35 साल की निहारिका अपनी प्रेग्नेंसी के बारे में सुनकर बहुत खुश थी। निहारिका और उसेके पति को यह ख़ुशी शादी के कई साल बाद मिली थी और वह दोनों बह उत्सुक थे। उसकी प्रेगनेंसी को डेढ़ महीना ही बीता था और एक दिन अचानक से उसे पेट में दर्द का अनुभव हुआ। कुछ स्पॉटिंग भी देखी। निहारिका और उसेके पति तुरंत ही नजदीकी अस्पताल में गए। अल्ट्रासाउंड ने यह पुष्टि की कि बच्चे की दिल की धड़कन सुनाई नहीं दे रही है और पता चला कि निहारिका का मिसकैरेज (गर्भपात) हो गया है। और वे दोनों ये नहीं समझ पाए कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? हर साल 32 फीसदी जोड़े गर्भपात का सामना करते हैं। पर यह नहीं समझ पाते कि गर्भपात के लिए कौन से कारण (Causes of miscarriage) जिम्मेदार हो सकते हैं।
गर्भपात बच्चे के कोख में ही दम तोड़ने को कहते हैं। यह स्थिति गर्भधारण करने के 20 हफ्ते या 5 महीने बाद आती है। जब किसी महिला को एक साथ 3 या उससे ज्यादा बार गर्भपात होता है, तो इसे बार-बार होने वाला गर्भपात (रिकरंट मिसकैरेज) कहा जाता है।
भारत में एक बार गर्भपात की घटनाएं 32 फीसदी हैं और बार-बार गर्भपात की घटनाएं करीब 7.4 फीसदी है। यह अभी तक अज्ञात है कि बार-बार गर्भपात होने का क्या कारण है पर बार-बार गर्भपात होने के बाद भी पूर्णकालिक गर्भावस्था होने की संभावना 60 से 65 फीसदी होती है।
ऐसी कौन सी स्थितियां हैं जो किसी भी प्रेगनेंसी में गर्भपात का कारण बन सकती हैं? यह जाने के लिए हमने डॉ. पी सी महापात्रा से बात की। डॉ महापात्रा प्राची इंस्टीट्यूट फॉर मदर एंड चाइल्ड केयर में डायरेक्टर हैं।
डॉ महापात्रा कहते हैं, “कुछ आनुवांशिक कारक (वंशानुगत स्थितियां या भ्रूण या गर्भनाल में पैदा हुई अनियमितताएं) गर्भ में पल रहे बच्चे की शारीरिक संरचना में असामान्य आकार की समस्याएं, फाइब्रॉयड की मौजूदगी या कमजोर ग्रीवा (भ्रूण की गर्दन), पर्याप्त प्रोजेस्टेरोन की कमी जैसी स्थितियां (ल्यूटियल चरण की कमी), पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम) आदि गर्भपात की संभावना बढ़ा देते हैं।”
“दूसरी ओर, तनाव, डिप्रेशन, सदमा, डर लगने, कोई भारी सामान उठाना, सेक्स करने, मसालेदार भोजन करने और विमान से यात्रा करने पर गर्भपात का जोखिम बढ़ता है। इसकी जगह आपको अपने डॉक्टर से यह जानना ठीक रहेगा कि आपके लिए कौन सी सावधानी बरतना सही है।”
गर्भपात किसी भी जोड़े के लिए एक तनावपूर्ण स्थिति लेकर आता है। इसलिए यह जरूरी है कि इसके जोखिमों को समझने के बाद उनसे बचाव के कदम उठाए जाएं। इस बारे में आगे बात करते हैं डॉ महापात्रा कहते हैं, “मां और पिता की उम्र इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गर्भपात का खतरा उस समय सबसे ज्यादा होता है, जब मां की उम्र 35 साल और पिता की उम्र 40 साल से अधिक होती है। अत्यधिक धूम्रपान, शराब और कैफीन, मोटापा, थायरॉइड की परेशानी, ब्लडप्रेशर और डायबिटीज, किडनी की समस्याएं और कोकीन जैसे ड्रग्स के इस्तेमाल से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है।”
इसके अलावा, “वायरस, बैक्टीरिया और यौन संचरण संबंधी रोग, मलेरिया और फूड पॉइजनिंग जैसी स्थितियों के कारण होने वाले संक्रमण भी गर्भपात का जोखिम बढ़ा सकते हैं।”
गर्भपात कई कारकों, जैसे वजन, ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, इन्फेक्शन, पीसीओएस से हो सकता है ।लेकिन बहुत लोग इस बात से अज्ञात रहते हैं कि ये इलाज करने योग्य स्थितियां है। इन्हे कंट्रोल करने से गर्भपात का जोखिम कम किया जा सकता है।
गर्भावस्था की शुरुआत में उचित प्रोजेस्टेरोन लेवल रहना आवश्यक है। प्रोजेस्टेरोन सप्लिमेंटेशन में मदद कर सकता है। इस मामले में प्रेग्नेंसी की शुरुआत में होने वाली वैजाइनल ब्लीडिंग वाले मरीजों में वैजाइनल प्रोजेस्टेरोन की जगह ओरल डाईड्रोजेस्टरोन (सिंथेटिक प्रोजेस्टेरोन) को प्राथमिकता दी गई है।
ओरल डाईड्रोजेस्टरोन ने गर्भपात के खतरे को 47 फीसदी कम कर दिया। कुछ दंपतियों के मामले में विट्रोफर्टिलाइजेशन उचित विकल्प हो सकता है, जबकि कुछ मामलों में गर्भावस्था को बरकरार रखने के लिए वेजाइनल प्रोजेस्टोरोन की जगह सुरक्षित और प्रभावी विकल्प हो सकता है।
डॉ महापात्रा अंत में कहते हैं, “हर गर्भवती महिला का सपना होता है कि वह एक स्वस्थ और हंसते-खेलते बच्चे को जन्म दे। गर्भपात एक हकीकत है, जिससे हमें निपटना होगा। अपने काउंसलर से अपनी अच्छी तरह जांच कराने और सपोर्ट से दंपतियों को मुश्किल समय में राहत पाने में मदद मिलेगी। आपको यह सुनिश्चित करना है कि आप अपनी गर्भावस्था के हर चरण में डॉक्टर की सलाह को मानें।”
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