क्या आपने अपने बेबी को मच्छर के काटने से बचाने का पूरा इंतजाम किया है? जी हां, जैसे-जैसे मौसम बदल रहा है, वैसे-वैसे मच्छरों की संख्या और समस्या दोनों बढ़ने लगी हैं। आपको खुद को और अपने बेबी को मच्छर के काटने से बचाना जरूरी है। क्योंकि मच्छर का काटना सिर्फ डेंगू या मलेरिया ही नहीं, बल्कि फाइलेरिया जैसी गंभीर बीमारी को भी जन्म दे सकता है। जो आपके प्रजनन अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकती है। जानिए इस बीमारी के बारे में और भी विस्तार से।
फाइलेरिया को आम भाषा में हाथीपांव रोग कहा जाता है। यह बीमारी मच्छर के काटने से फैलती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, दीर्घकलिक दिव्यांगता की एक बड़ी वजह फाइलेरिया है। यह एक ऐसी घातक बीमारी है जो शरीर को धीरे-धीरे खराब करती है। इस वजह से इस बीमारी का पता समय पर नहीं लग पाता है और कुछ समय बाद यह काफी फैल जाती है।
एक्सपर्ट का कहना है कि यदि समय पर फाइलेरिया का पता चल जाता है, तो इसका उपचार संभव है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मध्य प्रदेश के एनटीडी कोऑर्डिनेटर डॉ. देवेन्द्र सिंह तोमर का कहना हैं फाइलेरिया मच्छर के काटने से फैलता है। यह एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। तो आइए जानते हैं फाइलेरिया बीमारी कैसे होती है, इसके लक्षण, कारण उपचार क्या है?
फाइलेरिया के बारे में लोगों में बेहद कम जागरूकता देखने को मिलती है। जबकि यह बेहद घातक और खतरनाक बीमारी है। यह ऐसी बीमारी है जो बच्चों को बचपन में ही हो जाती है। हालांकि, इसके लक्षण काफी सालों बाद नजर आते हैं। डॉ. तोमर के मुताबिक इसके लक्षण इस प्रकार है-
फाइलेरिया बीमारी क्यूलेक्स मच्छर के काटने से फैलती है। इसके काटने से शरीर में वुचेरिया बेंक्राफ्टी नाम का परजीवी प्रवेश कर जाता है। क्यूलेक्स मच्छर माइक्रो फाइलेरिया लार्वा को जन्म देता है। इसके अलावा एनोफेलीज और वेक्टर मैनसनिया मच्छरों के काटने से भी फाइलेरिया की बीमारी हो सकती है। इन मच्छरों के काटने से बॉडी में ब्रुजिया मलेई परजीवी शरीर में पहुंच जाता है। मच्छरों के काटने के कारण माइक्रोफाइलेरिया लार्वा शरीर में लिम्फेटिक और लिम्फ लोड्स में चला जाता है। जो कई सालों तक शरीर में एडल्ट वर्म में विकसित होते रहते हैं।
किसी भी बीमारी के सही उपचार के लिए उसकी ठीक-ठाक पता लगाना बेहद आवश्यक है। फाइलेरिया बीमारी का पता लगाने के लिए भी विभिन्न टेस्ट किए जाते हैं। जिनके बारे में विस्तार से जानते हैं-
फाइलेरिया का कारण माइक्रोफाइलेरिया नाम का लार्वा है। जो किसी व्यक्ति के खून में रात के समय फैलता है। जिसका पता ब्लड टेस्ट के जरिए लगाया जा सकता है।
लिम्फेटिक में माइक्रोफाइलेरिया लार्वा की माइक्रो टेस्टिंग के लिए सीरोलॉजिकल टेस्ट किया जाता है। बता दें कि फाइलेरिया से पीड़ित लोगों के ब्लड में एंटीफिलरियल आईजीजी-4 का स्तर बढ़ जाता है। नियमित सीरोलॉजिकल टेस्ट से इसका सही पता लगाया जा सकता है।
यह फाइलेरिया का नैदानिक परिक्षण है। इस टेस्ट के जरिए वुचेरिया बेंक्राफ्टी की सही प्रजाति का पता लगाया जा सकता है।
यह एक प्रकार का इम्यून-क्रोमैटोग्राफी टेस्ट है। इस परीक्षण के जरिए ब्लड, प्लाज्मा और सीरम में वुचेरिया बेंक्राफ्टी संक्रमण का पता लगाया जाता है।
शरीर में बी-मलेई और बी-टिमोरी एंटीबॉडी के परीक्षण के लिए ब्रुजिया क़्विक टेस्ट किया जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मध्य प्रदेश के एनटीडी कोऑर्डिनेटर डॉ. देवेन्द्र सिंह तोमर का कहना हैं कि फाइलेरिया बीमारी से निपटने के लिए इस एक मिशन की तरह लिया जा रहा है। इसके लिए दो साल से छोटे बच्चों, गंभीर बीमारियों के रोगियों और प्रेग्नेंट महिलाओं को छोड़कर सभी को फाइलेरिया रोधी दवाइयां दी जा सकती है। इसके लिए लोगों को डीईसी और अल्बंडाजोल जैसी फाइलेरिया रोधी दवाइयां दी जाती है। ये दवाइयां माइक्रोफाइलेरिया लार्वा को रक्तप्रवाह से हटाने का काम करती है।
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