सर्वाइकल कैंसर जागरूकता माह जनवरी है। इसलिए इस महीने में सरकारी और गैर सरकारी संस्थान इस रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने के प्रयास में जुट जाते हैं। सेंटर्स फॉर डिजीज कण्ट्रोल एन्ड प्रीवेंशन संस्थान भी इस दिशा में बहुत अधिक कार्य कर रहे हैं। सीडीसी मानती है कि दुनिया अभी भी COVID-19 महामारी से उबर रही है। इस कारण महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं में रुकावटें अभी भी मौजूद हैं। एचपीवी टीकाकरण, स्क्रीनिंग, कैंसर पूर्व उपचार और सर्वाइकल कैंसर प्रबंधन तक पहुंच बढ़ाना और स्वस्थ समुदायों का निर्माण करना बहुत जरूरी है। तभी इस कैंसर के प्रति लड़ाई (cervical cancer fight) आसान हो जायेगी।
अमेरिका में 50 से अधिक वर्षों से अमेरिकी रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र या सेंटर्स फॉर डिजीज कण्ट्रोल एन्ड प्रीवेंशन संस्थान (सीडीसी) काम कर रही है। हाल के वर्षों में सीडीसी भारत सरकार और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर सार्वजनिक स्वास्थ्य और रोगों के रोकथाम (cervical cancer fight) पर अधिक काम कर रही है।
प्रजनन प्रणाली को प्रभावित करने वाला सबसे आम वायरस ह्यूमन पेपिलोमावायरस या एचपीवी है। यह अलग-अलग रूप में मौजूद होता है। एचपीवी संक्रमण कुछ महीनों के भीतर बिना किसी हस्तक्षेप के गायब हो जाता है। इसके संक्रमण का एक छोटा सा हिस्सा जो शरीर में रह सकता है, सर्वाइकल कैंसर में विकसित हो सकता है। सर्वाइकल कैंसर वायरस का एक अत्यंत सामान्य परिवार है, जो यौन संपर्क के माध्यम से फैलता है। रोकथाम योग्य और इलाज योग्य बीमारी होने के बावजूद सर्वाइकल कैंसर दुनिया भर में महिलाओं में बड़ी स्वास्थ्य समस्या के रूप में जिम्मेदार है। खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में।
हर साल भारत सहित विदेश में रहने वाली लगभग 12,000 महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर होता है। स्क्रीनिंग और उपचार के बावजूद सर्वाइकल कैंसर लगभग 4,000 महिलाओं की जान ले लेता है। लगभग 80% व्यक्तियों को अपने जीवन में कभी न कभी एचपीवी संक्रमण होता है। वायरस के वेरिएंट हाई जोखिम वाले वाले लोगों में कैंसर विकसित कर सकते हैं। सीडीसी के अनुसार सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए सबसे पहले किशोर लड़कियों और महिलाओं के लिए स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है। साथ ही उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा बिना किसी असमानता के उन तक पहुंचना जरूरी है।
डब्ल्यूएचओ जैसे सरकारी निकायों के लिए सर्वाइकल कैंसर पहली नॉन कम्युनिकेबल बीमारी है, जिसे प्राथमिकता के आधार पर उन्मूलन के लिए लक्षित किया गया है। इसमें अत्यधिक प्रभावी जांच विधियों और टीकाकरण की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है। कई देशों में एचपीवी के खिलाफ पहल से सर्वाइकल कैंसर की संख्या में काफी कमी आई है। कैंसर से मौतें भी काम हुई हैं। डब्ल्यूएचओ ने टीकाकरण, जांच और उपचार के लिए लक्ष्य बनाये हैं। 2030 तक सर्वाइकल कैंसर खत्म करने की कोशिश की जाएगी।
वर्तमान में भारत में तीन एचपीवी टीके उपलब्ध हैं। इनमें हाल ही में लॉन्च की गई स्वदेशी एचपीवी वैक्सीन सेरवावैक शामिल है। यह भारत सरकार और दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के बीच एक संयुक्त पहल है। सेरवावैक टीका चार एचपीवी जीनोटाइप से बचाता है, जिनमें दो (एचपीवी 16 और एचपीवी 18) शामिल हैं, जो लगभग 70 प्रतिशत सर्वाइकल कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं। इसकी लागत बहुत सस्ती है। यह सुरक्षित (cervical cancer fight) भी माना जाता है।
यदि टीकाकरण से जुड़ी अन्य बाधाओं को उसी समय दूर कर दिया जाए, तो स्वदेशी और किफायती एचपीवी वैक्सीन भारत के सर्वाइकल कैंसर के बोझ को दूर कर सकती है। एचपीवी टीकाकरण को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करने से लोगों को इसके महत्व का पता चल पायेगा। इसके लिए, टीकों से संबंधित स्टिग्मा, मिथ और अन्य मुद्दों को जानने के लिए व्यापक जागरूकता कार्यक्रम (cervical cancer fight) शुरू किए जाने चाहिए। लोगों को यह समझना जरूरी है कि एचपीवी टीकाकरण एचपीवी संक्रमणों के खिलाफ सुरक्षित, प्रभावी और स्थायी सुरक्षा प्रदान करता है।
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