मोबाइल या टीवी पर कोई मनपंसद फिल्म या शो देखते वक्त कब घंटो बीत जाते हैं, इस बात का अंदाजा नहीं हो पाता हैं। वहीं ऑफिस में देर तक काम करने के कारण स्क्रीन टाइम बढ़ने लगता है। देर तक स्क्रीन देखने से आंखों को इचिंग, बर्निंग और लालिमा समेत कई समस्याओं से होकर गुज़रना पड़ता है। दरअसल, आंखों पर पड़ने वाला स्ट्रेन दृष्टि के अलावा मसल्स को भी नुकसान पहुंचाने लगता है। मगर नई पीढ़ी गैजेट्स की दुनिया में पूरी तरह से खो चुकी है, जिससे गैजेटस से निकलने वाली ब्लू लाइट आंखों को नुकसान पहुंचा रही है। जानते हैं स्क्रीन टाइम बढ़ने से आखों को होने वाले नुकसान और उसका समाधान भी (excessive screen time effects on eyes)।
होवरटन आई सेंटर के अनुसार हाई एनर्जी विज़िबल लाइट को ब्लू लाइट के रूप में भी जाना जाता है, जो डिजिटल उपकरणों से निकलती हैं और आंखों में प्रवेश करने लगती हैं। इससे आंखों की समस्याओं का खतरा बढ़ने लगता है। डिजिटल आई स्ट्रेन या कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम का सामना करना पड़ता है। लंबे समय तक टैबलेट, स्मार्टफोन या टीवी देखने से आंखों में दर्द, जलन, ड्राई आई सिंड्रोम और सिरदर्द का सामना करना पड़ता हैं।
अमेरिकन ओपटोमेटरिक एसोसिएशन के अनुसार ब्लू लाइट के एक्सपोज़र से आंखों में स्ट्रेन की समस्या बढ़ने लगती है। मैक्यूलर डीजनरेटन और रेटिनल सेल्स डैमेज होने की समस्या से होकर गुज़रना पड़ता है। लॉन्ग टर्म विजन संबधी समस्या से बचने के लिए स्क्रीन टाइम को अवॉइड करें।
इस बारे में नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ सौरभ अरोड़ा का कहना है कि ड्राई आई सिंड्रोम एक क्रॉनिक डिज़ीज़ है, जिससे ग्रस्त व्यक्ति आंखों में जलन, खराश और चुभन की शिकायत करता है। ड्राई आई सिंड्रोम में आंखों की सतह पर बैक्टीरिया पनपने लगता है। स्क्रीन टाइम बढ़ने, मौसम में बदलाव, धुंआ, सन एक्सपोज़र और गर्मी के चलते इस समस्या का सामना करना पड़ता है।
लंबे वक्त तक डिजिटल स्क्रीन के सामने रहने से आंखों में थकान और सिरदर्द की समस्या का जोखिम बढ़ जाता है। इसके अलावा देर तक स्क्रीन देखने से स्क्रीन पर फोकस करने से परेशानी का सामना करना पड़ता है। डॉ सौरभ अरोड़ा के अनुसार वे लोग जो काम के दौरान ब्रेक नहीं लेते हैं, उनकी आंखों के सामने धुंधलापन छांने लगता है।
कंप्यूटर स्क्रीन के सामने घंटों बिताने से किसी भी चीज़ पर फोकस करने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इसके चलते बच्चों में मायोपिया की समस्या का खतरा बढ़ जाता है। वे माता पिता, जो मायोपिया से ग्रस्त है, उन्हें बच्चों का अवश्य ख्याल रखना चाहिए।
डॉ सौरभ अरोड़ा के अनुसारआंखों की दृष्टि को उचित बनाए रखने के लिए हर 20 मिनट के बाद ब्रेक लें और फिर 20 फीट की दूरी पर रखे किसी भी चीज़ को 20 सेकण्ड तक देखें। लंबे वक्त तक ब्राइट स्क्रीन को दोखने के बाद इस एक्टीविटी को करने से आंखों को सुकूल मिलता है।
उचित दृष्टि को बनाए रखने के लिए आंखों का ख्याल रखना ज़रूरी है। इसके लिए नियमित रूप से आंखों की जांच करवाएं, ताकि आंखों में बढ़ने वाली खुजली, जलन और धुंधलेपन से राहत मिल सके। इसके अलावा डॉक्टर के बताए आई ड्रॉप्स और ल्यूब्रीकेंटस को रूटीन में प्रयोग करें।
अंधेरे में स्क्रीन के सामने काम करने से दृष्टि पर उसका बुरा प्रभाव नज़र आने लगता है। इससे आई स्ट्रेन बढ़ने लगता है, जो आंखों में ब्लर विजन का कारण साबित होता है। इस बात का ख्याल अवश्य रखें कि कमरे की लाइट का एक्सपोज़र उतना रखें जितना स्क्रीन लाइट का हो।
फोकस को बनाए रखने के लिए स्क्रीन को निकट लाने की जगह इसके लिए 1.2.10 का रूल अपनाएं। इसके तहत फोन को एक कदम की दूरी पर रखें, कंप्यूटर या लैपटॉप को 2 कमद की दूरी पर रखें और बच्चों के लिए गैजेट 10 कदम की दूरी पर रखना ज़रूरी है। इससे आंखों का स्वास्थ्य उचित बना रहता है।
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