ग्लोबोकन 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 123,907 नए सर्वाइकल कैंसर के मामले पाए गए हैं और इस बीमारी से 77,348 लोगों ने अपनी जान गवां ली है। पैप स्मीयर या एचपीवी परीक्षणों के साथ नियमित जांच से कैंसर पूर्व घावों का पता लगाया जा सकता है, जिससे की समय रहते इलाज शुरू कर इसे ठीक किया जा सके।
सर्वाइकल कैंसर के मामले दिनों दिन तेज़ी से बढ़ रहे हैं। ये कैंसर सर्विक्स के इनर टिश्यू यानि गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकाओं में पनपता है। ह्यूमन पेपिलोमावायरस या एचपीवी वायरस, जो एक यौन संचारित संक्रमण है, रिप्रोडक्टिव सिस्टम को प्रभावित करने लगता है। इस संक्रमण के चलते शरीर में सर्वाइकल कैंसर की समस्या विकसित होने लगती है। यौन संपर्क के माध्यम से फैलने वाला यह रोग दुनियाभर में एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनकर उभर रहा है।
वहीं भारत में ब्रेस्ट कैंसर के बाद महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर के मामले सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। हांलाकि पैप स्मीयर परीक्षण या एचपीवी जांच से कैंसर का पता लगाया जा सकता है। इससे सर्वाइकल कैंसर के जोखिम को बढ़ने से रोका जा सकता है।
सर्वाइकल कैंसर (गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर) भारत में महिलाओं में कैंसर से होने वाली मौतों का प्रमुख कारण है। देश में हर दिन इसकी वजह से करीब 200 महिलाओं की मृत्यु होती है। इस रोग से निपटने के लिए वर्ल्ड हैल्थ असेंबली द्वारा 2020 में एक ग्लोबल रणनीति तैयार की गई थी, जिसके अंतर्गत आरंभिक लक्ष्यों को 2030 तक हासिल किया जाना निर्धारित किया गया है।
ये हैंः
1) दुनियाभर में 15 साल की उम्र तक 90% युवतियों का वैक्सीनेशन
2) 35 साल तक की उम्र तक, 70% महिलाओं में सर्विक्स के प्री-कैंसरस लक्षणों का पता लगाने के लिए उच्च स्तरीय जांच और इसे 45 की उम्र तक दोबारा करना, तथा
3) प्री-इन्वेसिव कैंसर का पता लगने वाले 90% मामलों का उपचार और इन्वेसिव कैंसर की पुष्टि जिन महिलाओं में हुई है उनमें 90% के मामले में इसे मैनेज करना
उपरोक्त लक्ष्यों को हासिल करने के लिए वैक्सीनेशन और पैप स्मीयर को कड़ाई से लागू करना। लेकिन इस बारे में केवल पढ़ने, लिखने या सुनने भर से समस्या हल नहीं होगी। इस बारे में कार्रवाई करने की आवश्यकता है और युवतियों एवं युवकों का वैक्सीनेशन तथा 25 से 65 वर्ष की यौन रूप से सक्रिय महिलाओं की स्क्रीनिंग बेहद जरूरी है।
हाइ-रिस्क टाइप ह्यूमैन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) का पुराना और लंबे समय से चला आ रहा इंफेक्शन सभी तरह के सर्वाइकल कैंसर का कारण होता है। दो हाइ-रिस्क टाइप, एचपीवी 16 तथा एचपीवी 18, दुनियाभर में 70% सर्वाइकल कैंसर के दोषी पाए गए हैं।
सभी सेक्सुअली एक्टिव लोग अपने जीवनकाल में कभी न कभी एचपीवी से जरूर इंफेक्ट होंगे। लेकिन आमतौर पर हम अपनी इम्युनिटी के सुरक्षा कवच की बदौलत इस वायरस से अपना बचाव कर पाते हैं।
लेकिन, यदि आपका पार्टनर किसी वजह से इम्युनोकॉम्प्रोमाइज़्ड है, तो ऐसे में एचपीवी लंबे समय तक उनके शरीर में छिपकर रह सकता है, और यह रिस्क का कारण होता है।
अमूमन देखा जाता है | सर्वाइकल कैंसर के रिस्क फैक्टर |
लक्षणों में शामिल हैंः
1. पीरियड्स के बीच में ब्लीडिंग होना,
