धीरे-धीरे सीखा टाइप 1 डायबिटीज से लड़ना, ये है बचपन से डायबिटीज की शिकार शौर्या की कहानी

मिलिए शौर्या त्रिपाठी से, जिन्होंने बचपन से ही टाइप 1 डायबिटीज के साथ जीना सीखते हुए खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से फिट रखा। जानिए उनकी कहानी।
शौर्या त्रिपाठी

मेरा नाम है शौर्या त्रिपाठी, मैं 21 वर्ष की हूं और मैं इंजीनियरिंग कर रही हूं। लेकिन मेरा जीवन किसी भी आम 21 वर्षीय लड़की जैसा नहीं है। इसका कारण है मेरी डायबिटीज। टाइप 1 डायबिटीज के साथ जीना आसान नहीं है, लेकिन समय, धैर्य और मेरी मां के सपोर्ट से मैं इस बीमारी को मैनेज करना सीख चुकी हूं।

बचपन में ही डायग्नोस हुई टाइप 1 डायबिटीज

मेरे पिता की मेरे बचपन में ही मृत्यु हो गयी थी। मेरी मां और मेरी बड़ी बहन ही मेरा परिवार थे। बचपन से ही मैं बहुत लाड़ प्यार से पाली गई। मीठा किस बच्चे को पसंद नहीं होता, मैं भी कोई अलग नहीं थी।

शौर्या त्रिपाठी

मम्मी मुझे अधिकतर चॉकलेट इत्यादि खाने नहीं देती थी, लेकिन जब घर पर कोई मेहमान आता तो मेरे लिए कुछ न कुछ जरूर लाता था। बचपन में मैं थोड़ी गोल मटोल जरूर थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था जो सामान्य से अलग हो।

जब मैं करीब 8 साल की थी, मेरे अंदर डायबिटीज के लक्षण नजर आने लगे। मुझे हर वक्त प्यास लगती थी, लेकिन पानी पीने की बिल्कुल इच्छा नहीं होती थी। पता नहीं क्यों, मुझे पानी पीने से उलझन होने लगी। इस पर मम्मी मुझे नींबू पानी और ग्लूकोज देने लगीं। मुझे डायबिटीज हो सकती है, इसका किसी को कोई अंदाजा नहीं था।

एक गलती और मैं कोमा में चली गई

एक दिन मैं बेहोश हो गयी। मुझे तुरन्त ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया। मैं होश में ही नहीं आ रही थी, और डॉक्टर कारण भी नहीं समझ पा रहे थे क्योंकि इतने छोटे बच्चे में डायबिटीज का शक किसी को नहीं हुआ। कमजोरी के कारण बेहोशी मानकर मेरे ग्लूकोज चढ़ा दिया गया। इसके कारण मैं कोमा में चली गयी।

ब्लड रिपोर्ट आने के बाद डॉक्टर को पता चला कि मेरा ब्लड शुगर बहुत बढ़ा हुआ है और तब मेरे इंसुलिन चढ़ाई गयी। 24 घण्टे कोमा में रहने के बाद मुझे होश आया। मैं तकरीबन एक महीने अस्पताल में ही एडमिट रही।

टाइप 1 डायबिटीज ने मेरा जीवन पूरी तरह बदल दिया

मुझे टाइप 1 डायबिटीज थी, यानी मेरा शरीर बिल्कुल भी इंसुलिन नहीं बनाता था। डायबिटीज डायग्नोस होने के बाद इंसुलिन का इंजेक्शन मेरा नया साथी बन गया था। मुझे हर मील से पहले इंसुलिन का इंजेक्शन लेना होता था। इंजेक्शन को हमेशा ठंडा रखना होता था, जिसके कारण मुझे स्कूल में इंसुलिन के साथ आइस पैक लेकर जाना होता था।

कभी भी शुगर अचानक से लो हो जाती थी, इसलिए मुझे हर वक्त खाने के लिए कुछ साथ रखना होता था। हालांकि अब मैं इस जीवनशैली में एडजस्ट कर चुकी हूं, लेकिन शुरुआत में मेरे लिए दिन में चार बार इंजेक्शन लेना बहुत भयानक होता था। यही नहीं, मैं कुछ भी मीठा नहीं खा सकती थी। मैं सामान्य बच्चों की तरह नहीं जी सकती थी।

