Baby Blues : डिलीवरी के बाद से क्या आप भी बात-बात पर इमोशनल हो जाती हैं? तो जानिए इसका कारण और बचाव के उपाय

चिड़चिड़ापन, नींद की कमी, बात-बात पर रोना और चिंता में घिरा हुआ महसूस करना बेबी ब्लू समस्या के लक्षण हैं। जानते हैं क्या है पोस्टपार्टम डिप्रेशन और इससे बचने के उपाय भी।
Postpartum depression se kaise bahar aayein
पोस्टपार्टम डिप्रेशन से निपटने के लिए इन उपायों को अपनाएं। चित्र : अडोबी स्टॉक
ज्योति सोही Updated: 20 Oct 2023, 09:01 am IST
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अक्सर सुनने में आता है कि बच्चे के जन्म के बाद मां की पूरी जिंदगी बदल जाती है। ये कथन उस वक्त और भी सत्य होता हुआ नज़र आता है, जब न्यू मॉम्स खुद को तनावग्रस्त और अकेला महसूस करने लगती हैं। बच्चे के जन्म के वक्त महिलाएं कई प्रकार के इमोशंस को फेस करती हैं। नौ महीनों तक बच्चे का इंतज़ार करने के बाद डिलीवरी के दौरान महिलाओं को कई सिचुएशंस से होकर गुज़रना पड़ता है। इसके चलते उनमें मेंटल, इमोशनल और हार्मोंनल कई प्रकार के परिवर्तन आते हैं। चिड़चिड़ापन, नींद की कमी, बात-बात पर रोना और खुद का चिंता में घिरा हुआ महसूस करना इस समस्या के लक्षण हैं। इसे बेबी ब्लू (Baby Blue) या पोस्टपार्टम ब्लू (Postpartum Depression) भी कहा जाता है। जानते हैं क्या है पोस्टपार्टम डिप्रेशन और इससे बचने (How to deal with postpartum depression) के उपाय भी।

क्या हैं बेबी ब्लू या पोस्टपार्टम डिप्रेशन

बच्चे के जन्म के दौरान परिवार के सभी लोग बहुत एक्साइटिड होते हैं। कुछ देर बच्चे के साथ वक्त बिताने के बाद धीरे-धीरे पूरी जिम्मेदारी मां को सौंप दी जाती है। अचानक से बच्चे को संभालना न्यू मॉम के लिए एक टफ टास्क से कम नहीं हैं। बच्चे की परवरिश न केवल आपको थका देती है, बल्कि आपके अंदर चिंता और संदेह की भावनाओं को भी जन्म देने लगती है।

इसके चलते मूड स्विंग, अकेलापन, तनाव और बार बार रोने की समस्या से होकर गुज़रना पड़ता है। हांलाकि आसपास के लोग इस समस्या को समझ नहीं पाते हैं।

इस बारे में बातचीत करते हुए गंगा राम हास्पिटल, साइकॉलोजिस्ट, सीनियर कंसलटेंट, डॉ आरती आनंद का कहना है कि कि परिवार का पूरा साथ न मिल पाना और डिलीवरी के वक्त होने वाली कॉमप्लीकेशंस भी इस समस्या का कारण बन सकती हैं। इस समस्या से बाहर आने के लिए परिवार और लाइफ पार्टनर का साथ बेहद ज़रूरी है। इसके अलावा आपको खुद को समय देना चाहिए। समय से दवाई लें और अपनी डाइट का ख्याल रखना भी ज़रूरी है। लोगों से मेल जोल बढ़ाएं और वर्क फ्रॉर्म होम भी शुरू कर सकती है। इससे आपका मन डाइवर्ट होने लगता है।

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बच्चे की परवरिश न केवल आपको थका देती है, बल्कि आपके अंदर चिंता और संदेह की भावनाओं को भी जन्म देने लगती है। चित्र: अडोबी स्टॉक

