खराब जीवनशैली कई रोगों का कारण बनती है। इसके कारण शरीर के अंग प्रभावित होने लगते हैं। रोग असामान्य स्थिति है, जो किसी जीव या उसके किसी भाग की संरचना या कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। यह तुरंत किसी बाहरी चोट के कारण नहीं हो सकता है। बीमारियों को अक्सर चिकित्सीय स्थितियों के रूप में जाना जाता है। यह विशिष्ट संकेतों और लक्षणों से जुड़ी होती है। इन दिनों नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज अवेयरनेस मंथ मनाया जा रहा है। जानते हैं रोगों की यह ख़ास श्रेणी (neglected tropical diseases) क्या है?
यूं तो जनवरी के महीने को नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज अवेयरनेस मंथ माना जाता है। लेकिन हर साल 30 जनवरी को वर्ल्ड नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज अवेयरनेस डे (World Neglected tropical disease awareness day) मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत वर्ष 2012 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) की पहल पर हुआ। इसके माध्यम से नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज के प्रति लोगों को जागरूक (world Neglected tropical disease awareness day) किया जाता है।
वर्ल्ड नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज (Neglected tropical diseases-NTDs) डिजीज स्वास्थ्य के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक परिणामों से भी जुड़ा होता है। एनटीडी मुख्य रूप से ट्रॉपिकल रीजन में पूअर कम्युनिटी के बीच प्रचलित है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुमान के मुताबिक, एनटीडी 1 अरब से अधिक लोगों को प्रभावित (neglected tropical diseases) करती हैं। एनटीडी इंटरवेन्शन और ट्रीटमेंट दोनों की आवश्यकता वाले लोगों की संख्या 1.6 अरब हो सकती है।
नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज (Neglected tropical diseases-NTDs) अलग -अलग प्रकार के पैथोजेन्स के कारण होती हैं। यह वायरस, बैक्टीरिया, फंगस और टॉक्सिन्स के कारण होती हैं। एनटीडी की एपिडेमोलॉजी जटिल है। यह अक्सर पर्यावरणीय परिस्थिति से संबंधित होती है। उनमें से कई वेक्टर-जनित हैं। ये जटिल जीवन चक्र से जुड़े होते हैं। ये सभी कारक सार्वजनिक-स्वास्थ्य नियंत्रण को चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।
एनटीडी में कई रोग शामिल हैं- बुरुली अल्सर, चगास डिजीज, डेंगू, चिकनगुनिया, ड्रैकुनकुलियासिस, इचिनोकोकोसिस, फ़ूड बोर्न ट्रेमोडिएसिस, ट्रिपैनोसोमियासिस, लीशमैनियासिस, लेप्रसी।
इनके अलावा, फाइलेरिया, मायसेटोमा, क्रोमोब्लास्टोमाइकोसिस, मायकोसेस, ओंकोसेरसियासिस, रेबीज, एक्टोपारासिटोज़; शिस्टोसोमियासिस, हेल्मिंथियासिस, टेनियासिस/सिस्टीसर्कोसिस, ट्रेकोमा जैसे रोग भी हो सकते हैं।
चगास डिजीज मेक्सिको, मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में आम है। बुरुली अल्सर भी भारत में कोई समस्या नहीं है। ड्रैकुनकुलियासिस को गिनी वर्म डिजीज कहते हैं। इथियोपिया, दक्षिण सूडान और माली में ये रोग सबसे अधिक होते हैं। इचिनोकोकोसिस, फ़ूड बोर्न ट्रेमोडिएसिस, ट्रिपैनोसोमियासिस अफ्रीकी देशों में प्रचलित है। ऊपर बताये गए ज्यादातर रोग अफ्रीकी देशों में होते हैं। भारत में जो रोग प्रमुख रूप से होते हैं, वह नीचे बताये गए हैं।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन वेबसाइट के अनुसार, विकासशील देशों में खासकर जहां आर्थिक समस्या, सेनिटेशन की समस्या बहुत अधिक होती है। वहां नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज (neglected tropical diseases) होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। एस्कारियासिस (Roundworm disease), हुकवर्म इन्फेक्शन (Hookworm disease) , ट्राइक्यूरियासिस (Trichiasis-अंदर की ओर मुड़ी पलकें), लेशमानियेसिस (कालाजार) लिम्फेटिक फाइलेरियासिस(Filariasis or elephant foot), ट्रेकोमा (Trachoma) , सिस्टीसर्कोसिस (tapeworm infection), लेप्रोसी(Leprosy), रेबीज (Rabies) के अलावा, डेंगू बुखार (Dengue Fever) भी इस श्रेणी में शामिल हैं।
भारत में कालाजार यानी लेशमानियेसिस (Visceral leishmaniasis) नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज के रूप में बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, चार राज्यों बिहार के 38 जिलों में से 33, झारखंड के 24 जिलों में से 4, उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से 54 जिलों के अलावा, पश्चिम बंगाल के 23 जिलों में से 11 जिलों में इस रोग का प्रकोप है।
काला-ज़ार, जिसे विसेरल लीशमैनियासिस या काला बुखार भी कहा जाता है, सबसे अधिक संख्या में लोगों को प्रभावित करने वाली नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज (neglected tropical diseases) है। इसके कारण 1 अरब से अधिक लोग प्रभावित होते हैं।
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