लेप्रोसी (leprosy disease) एक बड़ी पुरानी बीमारी है। हिन्दी में इसे कुष्ठ रोग भी कहते हैं। ये ऐसी संक्रामक बीमारी है, जो हमारे स्किन, शरीर की नसों, आंखों और श्वसन तंत्र को बुरी तरह से प्रभावित करती है। ये मुख्य तौर पर माइकोबैक्टीरियम लेप्रे (Mycobacterium leprae) बैक्टीरिया के कारण फैलता है। यह बैक्टीरिया धीरे-धीरे शरीर में प्रवेश करता है और विशेष रूप से नसों को प्रभावित करता है। जिससे वे नसें शरीर के अलग–अलग अंगों को प्रभावित करने लगती हैं। वक्त पर अगर इस बीमारी का इलाज न किया जाए, तो शरीर के कई अंग काम करना भी बंद कर सकते हैं।
लेप्रोसी यानी कुष्ठ रोग (leprosy disease) के खतरे गुजरते वक्त के साथ कम हुए हैं। एक ऐसा दौर भी रहा है जब कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति को इलाज की बजाय अवहेलना का शिकार होना पड़ता था। महात्मा गांधी की पुण्यतिथि 30 जनवरी को 1955 में कुष्ठ रोग निवारण और जागरुकता के उद्देश्य से कुष्ठ रोग दिवस की शुरुआत की गई थी। तब तक ये लोगों के जागरूक न होने की वजह से बीमारी कम एक कलंक की तरह माना जाता था। इस दिवस को मनाने की शुरुआत इसलिए हुई ताकि लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ सके। देश की सरकारें इस रोग से ग्रस्त मरीजों की संख्या कम करने में सफल भी हुई। प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो के मुताबिक साल 2021-22 में लेप्रोसी के नए मरीजों की संख्या 75,394 थी। 2014-15 के मुकाबले इन मरीजों की संख्या 125,785 कम थी।
कुछ लोग आनुवांशिक रूप से इस रोग के प्रति सेंसिटिव होते हैं। जींस की वजह से उनमें ये बीमारी के तौर पर आ सकती है।
कई बार जिन व्यक्तियों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, उन्हें इस रोग का अधिक खतरा होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कमजोर इम्यून सिस्टम की वजह से हमारा शरीर लेप्रोसी के बैक्टीरिया से लड़ नहीं पाता।
कई बार ऐसे लोग जो लगातार लेप्रोसी के रोगी के साथ लंबे समय तक वक्त बिताते हैं, उन्हें भी इस रोग का खतरा हो सकता है।
लेप्रोसी के प्रमुख लक्षणों में से ये एक है। इस दौरान स्किन पर हल्के रंग के धब्बे या चकत्ते बन सकते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़ सकते हैं। अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो धब्बे परमानेंट हो जाते हैं।
लेप्रोसी की जद में आई स्किन पर सेंसीटिविटी महसूस होने लगती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लेप्रोसी के कारण उस हिस्से की नसें काम करना बंद करने लगती है। कई बार ऐसे लोग चोट से भी ज्यादा प्रभावित होने लगते हैं क्योंकि उन्हें दर्द या घाव का एहसास भी नहीं होता।
शरीर के अंगों, खासकर हाथों और पैरों में मांसपेशियों की कमजोरी हो सकती है। कुछ मरीजों में बुखार और कमजोरी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
लेप्रोसी की वजह से आंखों में सूजन, सूखी आंखें और नजर की समस्याएं भी हो सकती हैं। इसके साथ ही सांस के तंत्र में इन्फेक्शन के कारण नाक से भी खून आ सकता है।