2. यौन संसर्ग के बाद ब्लीडिंग
3. दुर्गंधयुक्त श्वेत स्राव और
4. कमर के निचले भाग में दर्द या पेट के निचले हिस्से में भी तकलीफ महसूस हो सकती है
5. पेशाब करने के दौरान अचानक दर्द या कठिनाई महसूस होना
6. कुछ मामलों में कोई लक्षण नहीं दिखाई देता।
स्पेक्युलम की मदद से योनि को खोला जाता है। इसके बाद, योनि में एक ब्रश डाला जाता है जो गर्भाशय ग्रीवा के अंदर खुरचकर कोशिकाओं के नमूने इकट्ठे करता है। इन कोशिकाओं की माइक्रोस्कोप से जांच कर रोग के लक्षणों का पता लगाया जाता है।
यह जांच केवल कैंसर के निदान के लिए की जाती है और हर 5 साल में स्क्रीनिंग करने पर इस जांच से एचपीवी के कारण असामान्य कोशिकाओं का पता लगाया जा सकता है और प्री-कैंसर स्टेज में ही बिना सर्जरी के उपचार किया जा सकता है।
कैंसर के खिलाफ जंग के लिए शुरुआत में ही रोग का निदान होना काफी महत्वपूर्ण होता है।
सर्वाइकल कैंसर के शुरुआती चरण में, ओपन या रोबोटिक सर्जरी की मदद ली जाती है। लेकिन यदि कैंसर एडवांस स्टेज में होता है तो रेडिएशन के साथ कीमो का इस्तेमाल किया जाता है। अक्सर एडवांस सर्वाइकल कैंसर के उपचार के लिए कीमो का इस्तेमाल किया जाता है।
सर्वाइकल कैंसर के उपचार के बाद 3 से 6 महीनों तक फौलो-अप बेहद महत्वपूर्ण होता है ताकि दोबारा कैंसर पनपने की स्थिति में फौरन जरूरी कदम उठाया जा सके।
नहीं, सर्वाइकल कैंसर आनुवांशिक नहीं होता। यानि, अगर आपके किसी संबंधी को यह रोग है या हो चुका है, तो इससे आपको कोई खतरा नहीं होता।
हां, यदि सबटोटल हिस्ट्रक्टमी की गई होती है, यानि सर्विक्स (गर्भ ग्रीवा) को नहीं निकाला गया होता, तो सर्वाइकल कैंसर हो सकता है। यहां तक कि कई बार सर्विक्स को निकाले जाने के बावजूद कुछ ऐसी कोशिकाएं बची रह जाती हैं, जो वेजाइनल वॉल्ट कैंसर का कारण बन सकती हैं।
हां, आपको भी नॉन एचपीवी लिंक्ड कैंसर हो सकता है।
नहीं, यह बिल्कुल भी तकलीफदेह नहीं होता और इसे ओपीडी में केवल 5 मिनट में करवाया जा सकता है।
विकसित देशों में, 70 फीसदी महिलाएं 3 से 5 साल पर स्क्रीनिंग करवाती हैं और उन देशों में 1 से 2 मौतें प्रतिदिन होती हैं। हमारे देश में, 1 फीसदी से भी कम महिलाएं स्क्रीनिंग करवाती हैं और यहां 200 मौतें प्रतिदिन दर्ज की जाती हैं। इसके जोखिम से बचने के लिए जरूरी है कि आप नियमित अंतराल पर पैप स्मीयर टेस्ट करवाएं।
जी हां, सर्वाइकल कैंसर के जोखिम से बचा जा सकता है। 9 से 26 वर्ष की उम्र की युवतियों और युवाओं के लिए सर्वाइकल कैंसर वैक्सीन उपलब्ध है। लाइफस्टाइल में बदलाव करके भी आप इसके जोखिम को कम कर सकती हैं। धूम्रपान बंद करें, शराब का सेवन कम करें, हेल्दी डाइट लें और गर्भनिरोधकों (कंडोम) का प्रयोग करें।
फिलहाल तीन प्रकार की एचपीवी वैक्सीन उपलब्ध हैं - 9-वैलेंट एचपीवी वैक्सीन (Gardasil 9, 9vHPV), क्वाड्रिवैलेंट एचपीवी वैक्सीन (Gardasil, 4vHPV), तथा, बाइवैलेंट एचपीवी वैक्सीन (Cervarix, 2vHPV)— इन्हें यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) से लाइसेंस प्राप्त है। ये सभी एचपीवी से बचाव और सुरक्षा दिलाने में कारगर हैं। एक अन्य वैक्सीन सर्वावैक भी है जो कि Gardasil 4 की ही तरह क्वाड्रिवैलेंट एचपीवी वैक्सीन है और यह भारत में ही निर्मित है। इस वैकसीन को भी हाल में विदेशी वैक्सीनों के समान ही सुरक्षित और कारगर पाया गया है।