आमतौर पर माना जाता है कि लोगों को सर्दी के मौसम में यूरिन लीकेज की समस्या का सामना करना पड़ता है। मगर वहीं अगर हंसते, खेलते, चलते और खांसते वक्त भी यूरिन लीकेज की समस्या को झेल रहे हैं, जो उसे यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस कहा जाता है। महिलाएं हो या पुरूष हर व्यक्ति कई कारणों के चलते इस समस्या से दो चार होने लगता है। खासतौर से महिलाओं को गर्भावस्था में भी यूरिन लीकेज की समस्या का सामना करना पड़ता है। ब्लैडर पर बढ़ने वाला प्रैशर इस समस्या को बढ़ा देता है। बहुत से लोग हिचकिचाहट के कारण इस समस्या को अवॉइड करने लगते हैं। जानते हैं क्यों बढ़ने लगती है यूरिन लीकेज की समस्या और इससे कैसे डील करें (Urine leakage in pregnancy)।
देर तक यूरिन को होल्ड न कर पाने से लीकेज की समस्या का सामना करना पड़ता है, जिसे ब्लैडर लीकेज कहा जाता है। इस बारे में बातचीत करते हुए स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ नीरज शर्मा का कहना है कि ब्लैडर की मदद से यूरिन आगे बढ़ता है और यूरेथ्रा यूरिन को नियंत्रित करने में मदद करता है। जब युरेथ्रा की मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं, तो ऐसे में ब्लैडर लीकेज की समस्या से जूझना पड़ता है। इसमें व्यक्ति खांसते, छींकते और हंसते समय यूरिन लीकेज की समस्या का सामना करता है।
यूरोलॉजी केयर फाउंडेशन के अनुसार पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं को यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस का सामना करना पड़ता है। ब्लैडर की मांसपेशियों में कमज़ोरी, पैल्विक फ्लोर मसल्स का डैमेज होना, प्रोस्टेट बढ़ना, मेनोपॉज और ब्लैडर कैंसर यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस की समस्या का बढ़ा देता है। उसके अलावा कुछ दवाएं या न्यूरोलॉजिकल कंडीशन भी यूरिन लीकेज का कारण बनने लगती हैं।
वे महिलाएं, जो गर्भवती होती है। उन्हें भी यूरिन लीकेज की समस्या का सामना करना पड़ता है। दरअसल, ब्लैडर पर प्रैशर बढ़ने से लीकेज की समस्या का सामना करना पड़ता है। वहीं डिलीवरी के बाद मसल्स में बढ़ने वरले खिंचाव के चलते भी महिलाओं को इस समस्या का सामना करना पड़ता है।
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ रितु सेठी बताती हैं कि प्रेगनेंसी के दौरान यूरिन इंफेक्शन के कारण लीकेज की समस्या बढ़ने लगती है। इसके अलावा बार बार खांसी आना और कई दिनों तक कब्ज रहने से ये समस्या बढ़ सकती है। इससे राहत पाने के लिए नियमित तौर पर कीगल एक्सरसाइज करें और गायनेकोलॉजिस्ट से तुरंत जांच करवाएं। पोस्ट डिलीवरी भी ब्लैडर लीकेज की समस्या बनी रहती है। दरअसल पैल्कि मसल्स में कमज़ोरी बढ़ने से इस समस्या से दो चार होना पड़ता है। खासतौर नॉर्मन डिलीवरी से गुज़र चुकी महिलाएं इस समस्या का शिकार होती हैं।
यूरिन इन्फेक्शन यानि यूटीआई के चलते भी बार बार यूरिन पास करने की समस्या का सामना करना पड़ता है। अंडरगारमेंटस गीले होने की परेशानी बढ़ने लगती है और संक्रमण पनपने लगता है। इससे इचिंग, दुगंध और पेन की समस्या बढ़ जाती है।
पेल्विक मसल्स ब्लैडर को सपोर्ट करने में मददगार साबित होती हैं। मगर जब मसल्स वीक या डैमेज होने लगती है, तो उस वक्त यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस की समस्या बढ़ जाती है। इसके चलते सर्जरी या फिर वर्कआउट की कमी इस समस्या को बढ़ा देती है और यूरिन लीक होने लगता है।
उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं को अन्य समस्याओं के साथ साथ ब्लैडर लीकेज से भी दो चार होना पड़ता है। जैसे जैसे उम्र बढ़ने लगती ब्लैडर वीक होने लगता है। इससे यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस की समस्या बढ़ने लगती है। ब्लैडर को हेल्दी बनाए रखने के लिए स्वस्थ आहार के साथ साथ व्यायाम को भी रूटीन का हिस्सा बनाएं।
डॉक्टर के परामर्श के बाद पेल्विक एक्सरसाइज़ यानि कीगल एक्सरसाइज़ करें। इससे योनि के मसल्स को मज़बूती मिलती है और मसल्स हेल्दी बनने लगते हैं। शरीर के स्टेमिना के अनुसार ही एक्सरसाइज़ को करें। इससे यूरिन लीकेज से बचा जा सकता है।
प्रेगनेंसी के दौरान शरीर का वज़न बढ़ने लगता है। ज्यादा वज़न के कारण ब्लैडर पर प्रैशर बढ़ने लगता है। ऐसे में हर तिमाहि के अनुसार डॉक्टर के सुझाव के बाद हेल्दी वेट मेंटेन करना ज़रूरी है। इसके लिए डाइट को बैलेंस रखें। लिक्विड और सॉलिड डाइट का संतुलन बनाकर चलें।
एनआईएच के रिसर्च के अनुसार गर्भावस्था के दौरान देर तक खड़े रहने से पैरों में सूजन बढ़ने लगती है। साथ ही कमर दर्द की समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा शरीर में रक्त का प्रवाह प्रभावित होने लगता है। वहीं लंबे वक्त तक बैठने से भी मसल्स में स्टिफनेस बढ़ने लगती है। लंबे वक्त तक बैठने और खड़े होने से परहेज करें।
सर्दी के मौसम में संतरा, किन्नू, नींबू और आंवले का सेवन करने से बार बार यूरिन पास करने की समस्या से जूझना पड़ता है। ऐसे में फ्रीक्वेंटली विटामिन सी से भरपूर इन फ्रूटस का सेवन करने से यूरिन की समस्या बढ़ने लगती है।
दिनभर में बार बार लिक्विड मील लेने से ब्लैडर पर यूरिन पास करने के लिए प्रैशर बढ़ने लगता है। खासतौर से रात के वक्त तरल पदार्थों के सेवन से यूरिनेशन बढ़ने लगता है। इससे नींद की गुणवत्ता भी प्रभावित होने लगती है।
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