हम केक-पेस्ट्री बेक करते हैं। एनर्जी ड्रिंक तैयार करते हैं। इन सभी में आर्टिफिशियल स्वीटनर का प्रयोग करते हैं। यहां तक कि घर में यदि कोई डायबिटीज पेशेंट है, तो फ़ूड में आर्टिफिशियल स्वीटनर का और अधिक प्रयोग करने लग जाते हैं। आर्टिफिशियल स्वीटनर (artificial sweeteners) हमारी आंतों (Gut health) का बहुत नुकसान पहुंचा जाते हैं।
ब्रिटेन के एक नए अध्ययन के अनुसार, कृत्रिम स्वीटनर नियोटेम मानव गट वे में स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा देता है। इससे माइक्रोबायोटा में परिवर्तन, इरिटेबल गट सिंड्रोम जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। यह इंसुलिन रेसिस्टेंस, मोटापा और सूजन जैसी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल-संबंधी गड़बड़ियों के रूप में सामने (artificial sugar effect on gut health) आता है।
ब्रिटेन के कैम्ब्रिज में एंग्लिया रस्किन विश्वविद्यालय का कृत्रिम चीनी पर एक नया अध्ययन आया है। इसके अनुसार आर्टिफिशियल स्वीटनर नियोटेम मानव गट (artificial sugar affects gut health) के स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। जिससे इरिटेबल गट सिंड्रोम, माइक्रोबायोटा में परिवर्तन जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
नियोटेम एक स्वीटनर है, जिसे बेक्ड सामन, अन्य खाद्य उत्पादों और टेबलटॉप फ्लेवरिंग के एक घटक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। नियोटेम स्वीटनर अधिक वजन और मोटापे का कारण भी बन सकते हैं। जो स्वयं कई पुरानी बीमारियों के कारक हैं।
हार्वर्ड हेल्थ पब्लिकेशन के अनुसार, गट माइक्रोबायोटा पाचन तंत्र में रहने वाले माइक्रोऑर्गेनिज्म का का एक जटिल समुदाय है। माइक्रोऑर्गेनिज्म 1500 से अधिक प्रकार के होते हैं, जिनमें 99% बैक्टीरिया लगभग 30-40 प्रजातियों से आते हैं।
अकेले गट में विविध माइक्रोबायोटा की सबसे बड़ी आबादी होती है। इसमें 100 ट्रिलियन बैक्टीरिया मौजूद हो सकते हैं। सामान्य गट शरीर क्रिया विज्ञान और स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए गट माइक्रोबायोटा जरूरी है। इसलिए मनुष्यों में इसकी कमी अक्सर विभिन्न रोग स्थितियों से जुड़ा होता है।
जीन, आयु, एंटीबायोटिक दवा, पर्यावरण और आहार सहित विभिन्न कारक गट माइक्रोबायोटा की संरचना और कार्य को प्रभावित कर सकते हैं। इनमें से एक नॉन न्युट्रिशयस स्वीटनर्स हो सकते हैं।
न्यूट्रिएंट जर्नल के प्री-क्लीनिकल और क्लिनिकल अध्ययनों के परिणाम आये हैं। एस्पार्टेम, एसेसल्फ़ेम-के, सुक्रालोज़ और सैकरीन सबसे अधिक प्रभाव डालते हैं। ये मेटाबोलिज्म प्रक्रिया को प्रभावित कर देते हैं। इसके कारण गट हेल्थ और गट माइक्रोबायोटा की संरचना और संख्या पर भी प्रभाव देखा गया।
हालांकि कुछ आर्टिफिशियल शुगर की 90 प्रतिशत से अधिक मात्रा यूरीन और स्टूल के माध्यम से बाहर आ जाती है। कुछ शरीर में एब्जॉर्ब हो जा सकते हैं। इनका प्रभाव गट माइक्रोबायोटा के हेल्थ पर पड़ता है।
न्यूट्रिएंट जर्नल के मेटा एनालिसिस के अनुसार, सैकरीन एक ऐसा एसिड है, जो पानी में घुल जाता है। यह मनुष्यों के लो पीएच गट में अधिक आसानी से अवशोषित हो जाता है। मनुष्यों में 85% से 95% के बीच सैकरीन बिना टूटे हुए अणु के रूप में अवशोषित हो जाता है। क्योंकि यह इंटेस्टिनल मेटाबोलिज्म से नहीं गुजरता है।
एक बार अवशोषित होने के बाद यह प्लाज्मा प्रोटीन से बंध जाता है। फिर यह पूरे शरीर में ट्रांसफॉर्म होता है। एब्जॉर्ब नहीं हुए सैकरीन का एक छोटा प्रतिशत मल में उत्सर्जित होता है। इससे पता चलता है कि इस आर्टिफिशियल शुगर का हाई कंसन्ट्रेशन आंतों की माइक्रोबियल आबादी की संरचना को बदल (artificial sugar affect gut health) सकती है।
यह भी पढ़ें :- इरिटेबल बोवेल सिंड्रोम के लक्षणों से राहत दिला सकता है लाल पत्तागोभी का जूस : शोध