ये हैं पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण

बार-बार मूड स्विंग्स का सामना करना
बेवजह लाइफ पार्टनर से मनमुटाव हो जाना
आत्म नियंत्रण की कमी महसूस होना
बच्चे के साथ मज़बूत बॉन्ड न बन पाना
नींद पूरी तरह से न आ पाना
अत्यधिक भूख और थकान का अनुभव करना
हर वक्त मायूसी और चिंता से घिरे रहना
परिवार के सदस्यों से सही बर्ताव न करना

पोस्टपार्टम डिप्रेशन से निपटने के लिए इन उपायों को अपनाएं

1 कुछ देर एक्सरसाइज़ ज़रूर करें

बायोसेंट्रल की एक रिसर्च के मुताबिक पीपीडी यानि पोस्टपार्टम डिप्रेशन से बचने के लिए एक्सरसाइज़ एक बेहतरीन विकल्प है। खुद को हेल्दी और चिंता मुक्त रखने के लिए कुछ वक्त खुली हवा में निकलें और हल्का फुल्का व्यायाम करें। को भी समय दें। जो आपकी मेंटल और फिज़ीकल हेल्थ दोनों के लिए ज़रूरी है। एक रिसर्च के मुताबिक दिनभर में 2 से 3 बार बिना एक्वीप्मेंटस के 10 मिनट के लिए सिंप्ल एक्सरसाइज़ करना आपको फायदा पहुंचा सकता है। इसके अलावा मेडिटेशन भी  को आसानी से बूस्ट कर सकती हैं।

2 हेल्दी इटिंग है ज़रूरी

अपने आहार में पोषण को सम्मिलित करें। इससे आप बेहतर ढ़ग से अपना ख्याल रख पाएंगी। शरीर को पोषण मिलनेसे आप डिप्रेशन की समस्या को भी दूर कर सकती है। इसके लिए वीकली प्लानर बनाएं और हेल्दी भोजन के अलावा पौष्टिक स्नैक्स भी बनाएं और दिनभर में उसका सेवन करें। साथ ही मौसमी फलों और सब्जियों का सेवन करें। शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी को न होने दें।

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माईंडफुल ईटिंग सेआप बेहतर ढ़ग से अपना ख्याल रख पाएंगी। चित्र: शटरस्टॉक

3 अपने लिए वक्त निकालें

भावनात्मक चुनौतियों का सामना करने के लिए मन को मज़बूत बनाना ज़रूरी है। इसके लिए कुछ वक्त अपने साथ गुज़ारें। दिन की शुरूआत मेडिटेशन से करें। नींद पूरी करना भी ज़रूरी है। इससे आपका माइंड रिलैक्स रहता है। छोटा बच्चा कुछ देर के लिए ही सोता है। ऐसे में जब भी बच्चा सोए, तो उस वक्त बाकी बचे कामों को करने की बजाय खुद भी कुछ देर आराम करे। दिनभर में से कुछ वक्त अपनी मनपंसद एक्टीविटीज़ को करने में भी गुज़ारें। इससे मन को मज़बूती मिलने लगती हैं और तनाव कम होने लगता है।

4 सोशलाइजेशन है ज़रूरी

लोगों से मिले जुलें और बाहर निकलें। लोगों से मेल जोल बढ़ाने से आपका मानसिक संतुलन बेहतर बनने लगता है। अगर आप अपना ख्याल रखेंगे, तो उसका प्रभाव आपके बच्चे की परवरिश पर दिखने लगता है। किटी पार्टीज़ ज्वाइन करें या गेट टुगेदर में हिस्सा लें। इससे आत्म विश्वास में वृद्धि होती है।

5 ब्रेस्ट फीडिंग का रखें ख्याल

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक अगर न्यू मॉम खुश रहती हैं, तो इसका प्रभाव मिल्क प्रेडक्शन पर भी दिखता है। बहुत सी महिलाएं ब्रेस्ट फीडिंग के दौरान तनाव महसूस करने लगती हैं। अगर आप स्ट्रेस में रहती हैं, तो दूध कम आता है। इस स्थिति को डिस्मॉर्फिक मिल्क इजेक्शन रिफ्लेक्स या डी.एमईआर कहा जाता है। इस कंडीशन में महिला उदासी, गुस्सा और मूड स्विंग का अनुभव करते हैं।

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लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं। ...और पढ़ें

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