गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में कई प्रकार के बदलाव आने लगते हैं और ये सिलसिला बच्चे के जन्म के बाद भी जारी रहता है। आमतौर पर महिलाएं शिशु की देखरेख के चलते पोस्टपार्टम स्वास्थ्य समस्याओं को नजरअंदाज करने लगती है। इन्हीं में से एक है पोस्टपार्टम कब्ज यानि कॉस्टीपेशन। गर्भावस्था के बाद महिलाओं में बढ़ने वाली पाचन संबंधी समस्याएं अनियमित बॉवल मूवमेंट का कारण साबित होती है। शरीर में बढ़ने वाले हार्मोनल बदलाव इस समस्या का कारण साबित होते हैं। जानते हैं पोस्टपार्टम कब्ज के कारण और इससे डील करने के उपाय भी (constipation after pregnancy)।
महिलाओं के शरीर में गर्भावस्था के दौरान और बाद में कई प्राकर के बदलाव नज़र आते हैं। इस दौरान प्रोजेस्टेरोन के स्तर में कमी सहित हार्मोनल उतार.चढ़ाव गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल फ़ंक्शन को प्रभावित करने लगता है। इसके चलते शरीर में कब्ज के साथ महिलाओं को कई पाचन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
वेजाइनल डिलीवरी के बाद खासतौर से महिलाओं को बवासीर की समस्या का सामना करना पड़ता है। स्टूल पास करने में होने वाली तकलीफ कब्ज का कारण साबित होती है, जिसके चलते बवासीर की समस्या बढ़ने लगती है। न्यू मॉम्स को इस समस्या से बचने के लिए डॉक्टरी जांच अवश्य करवानी चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान और बाद में महिलाओं को दी जाने वाली आयरन सप्लीमेंटस कब्ज का कारण साबित होने लगती हैं। नियमित तौर पर इसका सेवन करने से हालांकि इसका कोई सटीक कारण नहीं है कब्ज, पेट दर्द और सूजन जैसी समस्याओं से होकर गुज़रना पड़ता है।
इस बारे में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ आरती भरत बताती हैं कि एपिसीओटॉमी या पेरिनेल टियर से दर्द और असुविधा का सामना करना पड़ता है। बच्चे के जन्म के लिए वेजाइना और एनस के बीच कट लगाकर बनाया जाने वाला स्थान लंबे वक्त तक दर्द का कारण साबित होता है। दरअसल, वेजाइनल बर्थ के बाद महिलाओं को बॉवल मेंवमेंट में तकलीफ होने लगती है।
बच्चे के जन्म के दौरान महिलाओं को एनल स्पींचर इंजरी का सामना करना पड़ता है। इसके चलते अक्सर महिलाओं को वॉबल मूवमेंट में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। ऐसे में एनल स्पींचर में होने वाली तकलीफ कब्ज की समस्या का कारण साबित होता है।
हेल्दी डाइजेशन को बनाए रखने और कब्ज की समसया को दूर करने के लिए नियमित मात्रा में पानी पीएं। दिनभर में आठ से दस गिलास पानी पीने से कब्ज की समस्या कासे नियंत्रित किया जा सकता है। स्तनपान के दौरान भी शरीर में पानी की उचित मात्रा का होना ज़रूरी है।
पोस्टपार्टम तनाव और कई प्रकार की चिंताएं पाचनतंत्र को प्रभावित करती है। शरीर को हेल्दी और तनाव मुक्त रखने के लिए ब्रीदिंग एक्सरसाइज़, मेडिटेशन और योग की मदद लें। इससे तनाव के स्तर को कम करके डाइजेशन संबधी समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है।
मील में फाइबर रिच फूड को शामिल करने ने बॉवल मूवमेंट को नियमित बनाए रखने में मदद मिलती है। इसके लिए आहार में फल, सब्जियां, साबुत अनाज, बीन्स और नट्स को सम्मिलित करें, ताकि शरीर को पोषण की प्राप्ति हो। शरीर में बढ़ने वाली कब्ज की समस्या को दूर करने के लिए स्टार्च वाली सब्जियों, अनाज, डेयरी प्रोडक्टस से बचें।
प्रून्स और सूखे प्लम में नेचुरल लैक्सेटिव प्रापर्टीज़ पाई जाती है। इसमें मौजूद सोर्बिटोल की मात्रा स्टूल को सॉफ्ट बनाकर पास करने में मदद करता है। हार्वर्ड हेल्थ पब्लिशिंग की एक रिसर्च के अनुसार 3 से लेकर 7 सप्ताह तक प्रून जूस का सेवन करने से नियमित बॉवल मूवमेंट में मदद मिलती है। प्रून्स और सूखे प्लम को दलिया या दही में मिलाकर खाने से भी मदद मिलती है।
पोस्टपार्टम कब्ज से राहत पाने के लिए रोज़ाना गर्म तरल पदार्थों का सेवन डज्ञइजेशन को मज़बूती प्रदान करता है। इससे डाइजेशन स्टीम्यूलेट होता है और कब्ज की समस्या दूर होने लगती है। इसके लिए कैमोमाइल या पेपरमिंट हर्बल टी का सेवन करें। इसके अलावा गर्म पानी में नींबू मिलाकर पीने से भी फायदा मिलता है। कब्ज के दौरान कैफीन से दूरी बनाकर रखें।
प्रोबायोटिक्स का सेवन करने से शरीर को हेल्दी बैक्टीरिया की प्राप्ति होती हैं जो गट हेल्थ को संतुलित बनाए रखने में मदद करता हैं। इसके लिए आहार में दही, केफिर और फरमेंटिड वेजिटेबल को शामिल करें। ब्रेस्टफीडिंग के दौरान डॉक्टर की सलाह से ही प्रोबायोटिक्स का सेवन आरंभ करें।
योनि की मांसपेशियों में बढ़ने वाली कमज़ोरी कब्ज का कारण साबित होने लगती हैं। ऐसे में पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज या केगेल एक्सरसाइज को करने से कब्ज की समस्या हल होने लगती है। नियमित तौर पर इसका अभ्यास करने से ओवरऑल हेल्थ को फायदा मिलता है।
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