बच्चों में आमतौर पर टाइप 1 डायबिटीज पाई जाती है। इसे लेकर अक्सर माता पिता के मन में कई प्रकार के सवाल, संदेह और डर पनपने लगते है। इस क्रानिक कंडीशन में पेनक्रियाज बेहद कम या न के बराबर इंसुलिन रिलीज करती हैं। ये समस्या बच्चों में किसी भी उम्र में हो सकती है। वहीं किशोरावस्था में ये समस्या देखने को मिलती है। बच्चों में नज़र आने वाले कई लक्षण इस समस्या की ओर इशारा करते हैं। मगर माता पिता को इस समस्या से निपटने के लिए घबराकर नहीं बल्कि इस समस्या के बारे में जानकारी एकत्रित करके रोग को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। जानते हैं बच्चों में बढ़ने वाली टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण और इससे राहत पाने के उपाय भी।
इस बारे में सीनियर कंसल्टेंट डॉ लवलीना के अनुसार डायबिटीज का ये टाइप एडॉलेसेंट्स में देखने को मिलता है। अगर शरीर में 80 फीसदी बीटा सेल्स सुचारू रूप से कार्य नहीं करते है, तो उस स्थिति को टाइप 1 डायबिटीज कहा जाता है। इस कंडीशन में शरीर में इंसुलिन रिलीज़ नहीं होती है।
ऐसे बच्चों में ओसोमेटिक लक्षण पाए जाते हैं, जैसे अत्यधिक प्यास का लगना, अत्यधिक भूख लगना और बार बार यूरिन पास करना इस समस्या को दर्शाता है। इसके अलावा इन बच्चों को बहुत अधिक पसीना आना और वेटलॉस का भी सामना करना पड़ता है।
ऐसे में डॉक्टर से अवश्य संपर्क करें और जांच करवाएं। एक्सपर्ट के अनुसार टाइप 1 डायबिटीज के लिए टैबलेट के स्थान पर इंसुलिन का प्रयोग किया जाता है। इंसुलिन इंजेक्शन पेन के रूप में उपलब्ध होता है। इसकी रेशो आवश्यकतानुसार सेट की जाती है।
बल्ड शुगर लेवल को लेकर माता पिता को सतर्क रहने की आवश्यकता है। इसे बढ़ने से रोकने के लिए बच्चे के आहार का ध्यान रखना बेहद आवश्यक है। ऐसे बच्चों के आहार में लो कार्ब्स और लीन प्रोटीन डाइट को शामिल करना चाहिए। इससे ब्लड शुगर लेवल को बढ़ने से रोका जा सकता है। साथ ही बच्चों के आहार में साबुत अनाज और हेल्दी फैट्स को भी सम्मिलित करें।
समय पर भोजन करने से शुगर स्पाइक का जोखिम कम हो जाता है। इससे शरीर एक्टिव बना रहता है। अनियमित लाइफस्टाइल इस समस्या के खतरे को बढ़ा सकता है।
एक्सरसाइज़ भी शुगर को नियंत्रित करने का आसान और कारगर उपाय है। माता पिता को बच्चों को कुछ देर व्यायाम करवाना चाहिए। दरअसल, शरीर में ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने के लिए व्यायाम आवश्यक है। प्रति दिन 30 मिनट के लिए शारीरिक गतिविधि करना शुगर के स्तर को नियंत्रित कर देता है। निमोर्स चिल्डर्न हेल्थ के अनुसार एक्सरसाइज़ की मदद से ब्लड शुगर को रेगुलेट करने में मदद मिलती है। इसके अलावा ये इंसुलिन बनाने में भी मदद करता है।
बच्चों की कैलोरी इनटेक पर पेरेंटस को नज़र रखनी चाहिए। आहार में कैलोरी का ध्यान रखने के साथ खाद्य पदार्थों के ग्लाइसेमिक इंडैक्स का लो होना भी ज़रूरी है। तरबूज़ समेत ऐसे फलों के सेवन से बचना चाहिए, जिनका ग्लाइसेमिक इंडैक्स ज्यादा होता है अन्यथा शुगर लेवल बढ़ने का खतरा बना रहता है। वे बच्चे जो टाइप 1 शुगर से ग्रस्त हैं, उनके आहार में लो ग्लाइसेमिक इंडैक्स वाले फूड को शामिल करें।
ध्यान रखें की बच्चे को जंक फूड से दूर रखें। जंक फूड को हेल्दी फूड से रिप्लेस करें। बच्चे को ब्रेड की जगह पर सूजी, बेसन और ओट्स से रेसिपीज़ बनाकर टिफिन में सर्व करें। इसके अलावा मिठाई को फ्रूट्स से रिप्लेस कर सकते हैं। दअरसल, प्रोसेस्ड फूड शरीर में शुगर और फैट्स की मात्रा को बढ़ा देता है, जिससे ग्लूकोज़ का लेवल स्पाइक होता है।
इससे बचने के लिए माताओं को बच्चों के आहार में साबुत अनाज, फल और सब्जियां शामिल करनी चाहिए। इससे शरीर को फाइबर, विटामिन और अन्य पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है। शरीर में फाइबर की उचित मात्रा चीनी के डाइजेशन और एब्जॉर्बशन को धीमा कर देता है।
खाद्य पदार्थों की खरीददारी के वक्त बच्चे की सेहत के अनुसार ही चीजें खरीदें। डायबिटिक बच्चे को हेल्दी रखने के लिए कोलेस्ट्रॉल, सेचुरेटिड फैट्स और ट्रांस फैट्स से रहित फूड दें। बाहर का प्रोसेस्ड और अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड ऐसे बच्चों की तबियत खराब कर सकता है। उन्हें पिज्जा, बर्गर, फ्राइस, मोमोज जैसे फूड्स से दूर रखें।
इसके अलावा हाई शुगर वाले ड्रिंक्स, डिब्बाबंद जूस, फ्लेवर्ड मिल्क, फ्लेवर्ड दही, कैंडी, चॉकलेट और ज्यादा नमक वाली चिप्स आदि से दूर रखें। यह याद रखें कि आप अपने बच्चे के रोल मॉडल हैं। जब तक आप इन चीजों को नहीं छोड़ेंगी, या उसके सिबलिंग्स इन चीजों का आनंद लेंगे, तब तक उसके लिए इन्हें छोड़ पाना मुश्किल होगा। घर के बनाए भोजन में भी डीप फ्राइड फूड, ज्यादा मीठे और ज्यादा नमक का परहेज करें।
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