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हर आंसू एक सा नहीं होता, जानिए कब और कितना रोना है आपके लिए फायदेमंद 

कुछ देर रोना आपका मन हल्का कर सकता है। ये उन भावानाओं से निपटने में आपकी मदद कर सकता है, जिसे आप अभी तक दबा रहीं थी। पर कितनी देर रोना है ठीक? 
Jaanein baar baar rona kyu aata hai
रोने से मसल्स स्ट्रेन रिलैक्स हो जाता है। यह एक ऑटोमेटिक प्रक्रिया है। चित्र:शटरस्टॉक
Updated On: 20 Oct 2023, 09:17 am IST

दुख प्रकट करने के लिए हम रोते हैं। जब हमें किसी की बात बुरी लगती है या व्यवहार बुरा लगता है, तो हम रोने लगते हैं। भारतीय परिवेश में माना जाता है कि पुरुषों को रोना नहीं चाहिए। यह उनकी कमजोरी की निशानी हो सकती है। लेकिन शोधकर्ता मानते हैं कि स्त्री हो या पुरुष स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से दोनों को रोना चाहिए। रोने के बाद हम अकसर कहते हैं कि मन हल्का हो गया। वास्तव में रोना मेंटल हेल्थ और शारीरिक स्वास्थ्य (Crying effect on health) दोनों के लिए फायदेमंद है।

क्या कहती है रिसर्च

वर्ष 2021 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा अमेरिकी लोगों पर की गई रिसर्च में सामने आया कि औसतन अमेरिकी महिलाएं हर महीने 3.5 बार रोती हैं। जबकि अमेरिकी पुरुष हर महीने लगभग 1.9 बार रोते हैं। शोधकर्ताओं ने माना कि लोगों ने न सिर्फ गहरी उदासी और दुख में, बल्कि अत्यधिक खुश होने पर भी अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए आंसू बहाए। ये रिसर्च बताती हैं कि रोना सेहत के लिए अच्छा है। प्राचीन यूनान और रोम के विचारकों और चिकित्सकों का मानना ​​था कि आंसू एक रेचक की तरह काम करते हैं, जो हमें इनर लेवल पर शुद्ध करते हैं। 

आज का मनोविज्ञान भी इसे मानता है। रोने के फायदों के बारे में जानने के लिए हमने सर गंगाराम हॉस्पिटल में कंसल्टेंट सीनियर क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. आरती आनंद से बात की।

सभी आंसू समान नहीं होते हैं

वैज्ञानिक रोने के लिक्विड प्रोडक्ट को तीन अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित करते हैं: रिफ्लैक्स टीयर्स, कंटीन्यूअस टीयर्स और इमोशनल टीयर्स। 

रिफ्लैक्स टीयर्स और कंटीन्यूअस टीयर्स हमारी आंखों से धुएं और धूल जैसे मलबे को हटाने और संक्रमण से बचाने में मदद करने के लिए हमारी आंखों को चिकनाई प्रदान करते हैं। आंसू में लगभग 98% पानी होता है।

यहां हैं आंसू आने के फायदे 

1 आंसू समस्याओं पर सोचने और समाधान ढूंढने में मदद करते हैं 

डॉ. आरती आनंद कहती हैं, ‘रोना अपने पेन और स्ट्रेस को रिलीज करने का एक नेचुरल तरीका है। रोने से मन हल्का हो जाता है और मूड अच्छा। रोने के बाद आप अपने आपको अच्छी तरह एक्सप्रेस कर पाती हैं। क्योंकि इस प्रक्रिया के बाद आपके थॉट क्लियर हो जाते हैं। आप अपनी समस्या पर अच्छी तरह सोच-विचार करने और उसके समाधान ढूंढने में सक्षम हो जाती हैं।’

2 दबी भावनाएं आती हैं बाहर

डॉ. आरती जोर देकर कहती हैं, रोने से गुड फील हार्मोन एंडोर्फिन रिलीज होते हैं। फीलगुड हार्मोन पॉजिटिव थिंकिंग को बढ़ावा देते हैं। अक्सर जब आप कोई मूवी देखती हैं, तो इमोशनल सीन आने पर आपकी आंखों से आंसू निकलने लगते हैं। 

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स्ट्रेस से उबरने का आपका अपना क्विक फॉर्मूला क्या है?

दरअसल, इसके माध्यम से आप अपनी भावनाओं को आंसू के जरिये बाहर निकालती हैं, जिन्हें आपने किसी कारणवश सप्रेस कर दिया था। यह आपको असीम शांति का एहसास कराता है।

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रोना अपनी भावनाओं को व्यक्त करना है। चित्र: शटरस्‍टॉक

3 मसल्स होते हैं रिलैक्स

कई बार बॉडी में स्ट्रेस इतना अधिक होता है और आपको पता ही नहीं चलता है। स्ट्रेस से कई शारीरिक समस्याएं जुड़ी होती हैं। रोने से मसल्स स्ट्रेन रिलैक्स हो जाता है। यह एक ऑटोमेटिक प्रक्रिया है। 

मूवी देखते समय यदि आप रोती हैं, तो आप जानती हैं कि उस समय कोई आपको देख नहीं रहा है। कोई जज नहीं कर रहा है। इसलिए आप तनाव मुक्त महसूस करती हैं और सिर्फ अपने ऊपर ध्यान दे पाती हैं।

पर ज्यादा रोना भी है स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह 

रोने के बाद अच्छी नींद आती है। हमें सावधान रहना चाहिए कि हम ज्यादा रोते हैं या घंटों रोते रहते हैं, तो यह मेंटल डिसऑर्डर, एंग्जायटी, डिप्रेशन की निशानी हो सकती है। यह मानसिक रूप से बीमार होने का भी संकेत दे सकती है।

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ज्यादा रोना नुकसानदेह है। चित्र: शटरस्‍टॉक

इसलिए लंबे समय तक नहीं रोना चाहिए। रोने के बाद हमारी ब्रीदिंग और हार्ट रेट डिक्रीज हो जाती है।

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डिस्क्लेमर: हेल्थ शॉट्स पर, हम आपके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सटीक, भरोसेमंद और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके बावजूद, वेबसाइट पर प्रस्तुत सामग्री केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है। इसे विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए। अपनी विशेष स्वास्थ्य स्थिति और चिंताओं के लिए हमेशा एक योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से व्यक्तिगत सलाह लें।

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लेखक के बारे में
स्मिता सिंह
स्मिता सिंह

स्वास्थ्य, सौंदर्य, रिलेशनशिप, साहित्य और अध्यात्म संबंधी मुद्दों पर शोध परक पत्रकारिता का अनुभव। महिलाओं और बच्चों से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करना और नए नजरिए से उन पर काम करना, यही लक्ष्य है।

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