खाने के तरीके, पोर्शन साइज़, खान-पान के व्यवहार में बदलाव ईटिंग डिसॉर्डर कहलाता है। यह किसी भी व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। हाल के कुछ शोधों ने यह साबित हो चुका है कि ईटिंग डिसआर्डर का एक प्रमुख कारण सोशल मीडिया भी हो सकता है। इसके कारण न सिर्फ बच्चे और किशोर, बल्कि बड़े भी प्रभावित हो सकते (social media and eating disorders) हैं। इसे विकार को कुछ टिप्स की मदद से दूर भी किया जा सकता है।
पेडिएट्रिक चाइल्ड हेल्थ जर्नल में प्रकाशित शोध आलेख के अनुसार, खाने के व्यवहार या पैटर्न में यदि गंभीर गड़बड़ी आ जाती है, तो यह खाने का विकार यानी ईटिंग डिसॉर्डर कहलाता है। अधिकांश मामलों में मोटापा के कारण कम खाना और बहुत अधिक खाना खाने के विकार की वजह बन सकता है। खाने के व्यवहार में भारी बदलाव से अक्सर पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
इससे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम, कार्डियक सिस्टम, हड्डियों, दांतों और ओरल हेल्थ से जुड़ी समस्या हो सकती है। युवाओं और किशोरों में यह विशेष रूप से पाया जाता है। हालांकि यह किसी भी उम्र में विकसित हो सकता है। एनोरेक्सिया नर्वोसा (anorexia nervosa), बुलिमिया नर्वोसा (bulimia nervosa) और बिंग ईटिंग, ये सभी खाने के विकार (Eating Disorder) हैं।
वजन बढ़ने के डर से जब लोग कम खाने लगते हैं, तो एनोरेक्सिया नर्वोसा हो सकता है। वहीं जब लोग समय-समय पर बड़ी मात्रा में भोजन करते हैं और बाद में अस्वास्थ्यकर तरीके से अतिरिक्त कैलोरी को कम करने का प्रयास करते हैं, तो बुलिमिया नर्वोसा विकसित होता है। खाने के अपराधबोध की भावना के कारण बिंग ईटिंग विकसित होता है। इसके कारण लोग अक्सर उल्टी करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। अधिक खाने की भरपाई के लिए खाना बंद कर देते हैं या खाना शरीर से बाहर करने के लिए उल्टी का प्रयास करते हैं।
जर्नल ऑफ़ एकेडमी ऑफ़ न्यूट्रिशन एंड डाइट के अनुसार, ईटिंग डिसऑर्डर विशेष रूप से युवा लड़कियों में आम हैं। किशोरों और युवाओं को जब शरीर का वजन या आकार बढ़ा हुआ लगता है, तो वे परेशान हो जाते हैं। किशोर और युवा सोशल मीडिया पर अपनी फोटो पोस्ट करते हैं और किसी का शरीर को लेकर कमेंट आता है, तो यह उनके मन को प्रभावित कर देता है। साथ ही वे दूसरों की स्लिम फोटो देखकर अपनी तुलना उनसे करने लगते हैं। सोशल मीडिया पर अपनी फोटो पोस्ट करने से बचने लगना, अपनी फोटो को बहुत अधिक एडिट करना भी ईटिंग डिसआर्डर से जुड़ा मामला हो सकता है।
किशोर और युवा को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जो फोटो और वीडियो के माध्यम से संवाद करना विशेष रूप से पसंद है। ये इस बात पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं कि उन्हें ऑनलाइन कैसे माना जाता है। यह उन्हें शरीर के वजन, शरीर के आकार, कैलोरी सेवन और एक्सरसाइज के बारे में बहुत जागरूक बनाता है। साथ ही, गलत खानपान को भी बढ़ावा मिलने लगता है। सोशल मीडिया पर लगातार एक्टिव रहने के कारण ये लोग शरीर के वजन और आकार के बारे में अधिक सोचने लग जाते हैं, जो उन्हें खाने के प्रति बहुत अधिक संवेदनशीलता बना देता है। बाद में यह ईटिंग डिसऑर्डर का कारण बनता है।
साइबरसाइकोलॉजी जर्नल के अनुसार, यह जोखिम उन किशोरों और युवाओं के लिए अधिक हो सकता है, जो सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताते हैं। जो कई सोशल प्लेटफार्मों पर एक्टिव रहते हैं। ऐसी स्थिति में दोस्तों और परिवार का दायित्व बढ़ जाता है। वे उनकी सोशल मीडिया टाइमिंग को कम करने का प्रयास करें। घर पर बैलेंस और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन को अपनाने और डिसऑर्डर से पीड़ित सदस्य को भी अपनाने के लिए सकारात्मक तरीके से दवाब दें।
न्यूट्रीएंट जर्नल के अनुसार, खुद को अतिसंवेदनशील बनाने से बचाएं। अपने –आपको वैसा व्यक्ति नहीं बनने दें, जो सोशल मीडिया सामग्री से आसानी से प्रभावित हो जाते हैं। विशेष रूप से अत्यधिक प्रोसेस्ड फ़ूड के उपयोग को बढ़ावा देने और खाने-पीने के अव्यवहारिक तरीकों को बढ़ावा देने वाले पोस्ट को देखने से बचें।
जर्नल ऑफ़ एकेडमी ऑफ़ न्यूट्रिशन एंड डाइट के अनुसार, सोशल मीडिया अकाउंट रखने के लिए अनुशंसित न्यूनतम आयु 13 वर्ष है। यदि 13 वर्ष या उससे अधिक के टीनएज और युवाओं में जटिल स्थिति देखी जाती है, तो परिवार के सदस्यों को सोशल मीडिया के फायदे और नुकसान के बारे में शिक्षित करना होगा। इस बात के प्रमाण हैं कि सोशल मीडिया साक्षरता किशोरों में खाने के विकारों के जोखिम को कम करती है।
साइबरसाइकोलॉजी जर्नल के अनुसार, सोशल मीडिया संबंधी ऐसे नोटिफिकेशन को बंद करें, जो भोजन संबंधी गलत ज्ञान देते हों। किसी भी भोजन के बारे में बताने से पहले कैलोरी इंटेक और उसमें मौजूद पोषक तत्वों के बारे में जानकारी नहीं देते हों। जंक फ़ूड, प्रोसेस्ड फ़ूड की अधिकता वाली साइट को ब्लॉक करें।
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