वन मीटिंग के अलावा ग्रुप इंटरवेंशन की मदद से हम इसका आकलन करते हैं। मेंटल हेल्थ पर वेबिनार या वर्कशॉप कर देना ही काफी नहीं है। जब तक आप उनकी पर्सनल नीड नहीं समझते।
गहन मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रशिक्षण में हम बहुत गहराई से समझाते हैं कि आपको अपनी भावनाओं और खुद में हो रहे बदलाव को कैसे संबोधित करना है। अगर आपके किसी साथी या सहकर्मी में ऐसे बदलाव दिख रहे हैं, तो उनके साथ कैसा व्यवहार करना है। ताकि आप अपनी रोजमर्रा की चुनौतियों को बेहतर तरीके से डील कर सकें।
हमें बहुत सी चीजें देखने को मिलती हैं। एक बार एक कॉल आया कॉरपोरेट से कि एक कर्मचारी ने अपना पूरा सुसाइड प्लान बोर्ड पर लिख दिया है। ऐसी स्थिति में बहुत धैर्य के साथ सब कुछ डील करना होता है। व्यक्ति की समस्याओं को समझने के साथ ही, उसके कार्यस्थल से उसे क्या मदद मिल सकती है, इस पर भी ध्यान देना होता है।
हमारे पास ऐसे बच्चे भी आते हैं, जिनकी वजह से मां-बाप की रोने वाली हालत हो गई थी। सही काउंसलिंग बहुत जरूरी ऊर्जा और जीवन को बचा सकती है। मगर मेंटल हेल्थ इंडस्ट्री में भी सब सही हो रहा है, ऐसा नहीं है। कुछ लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, जबकि कुछ सिर्फ बुद्धू बनाने का काम कर रहे हैं।
ऐसी स्थिति में हमारी जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ जाती है। सही बदलाव लाने के लिए सही लाेगों को, सही समय पर, सही एक्शन लेना होगा।
सारी बात नजरिये की है। किसी भी चीज से पहले हमें अपनी सेल्फ वर्थ को रखना होगा। अगर हम दूसरों को खुश करने के लिए, झूठी तारीफें पाने के लिए अपने सपनों की बलि देते रहेंगे, तो हम कभी खुश नहीं हो सकते। यह सच है कि महिलाओं से बहुत अधिक अपेक्षा रखी जाती है और उन पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। मगर अपने लिए आपको खुद ही कदम उठाने होंगे। किसी और के नजरिये से आप अपनी सफलता या असफलता न आंकें। ब्रेक लेना और लगातार काम करना, दोनों पूरी तरह से नॉर्मल हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए एआई एक सहायक उपकरण हो सकता है, लेकिन यह कभी भी मुख्य उपकरण नहीं हो सकता | क्योंकि हर व्यक्ति अलग है, इसलिए हर व्यक्ति को अलग-अलग तरीकों से समझना होगा। प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग प्रकार की थेरेपी काम करेगी | इसके लिए बहुत गहन प्रशिक्षण की आवश्यकता है, जो हमने भारत में संभव बनाया है।
AI के माध्यम से आप किसी व्यक्ति का असेसमेंट कर सकते हैं, कुछ सपोर्टिव गेम्स तैयार कर सकते हैं, तनाव दूर करने के लिए कुछ गेम्स खेल सकते हैं, कुछ सवालों के त्वरित जवाब और सुझाव दे सकते हैं। मगर वन टू वन बातचीत या समस्या को समझने में किसी विशेषज्ञ की ही जरूरत होगी।
सच तो यह है कि अपना ख्याल सिर्फ बंदा खुद ही रख सकता है। अगर हमें लगता कि कोई और बाहर से हमारा ख्याल रखेगा, तो हम हमेशा परेशान रहेंगे। हर दिन यह 4 चीजें मेरे रुटीन का हिस्सा होती हैं – 1 शारीरिक स्वास्थ्य। चाहे आधा घंटा हो पर हर दिन अपने शरीर के लिए वर्कआउट और योगाभ्यास का समय निकालना बहुत जरूरी है। फिजिकली एक्टिव रहने से आपकी मस्तिष्क से पॉजीटिव हॉर्मोन रिलीज होते हैं, जिससे आप खुश रहते हैं।
दूसरा, इमोशनल हेल्थ, के लिए मैं महीने में 2 बार इंटेंसिव जर्नलिंग करती हूं। मैं महीने में एक बार थेरेपी लेती हूं, क्योंकि मुझे 350 लोगों की टीम को लीड करना होता है। मुझे कुछ अच्छा करने के लिए, अच्छा करवाने के लिए भीतर से अच्छा महसूस होना जरूरी है।
तीसरा, आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए हर रोज 45 मिनट मैं ध्यान या मेडिटेशन के लिए रखती हूं। सब कुछ करते हुए भी हमें अपने ब्रह्मांड से कनैक्ट रहना जरूरी है। चौथा, जो सबसे जरूरी है वो है दोस्तों और परिवारजनों से मिलना, उनके साथ समय बिताना। हम सामाजिक प्राणी हैं, दूसरों से मिलकर-जुड़कर ही हम अच्छा महसूस कर सकते हैं।
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