कार्टिलेज यानी उपास्थि (cartilage) शरीर का एक महत्वपूर्ण संरचनात्मक कॉम्पोनेंट है। यह एक हार्ड टिश्यू है, लेकिन बोंस की तुलना में नरम और अधिक लचीला होता है। यह एक कॉनेक्टिव टिश्यू है, जो शरीर के कई क्षेत्रों में पाया जाता है। कार्टिलेज में किसी प्रकार का डैमेज होने पर सीधा असर जॉइंट पर पड़ता है। इससे आर्थराइटिस होने का खतरा बना रहता है। शोध में यह बात सामने आई है कि डैमेज कार्टिलेज (cartilage treatment) का उपचार किया जा सकता है। जानिए क्या है यह शोध और भविष्य में यह कितना कारगर हो सकता है।
कोरिया के डोंगुक यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में किये गये शोध के अनुसार, एक ख़ास तरह के लिक्विड के इस्तेमाल से यह संभव किया जा सकता है। यह एक चिपकने वाला प्रोटीन (adhesive protein) है, जो समुद्री जीव मूसेल और हायलूरोनिक एसिड के मिश्रण से प्राप्त किया जा सकता है। यह बायोमैटीरियल प्रयोगशाला में डेवलप किया गया था।
कार्टिलेज को मजबूती देने के लिए एडहेसिव प्रोटीन इंजेक्शन के माध्यम से भी दिया जा सकता है। हालांकि पहले भी स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन के माध्यम से कार्टिलेज इन्फ्लेमेशन और डैमेज का इलाज किया जाता रहा है। पर इसकी भी अपनी कुछ सीमाएं हैं।
एडहेसिव प्रोटीन को चिपकने वाला प्रोटीन भी कहा जाता है। यह जिलेटिन के स्रोत से उत्पन्न होता है, जो आमतौर पर पिग्स और कैटल की खाल और हड्डियों से निकाला जाता है। इस शोध में प्रयोग किया जाने वाला एडहेसिव प्रोटीन समुद्री मसल्स (sea mussels) से प्राप्त किया गया।
यह मोलस्क यानी घोंघा परिवार का सदस्य है, जो समुद्र के निचले सतह में पाया जाता है। इस शोध के निष्कर्ष कोरियाई केमिकल इंजीनियरिंग जर्नल में भी प्रकाशित हुए। इस एडहेसिव प्रोटीन को कार्टिलेज डैमेज में कारगर पाया गया है, लेकिन आम लोगों के प्रयोग में आने में अभी वक्त लगेगा।
यह बोंस के जॉइंट्स जैसे कि कोहनी, घुटने और टखने (ankle) के बीच पाया जाता है। यह रिब्स के सिरे, स्पाइन, कान, नाक, ब्रोन्कियल ट्यूब या एयरवेज में भी पाया जाता है। यह बोन के लिए सेफगार्ड का काम करता है। इसमें किसी भी प्रकार की समस्या आने पर सीधा असर बोंस पर पड़ता है। इसके डेमेज होने पर इसे दोबारा विकसित करना संभव नहीं है। हाल में कुछ रिसर्च इस बात का दावा कर रहे हैं कि अब डैमेज कार्टिलेज का ट्रीटमेंट (cartilage treatment) किया जा सकता है।
इससे पहले भी स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में डैमेज कार्टिलेज पर शोध किया गया। स्टैनफोर्ड स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने कार्टिलेज को पुन: उत्पन्न करने (regenerate) का एक तरीका खोजा है, जो हड्डियों के बीच गति को आसान बनाता है।
शोधकर्ताओं ने जोड़ों में पाए जाने वाले उपास्थि के कुशन को पुन: उत्पन्न करने का एक तरीका खोजा है। जोड़ों के दर्द और गठिया के कई मामलों के लिए टिश्यू की एक परत, जिसे आर्टिकुलर कार्टिलेज कहा जाता है, का नुकसान जिम्मेदार है। आम तौर पर जोड़ों के दर्द और सूजन से कहीं अधिक परेशानी उत्पन्न करता है। यह शोध नेचर मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
शोध में बताया गया है कि क्षतिग्रस्त कार्टिलेज का इलाज माइक्रोफ्रैक्चर तकनीक के माध्यम से किया जा सकता है। इससे जोड़ की सतह में छोटे-छोटे छेद ड्रिल कर किए जाते हैं। माइक्रोफ्रेक्चर तकनीक शरीर के जोड़ में नए ऊतक बनाने के लिए प्रेरित करती है। नया ऊतक कार्टिलेज की तरह नहीं होता है।
आर्टिकुलर कार्टिलेज एक जटिल ऊतक है, जो जोड़ों में हड्डियों के बीच सपोर्ट प्रदान करता है। जब यह किसी प्रकार के आघात और बीमारी से क्षतिग्रस्त हो जाता है या उम्र के साथ पतला हो जाता है, तो हड्डियां सीधे एक-दूसरे के खिलाफ रगड़ने लगती है। इससे दर्द और सूजन हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप गठिया हो सकता है।
कार्टिलेज में ब्लड सप्लाई नहीं होती है। इसलिए इसकी स्वयं की मरम्मत करने की क्षमता सीमित होती है। उपास्थि पुनर्जनन, जॉइंट के आसपास की मांसपेशियों को मजबूत करने के साथ-साथ कार्टिलेज रिजनरेशन क्षतिग्रस्त जोड़ों की रिप्लेसमेंट सर्जरी में देरी करने में मदद कर सकता है।
कार्टिलेज ट्रीटमेंट के लिए ओएटीएस प्रक्रिया भी प्रयोग में लाई जाती है। इसे मोज़ेकप्लास्टी (mosaicplasty) भी कहा जाता है। इसमें जॉइंट के नॉन वेट वाले क्षेत्रों से स्वस्थ कार्टिलेज लेना और इसे क्षतिग्रस्त क्षेत्रों में प्रत्यारोपित करना शामिल है।
एक ही जोड़ के भीतर ट्रांसफ़र होता है। इसलिए यह प्रक्रिया क्षतिग्रस्त कार्टिलेज के छोटे क्षेत्रों के लिए सबसे अच्छा काम करती है।
कई भोजन कार्टिलेज रीबिल्ड करने में मदद करते हैं। हड्डियों की मजबूती के लिए इनफ्लेमेशन को खत्म करना महत्वपूर्ण है। कोलेजन की कमी से हड्डी और उपास्थि प्रभावित होते हैं। संतरे, अनार, ग्रीन टी, ब्राउन राइस, नट्स एंड सीड्स, ब्रूसेल स्प्राउट्स कार्टिलेज के री बिल्ड में मदद कर सकते हैं।
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