बचपन जीवन का वो पहला अध्याय है कि जिस पर आप सीधी या आड़ी तिरछी जो भी रेखाएं खींच देंगे। उसका प्रभाव जीवन भर उसके व्यक्तित्व में झलकता रहेगा। छोटी छोटी बातों पर नाराज़ हो जाना, दूसरों से बात करने में हिचकिचाहट और सोशल गैदरिंग से दूरी। ये सभी संकेत इस ओर इशारा करते हैं कि आपको चाइल्डहुड (Childhood) में हेल्दी एनवायरमेंट नहीं मिल पाया। इसके चलते आपके दिमाग में बहुत सी चीजों को लेकर डर बना रहता है। अगर आपको अपने हर काम के लिए बचपन से ही प्रोत्साहन और प्यार मिला है, तो आपका माइंड हेल्दी रहेगा।
अगर आपको बात बात पर डांट और घर में हर पल नाराज़गी का वातावरण मिलता है, तो ये आपके व्यवहार को नकारात्मक बना देता है और आप चाइल्डहुड ट्रॉमा (Childhood trauma) के शिकार हो जाते हैं। जानते हैं चाइल्डहुड ट्रॉमा क्या है और आप इससे कैसे मुक्त हो सकते हैं (tips to overcome childhood trauma)।
इस बारे में बातचीत करते हुए गंगा राम हास्पिटल में साइकॉलोजिस्ट, सीनियर कंसलटेंट, डॉ आरती आनंद ने कई चीजों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि चाइल्डहुड ट्रॉमा (Childhood trauma) का अर्थ बचपन में किसी भी प्रकार का फिजिकल, सेक्सुअल और साइकॉलोजिकल एबयूज या आघात का होना होता है। बच्चों को मारना और सेक्सुअली हैरासमेंट उनके मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालती है। इसका असर एडल्टहुड में भी उन पर बना रहता है। इसके चलते बच्चे अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं और वे अपनी एक अलग दुनिया में रहने लगते हैं।
बचपन की कोई ऐसी दर्दनाक घटना जो बच्चों के सामने घटित हुई हो और उसकी स्मृतियां बच्चे के मन में अब भी मौजूद है। यही चाइल्डहुड ट्रॉमा (Childhood trauma) का कारण बन जाता है। अचानक किसी अपने से अलग होगा, किसी बात पर कठोर दण्ड का मिलना या प्रताड़ना का सामना आघात का कारण बन जाता है। इससे बच्चे की पर्सनेलिटी में कई प्रकार के बदलाव आने लगते हैं। बच्चे हर पल खोए हुए और जल्दी झुझंलाहट का शिकार हो जाते हैं।
बहुत से पेरेंटस बच्चे की हर गलती के लिए उसे समझाने की बजाय उसके साथ मारपीट करते हैं। जो बच्चे में फिज़िकल ट्रॉमा का कारण बन जाता है। अब अगर आप बच्चे को अपने पास बुलाना भी चाहते हैं, तो वो हर पल आपसे डरता है और सहम जाता है। कई बार पेरेंटल बर्नआउट भी बच्चे में फिज़िकल ट्रॉमा का कारण बनने लगता है।
बच्चों के जेनिटल्स को टच करना और उन्हें बार बार अपने करीब लेकर आना बच्चे के अंदर डर की भावना को पैदा कर देता है। कई बार संयुक्त परिवारों में बच्चों के साथ ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं। जो बच्चों में सेक्सुअल ट्रॉमा की वजह बनता है। अब बच्चा किसी के भी छूने से डरने लगता है और किसी अजनबी से बात करने में भी कतराने लगता है।
कई बार बचपन में घटित कोई घटना या उससे दिमाग को लगने वाला सदमा मेंटल ट्रॉमा कहलाता है। वो ऐसी बातें होती है। जो उम्र भर दिमाग में कैद रहती है और बार बार ट्रिगर होती हैं। कई बार आप इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि आप इस समस्या से जूझ रहे हैं। जानते हैं इस समस्या से बाहर आने के टिप्स।
तन के साथ मन का ख्याल रखना बेहद ज़रूरी है। अगर आपका मन शांत होगा। तभी आप किसी भी प्रकार के निर्णय को लेने में सक्षम महसूस करेंगे। ऐसे में कुछ देर योग करें और मेडिटेशन के ज़रिए अपने मन को सुकून प्रदान करें। इससे आपकी मेंटल हेल्थ इंप्रूव होने लगेगी।
बचपन में माता पिता का व्यवहार बच्चों को फिजिकली और मेंटली प्रभावित करता है। ऐसे में ट्रॉमा से बाहर आने और अपने अस्तित्व को मज़बूत बनाने के लिए पेरेंटस के साथ बनी हुई दूरियों को कम करें और अपनी प्रोबलम्स को उनसे शेयर करने का प्रयास करें।
अपने तक हर चीज़ को सीमित रखने के चलते आपके मन में बोझ बढने लगता है। जो आपको मेंटनी डिस्टर्ब कर देता है। इसके चलते वे लोग जो ट्रॉमा से गुज़र रहे है। वे अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में हर पल दुखी और उदास होकर बैठने की जगह खुश रहें। दोस्तों के साथ समय बिताएं और उनसे अपनी समस्या को भी शेयर कर लें।
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कस्टमाइज़ करेंअगर कोई व्यक्ति डिप्रेस है या किसी कारणवश तनाव में है, तो काउसलिंग लेना बेहद ज़रूरी है। इससे आप बरसों पुरानी मानसिक समस्याओं से उभरने लगते हैं। जीवन को देखने का आपका दृष्ठिकोण बदलने लगता है और आप खुद को हल्का महसूस करते हैं।
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