यदि समय पर उपचार न किया जाए, तो प्रभावित अंग डैमेज हो सकते हैं, जैसे हाथों और पैरों की अंगुलियाँ घुमावदार हो सकती हैं। कई बार पैरों के तलवे भी खराब होने लगते हैं।
डॉक्टर सबसे पहले त्वचा पर धब्बे, चकत्ते और संवेदनहीनता की जांच करते हैं। इस आधार पर लेप्रोसी का अनुमान लगाया जा सकता है।
त्वचा के प्रभावित हिस्से से एक नमूना (बायोप्सी) लिया जा सकता है ताकि माइकोबैक्टीरियम लेप्रे बैक्टीरिया की पहचान की जा सके। इससे डॉक्टर्स कुष्ठ रोग कितना असर दिखा चुका है, इस बात का भी पता लगता है।
तंत्रिकाओं की स्थिति की जांच करने के लिए विभिन्न परीक्षण किए जा सकते हैं।
खून के परीक्षण से शरीर में संक्रमण के स्तर और इन्फेक्शन का पता लगाया जा सकता है।
लेप्रोसी के बैक्टीरिया को जांचने के लिए इसके कल्चर के टेस्ट का उपयोग किया जा सकता है।
यह लेप्रोसी के इलाज के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा सुझाया गया इलाज है। इसमें कुछ दवाइयाँ जैसे रिफाम्पिसिन (Rifampicin), डैप्सोन (Dapsone) और क्लोफाजिमिन (Clofazimine) शामिल हो सकती हैं। ये दवाइयाँ बैक्टीरिया को मारने में मदद करती हैं और बीमारी को कंट्रोल करती हैं। इस तरीके से उपचार आमतौर पर 6 से 12 महीने तक चलता है, लेकिन कुछ मामलों में इसे अधिक समय भी लग सकता है।
अगर लेप्रोसी के कारण अंगों में डैमेज हो चुका है तो कई बार सर्जरी की भी जरूरत पड़ती है। ये किसी भी डैमेज को बचाने के लिए भी किया जाता है और इस वजह से भी कि लेप्रोसी दूसरे अंगों को प्रभावित न करे।
लेप्रोसी की सूरत में कई बार मरीजों को दर्द और सूजन से भयानक तौर पर जूझना पड़ता है। ऐसी सूरत में डॉक्टर्स दर्द और सूजन कम करने के लिए भी दवा देते हैं।
कुस्ठ रोग से पीड़ित व्यक्तियों में असर उनकी आँखों और नसों तक भी जा सकता है। इस वजह से नसें बुरी तरह डैमेज होने लगती हैं। डॉक्टर्स अगर ये डैमेज डायगनोस कर लेते हैं तो उसका भी इलाज शुरू करते हैं।
लेप्रोसी, जिसे कुष्ठ रोग भी कहते हैं, एक बैक्टीरिया Mycobacterium leprae के कारण होता है। यह रोग लंबे समय तक किसी मरीज के संपर्क में रहने से फैल सकता है, लेकिन छूने से नहीं।
कुष्ठ रोग का इलाज मल्टीड्रग थेरेपी (MDT) से किया जाता है, जिसमें रिफाम्पिन, डाप्सोन और क्लोफाजिमिन शामिल होते हैं। यह दवा रोग को ठीक करने में सबसे प्रभावी मानी जाती है।
नहीं, कुष्ठ रोग छूने से नहीं फैलता। यह बीमारी बैक्टीरिया द्वारा फैलती है.लेकिन अगर आप लंबे समय तक किसी मरीज के संपर्क में रहते हैं, तो इसका खतरा आप तक भी पहुंच सकता है।
हां, कुष्ठ रोग को उचित इलाज से परमानेंटली ठीक किया जा सकता है। मल्टीड्रग थेरेपी (MDT) के द्वारा इसका सफल इलाज संभव है, जो पूरी तरह से रोग को खत्म कर सकता है।
कुष्ठ रोग में नीम तेल या तिल का तेल उपयोगी हो सकता है, क्योंकि ये एंटीबैक्टीरियल और सूजन कम करने वाले होते हैं। हालांकि, इलाज के लिए डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है।