पर्यावरण में मौजूद प्रदूषण, गतिहीन लाइफस्टाइल, खान-पान की बुरी आदतें स्ट्रेस लेवल और उनसे संबंधित डिसऑर्डर को बढ़ा दिया है। योग का अभ्यास स्वस्थ जीवन शैली के रूप में किया जाता रहा है। हाल में वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में भी योग को अपनाया गया है। योग रिलैक्स करता है। इसका उद्देश्य तनाव को कम करना है। रेलैक्सिंग टेक्निक के रूप में ब्रीदिंग एक्सरसाइज का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। कुछ शोध के निष्कर्ष भी ब्रीदिंग एक्सरसाइज खासकर सुदर्शन क्रिया (Sudarshan Kriya) को लाभदायक मानते हैं।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ योग में समीर ए. ज़ोपे और राकेश ए. ज़ोपे का शोध प्रकाशित किया गया। इसके अनुसार सुदर्शन क्रिया श्वास की यौगिक क्रिया है। इसमें सांस की गति और लय को मैनेज किया जाता है। इसका इम्यून सिस्टम, सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर प्रभाव पड़ता है। यह मनोवैज्ञानिक या तनाव-संबंधी विकारों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
सांस अच्छी तरह लेने से ही पता चलता है कि शरीर कितनी अच्छी तरह काम कर रहा है। रोजमर्रा की भागदौड़ के बीच अपने जीवन के लक्ष्यों को पूरा करने की होड़ में हम सचेतन गहरी सांस लेने के महत्व को नजरअंदाज कर देते हैं। ऑक्सीजन लेने और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ने की समकालिक क्रिया को सांस लेना कहा जाता है।
ऑक्सीजन शरीर के सेलुलर कार्यों के लिए जरूरी है। वयस्कों में श्वसन की सामान्य दर 12 से 20 सांस प्रति मिनट होती है। हाल के वर्षों में चिकित्सा शोध बताते हैं कि सचेतन या सचेतन सांस लेने की तकनीकों का अभ्यास करने से किसी व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव (Sudarshan Kriya) पड़ता है।
सांस को गति और लय के साथ लेना ही सुदर्शन क्रिया है। सुदर्शन क्रिया मुख्य रूप से प्राणायाम और सांस लेने की तकनीकों का एक संयोजन है। यह धीमी गति से सांस लेने और छोड़ने से शुरू होती है। धीरे-धीरे तेजी से सांस लेने की तकनीकों की एक श्रृंखला की ओर यह बढ़ती है। सुदर्शन शब्द का अर्थ है सकारात्मक रूप या दृष्टिकोण। क्रिया शुद्धि का एक कार्य है। सुदर्शन क्रिया की पूरी प्रक्रिया नियंत्रित श्वास पर ध्यान केंद्रित करती है। यह मन को नियंत्रित कर समग्र स्वास्थ्य में सुधार लाने पर आधारित है।
मनुष्य के फेफड़े लोब में बंटे होते हैं। दाहिने फेफड़े में तीन लोब होते हैं- ऊपरी, मध्य और निचला। बाएं फेफड़े में दो लोब होते हैं – ऊपरी और निचला। श्वास लेने और छोड़ने के माध्यम से सभी अंगों से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है।
सुदर्शन क्रिया का अभ्यास वज्रासन या थंडरस्टॉर्म मुद्रा में बैठकर किया जाता है। रीढ़ की हड्डी को सीधा रखकर शरीर को स्थिर कर लिया जाता है। व्यक्ति को पूरी अवधि के दौरान अपनी आंखें बंद रखनी चाहिए। ट्रेनर के निर्देशों और सांस लेने की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह क्रिया 20 से 30 मिनट तक चलती है। इसके बाद ध्यान और विश्राम होता है।
इसमें डायाफ्राम के संकुचन द्वारा धीमी और नियंत्रित गहरी सांस ली जाती है। इससे फेफड़ों और पेट का विस्तार होता है। इसके बाद धीमी सांस छोड़ना होता है। सही ढंग से अभ्यास करने पर गले में हवा की गति महसूस होती है। ग्लोटिस से समुद्र की तरह तेज सांस की आवाज निकलती है।
इसे बिलो ब्रीथ के रूप में भी जाना जाता है। भस्त्रिका प्राणायाम में डायाफ्राम के तेजी से संकुचन और फैलाव द्वारा नाक के माध्यम से सांस को जोर से अंदर लेना और छोड़ना है।
लंबे समय तक तीन बार ओम जपना चाहिए। इससे व्यक्ति एनर्जेटिक फील करता है। सुदर्शन क्रिया के चरण में लगातार तीन चरणों में सांस लिया जाता है। धीमी गति, मध्यम गति और तेज गति से सांस लेना।
क्रिया के अंतिम चरण में ध्यान लगाना और विश्राम करना है। योगाभ्यास में विश्राम उतना ही महत्वपूर्ण है जितना किसी अन्य व्यायाम (Sudarshan Kriya) में। सांस पर ध्यान केन्द्रित करने से अपनेआप मेडिटेशन हो जाता है।
अध्ययनों में पाया गया कि सुदर्शन क्रिया अभ्यास स्ट्रेस और एंग्जायटी को कम करके बेहतर नींद प्राप्त करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर में भी सुदर्शन क्रिया के अभ्यास से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। इससे स्किन भी चमकदार (Sudarshan Kriya) हो सकती है।
यह भी पढ़ें :- Bedtime Yoga Poses : आपको रिलैक्स कर गहरी नींद लाने में मदद करते हैं ये 4 योगासन, इस तरह करें अभ्यास
डिस्क्लेमर: हेल्थ शॉट्स पर, हम आपके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सटीक, भरोसेमंद और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके बावजूद, वेबसाइट पर प्रस्तुत सामग्री केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है। इसे विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए। अपनी विशेष स्वास्थ्य स्थिति और चिंताओं के लिए हमेशा एक योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से व्यक्तिगत सलाह लें।