सीमाएं हमारे समय को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने, हमारे रिश्तों में सुरक्षित महसूस करने, हमारी ऊर्जा को संरक्षित करने और हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वयं और दूसरों के साथ बाउंडरी निर्धारित करना होता है। अगर हम सीमाएं तय नहीं करते है तो इसके कारण तनाव, एंग्जाइटी, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और ख़राब रिश्ते जैसी चीजें हो सकती है। सीमाएं निर्धारित करना आपके सेल्फ केयर के लिए भी बहुत जरूरी है।
सीमाएं निर्धारित करने का अर्थ स्वयं को और दूसरों को यह बताना है कि आपको क्या पसंद है और क्या पसंद नहीं है। हम अपने लिए सीमाएं तय करते हैं, उदाहरण के लिए सप्ताह में कितने घंटे नेटफ्लिक्स देखना ठीक है, कितना जंक फूड खाना है, सोशल मीडिया पर हमें क्या देखना है, हमारी सेल्फ टॉक कैसी होती है।
दूसरे के लिए हम जो बाउंड्री बनाते हैं उसमें कई तरह की चीजें शामिल हो सकती हैं। जैसे फिजिकल बाउंड्री, भावनात्मक सीमाएं, टाइम बाउंड्री, सैक्सुअल बाउंड्री, मैटीरियल बाउंड्री।
सीनियर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव बताते है कि कॉगनिटिव बिहेवियर थेरेपी के एबीसी मॉडल से हम इसे समझ सकते हैं। एक ऐसी पद्धति जिसका उपयोग लोगों को उनके विचारों और भावनाओं के बीच संबंधों को समझने में मदद करने के लिए किया जाता है।
यह व्यवहार को कैसे प्रभावित करता है, यह जानने के लिए आप अपने ट्रिगर्स और प्रतिक्रियाओं काे समझ सकते हैं। ताकि आप अधिक चीजों के बारे में जान सकें। एक सीमा तय करने की जरूरत अपने और दूसरों के लिए भी होती है।
कई बार कुछ लोगों का व्यवहार हमे पसंद नहीं होता। जिससे हम भावनात्मक रूप से पेरशान हो जाते हैं। लेकिन हम केवल इसलिए उन्हें मना नहीं करते कि उनकी भावना को कोई ठेस न पहुंचे।
खुद को भावनात्मक रूप से थकाने की बजाय आपको उनके इस व्यवहार को समझना और उन्हें रोकना जरूरी है। किसी के लिए बाउंड्री बनाने से पहले आप एबीसी मॉडल को अपना कर देख सकती हैं। चलिए जानते हैं वो तीन चरण जो आपको किसी से सीमा निर्धारित करने की संकेत देता है।
यदि आपके किसी को मित्र को बहुत सारी मदद मांगने की आदत हो, लेकिन आपको उसके मदद मांगने से कोई परेशानी न हो। यहां तक ठीक है, लेकिन अगर वो आपके सामने कभी आए ही न और आपके लिए कभी खड़ा ही न हो, तो ये असंतुलन रिश्ते को एकतरफा बना देता है। रिश्तों में देने और लेने का संतुलन होना चाहिए। यह असंतुलन आपको क्रोधित कर सकता है और इसे राेकना जरूरी है।
आप अच्छा बनना चाहते हैं। आप जितना कर सकते हैं उतना करने की सोचते हैं। आप चाहते हैं कि लोग आपसे खुश हों। साथ ही मदद करना आपको दयालु बनाता है। आपको लगता है कि इससे लोग आपकी कद्र करेंगे और आपकी वैल्यू बढ़ेगी। क्योंकि लोगों का वैलिडेशन आपके लिए मायने रखता है।
दूसरों का वैलिडेशन लेते लेते आप कब अपनी वैल्यू करना भूल जाएंगे, शायद आपको पता भी नहीं चलेगा। जिससे आप केवल अपने आप को थका हुआ पाएंगे।
लगातार देने के परिणामस्वरूप क्योंकि आप “अच्छा” दिखना चाहते थे, आप हमेशा थका हुआ, परेशान, और खाली महसूस करेंगे। सब आपके न नहीं बोलने के कारण आप पर और अधिक बैगेज डालते जाएंगे। जिससे एक तरह का नकारात्मक माहौल आपके आसपास बन जाएगा।
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कस्टमाइज़ करेंभले ही आपको ऐसा लगता हो कि दोस्त को बेहतर पता होना चाहिए था। फिर भी यह आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप बोलकर उन्हें बताएं कि आप उनके व्यवहार के बारे में कैसा महसूस करते हैं। इससे आपको एहसास होता कि अब अपनी सीमाओं को विकसित करने और बताने का समय आ गया है।
आपको ये समझने की जरूरत है कि आपके लिए वास्त में कौन जरूरी है और कहां आपको बाउंडरी बनाने की जरूरत है। क्योंकि ये सच है कि आप सबकी मदद नहीं कर सकते है आपको कहीं न कहीं मन जरूर करना पड़ेगा।
कई लोग आपना काम भी दूसरों से करवाने के बारे में सोचते है। ये उनकी आदात होती है कि वे आपना काम खुद न करें और दूसरों से ही अपना काम करवाएं। लेकिन किसी को सच में मदद की जरूरत होती है तो आपको इन दोनें चीजों में अंतर समझना होगा। अगर आप ये नहीं समझेंगे तो लोग आपका फायदा उठा सकते है।
आपको इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आप सामने वाले की जितन मदद या केयर कर रहें है क्या सामने वाला उतना दे रहा है या नहीं। अगर वो केव आपसे ले रहा है और गीवर नहीं बन रहा है तो यहां भी आपको सामी तय करने की जरूरत हो सकती है।
यदि आपको कोई आपकी लिमिट से ज्यादा काम करने बोलता है तो आपको वहां न कहना सीखना चाहिए। क्योंकि आप अकेले सारा काम और सबका काम नहीं कर सकते है।
कई बार आपको अपने सामने वाले इंसान का बरताव परेशान करता है लेकिन आप केवल इसके लिए कुछ नहीं बोलते कि सामने वाल को बुरा न लग जाए और परेशान होते रहते है। लेकिन आपको सबसे पहले अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना है और सीमा तय करना है।
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