हिंदी के लोकप्रिय लेखक नरेंद्र कोहली ने अपने उपन्यास ‘दीक्षा’ में सबसे पहले राम को आम आदमी के रूप में पेश किया। उन्होंने बताया कि हमारी और आपकी तरह राम भी सामान्य व्यक्ति थे, पर उनके कुछ खास गुण (leadership qualities of Lord Rama) उन्हें विशेष बनाते हैं। उन्होंने अपनी मेहनत, विचार और विवेक से खुद को विशिष्ट गुणों से संपन्न बनाया और आम लोगों के नायक (leadership qualities of Lord Rama) बन गए।
बाद के वर्षों में अंग्रेजी के लोकप्रिय लेखक अमीश त्रिपाठी ने ‘इच्छवाकु के वंशज’ में बताया कि राम ने एक आम आदमी की तरह जीवन भर संघर्ष किया। अपनी इच्छा शक्ति के बल पर संघर्षों से मुकाबला किया। इसमें विजय हासिल कर आम आदमी के प्रतिनिधि बने। राम जीवन भर सकारात्मक काम करते रहे। उन्होंने ऐसे काम किये, जो कठिन भी नहीं थे और जिसे हर व्यक्ति अपनी दृढ इच्छाशक्ति के बल पर कर सकता है। हम इस आलेख में राम के ऐसे कार्यों के बारे में जानेंगे, जिनसे हर आदमी प्रेरणा लेकर अपने जीवन को तनावमुक्त और खुशहाल बना सकता है।
लेखक नरेंद्र के उपन्यास ‘दीक्षा’ के अनुसार नायक राम अलौकिक नहीं, बल्कि सामान्य व्यक्ति हैं, जो दूसरों की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। यह सच है कि व्यक्ति की क्षमता, गुण, स्वभाव और प्रकृति के आधार पर ही उसके व्यक्तित्व का निर्धारण होता है। राम मानते थे कि सभी व्यक्ति में गुण-दोष होता है। पर आप अपने गुणों से दोष को भी गुण में बदल सकते हैं।
कई महापुरुष जैसे कि स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, राजगुरु, सुखदेव, शंकराचार्य आदि राम के इसी विचार पर आगे बढे। ये सभी लोग लोभ, मोह, ईर्ष्या, स्वार्थ से कोसों दूर रहे। इसलिए ये सभी राम राम की कोटि में सकता है। कोई भी सामान्य व्यक्ति यदि चाहे, तो अपने गुणों के आधार पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम समान बन सकता है।
वनवासी राम राजा राम से भी ज्यादा आकर्षित करते हैं। राजपाठ छोड़कर जब वे जंगल में रहे, तब उनकी राह में अनेक कठिनाइयां आईं, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। राम कभी मुश्किलों से हार नहीं मानते।
श्रीलंका तक जब उन्होंने सेतु बनाने का निर्णय लिया, तो यह सभी के लिए असम्भव कार्य सा लगा। पर उन्होंने कभी मुश्किलों से हार नहीं मानी। उन्होंने ऐसे कारीगरों का साथ लिया, जो समुद्र पर भी सेतु बनाने में सक्षम थे। कई बार वे असफल भी हुए। पर उनके धैर्य ने जवाब नहीं दिया और वे सीढ़ी दर सीढ़ी अपना लक्ष्य हासिल करते गए।
अकसर नए साल की शुरुआत में या अपने जन्मदिन पर हम सभी कोई न कोई संकल्प लेते हैं। पर सप्ताह भी नहीं बीतता कि हम अपने संकल्प भूलकर वापस उसी ढर्रे पर आ जाते हैं। जबकि जननायक राम का जीवन दृढ़ संकल्प होने और उन्हें पूरा करने में प्राण-पण से जुट जाने का प्रतीक है। आपको अपनी परफॉर्मेंस बढ़ानी है, नए गोल अचीव करने हैं या बुराइयों को छोड़ना है, उनके लिए दृढ़ संकल्प होना जरूरी है।
स्मोकिंग, अल्कोहल, जंक फूड, लापरवाही, ये वे छाेटे-छोटे दुश्मन हैं जो आपके व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचाते हैं। जब आप इनकी पहचान कर लें, तो उनसे छुटकारा पाने के लिए दृढ़ संकल्प हों।
एक ही बात को कहने का अंदाज उसके रिजल्ट को प्रभावित कर सकता है। आप ही सोचिए जब कोई काम आपको आदेश के अंदाज में कहा जाता है, तो क्या आप उसे करते हुए वैसी ही ऊर्जा महसूस करते हैं, जैसी विनम्रता से कहे गए काम के समय होती है। इसलिए कहा जाता है कि विनम्रता सबसे बड़ी शक्ति है।
राम राजा थे। पर वे जीवन भर आम आदमी बने रहे। कभी भी उन्होंने अपनी शक्ति और विवेक पर घमंड नहीं किया। जब भी उन्हें किसी चीज जरूरत हुई, तो उन्होंने पूरी विनम्रता से उसे मांगा। संघर्ष के समय वे छोटे से छोटे व्यक्ति की मदद लेने से नहीं चूके। अपनी विजय का श्रेय हर प्राणी को दिया। विनम्रता ही उनकी शक्ति है। आम आदमी भी ऊंचाई पाने के बावजूद विनम्रता का साथ नहीं छोड़ें।
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कस्टमाइज़ करेंटीम वर्क फैमिली और प्रोफेशनल लाइफ की सफलता की अहम कुंजी है। जब आप दायित्व और क्रेडिट बांटते हैं, तो आपके आसपास का माहौल ज्यादा सहज, सकारात्मक और प्रोडक्टिव होता है। राम ने भी ऐसा ही किया। जो लोग राम को भगवान मानते हैं वे कहते हैं कि राम कुछ भी अकेले ही सकते थे। जबकि जन नायक राम ने एक आदमी की तरह वास्तविक लक्ष्यों के लिए वास्तविक टीम बनाई और उनके दायित्वों का बंटवारा किया।
राम के लिए कोई भी कार्य असम्भव नहीं था। इसके बावजूद उन्होंने हर कार्य में सभी का साथ लिया। रावण पर विजय पाने के लिए एक छोटी से प्राणी गिलहरी का भी साथ लिया। दायित्वों के बाद श्रेय बांटना भी एक लीडर की क्वालिटी (leadership qualities of Lord Rama) है। वह सफलता का श्रेय पूरी टीम के साथ बांटते हैं।
अमीश त्रिपाठी अपनी किताब इक्ष्वाकु के वंशज में बताते हैं कि देश-समाज के लिए सोचने वालों का एक ही उद्देश्य होता है-समानता और न्याय का पालन। इसके लिए चाहे उन्हें स्वयं दुख ही क्यों न सहना पड़े। राम ने बाली को मारकर किष्किंधा राज्य अपने पास न रखकर सुग्रीव को दे दिया। इसी तरह रावण को मारकर लंका विभीषण को दे दिया।
उन सभी को राम एक पॉजिटिव राज्य की स्थापना करने का सन्देश (leadership qualities of Lord Rama) देते हैं। उन्होंने खुद चौदह वर्षों तक वनवास का दुख सहा। सीता के वाल्मीकि मुनि के आश्रम चले जाने पर उनकी तरह जमीन पर सोते रहे। हर तरह से तपस्वी का जीवन बिताया।
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