शौर्या त्रिपाठी

खानपान ही नहीं, मैं आम बच्चों की तरह खेल-कूद भी नहीं सकती थी क्योंकि किसी भी तरह की एक्सरसाइज करने से मेरा ब्लड शुगर लेवल कम हो जाता था। मैं डांस की बहुत शौकीन थी, लेकिन डायबिटीज के कारण मुझे डांस भी छोड़ना पड़ा।

डॉक्टर मुझे थोड़े बहुत व्यायाम की सलाह देते थे, डायबिटीज में एक्टिव होना बहुत जरूरी भी है, लेकिन मैं इतनी छोटी थी कि कितनी एक्सरसाइज करना मेरे लिए सुरक्षित है यह समझ ही नहीं पाती थी।

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टीनेज में सीखा डायबिटीज को मैनेज करना

शुरुआत में तो मेरे लिए डायबिटीज के साथ जीना बहुत मुश्किल होता था। मेरा अक्सर मेंटल ब्रेक डाउन होने लगा। शुगर लो होने पर मेरा शरीर कांपने लगता था और हाई होने पर चक्कर आते थे। इसके साथ ही हमारे परिवार में भी तनाव आ रहा था, जिसके कारण मेरे स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ रहा था। धीरे- धीरे मैंने अपने लक्षणों को समझ कर अपनी डाइट पर नियंत्रण किया। इससे पहले मम्मी ही मेरे खानपान का पूरा ख्याल रखती थीं।

14 साल की उम्र में मैंने तय किया मेरी वजह से मम्मी को कोई चिंता नहीं होने दूंगी। मैने खुद ही इंजेक्शन लेना सीखा, शुगर लेवल चेक करना सीखा और समझा कि कितनी फिजिकल एक्टिविटी मैं कर सकती हूं।

योग अपनाने से शुरू हुआ जीवन का नया अध्याय

अपनी डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए मैंने योग क्लास जाना शुरू किया। शुरुआत में मेरे लिए यह समझना थोड़ा मुश्किल था कि मैं कितने आसन आराम से, बिना शुगर लो हुए, कर पाउंगी। लेकिन अपने योग इंस्ट्रक्टर की मदद से मैंने अपनी क्षमता को समझा।

मैंने हर दिन आधे घण्टे प्राणायाम शुरू किया। इससे मुझे बहुत फायदा नजर आया। मेरे चेहरे पर पिम्पल कम होने लगे, मुझे ज्यादा एक्टिव और खुश महसूस होने लगा और मेरा शुगर लेवल भी नियंत्रित रहने लगा। मैंने अपनी डायबिटीज नियंत्रित करने का रास्ता ढूंढ लिया था।

शौर्या त्रिपाठी

अब मेरी डायबिटीज मुझे प्रभावित नहीं करती

मैं घर से दूर होस्टल में रह रही हूं जहां मेरे इंजीनियरिंग का आखिरी साल है। अब नियमित योग तो नहीं कर पाती हूं, लेकिन कोशिश करती हूं हफ्ते में तीन बार आधे घंटे के लिए प्राणायाम जरूर करूं।
अब मैं डांस भी करती हूं और कॉलेज की डांस और नुक्कड़ नाटक टीम का हिस्सा भी हूं।
मेरे पास एक पेट कुत्ता है, जिसके होने से मेरा दिन एक्टिव ही रहता है। उसे टहलाने के बहाने मैं भी टहल लेती हूं।

अब मैं अपने शुगर इंटेक को मैनेज करना सीख चुकी हूं। कभी-कभी चीट कर के मीठा भी खा लेती हूं। अगर दो पीस डार्क चॉकलेट खाती हूं, तो खाने से एक रोटी कम कर लेती हूं। अगर किसी दिन बहुत इच्छा होती है तो लंच में पैनकेक खा लेती हूं। फिर एक घण्टे वॉक कर लेती हूं। इस तरह मैंने अपनी डायबिटीज के साथ जीना सीख लिया है।
हां, इंसुलिन अभी भी लेती हूं, जो हमेशा ही लेती रहूंगी। लेकिन अब मेरा इंसुलिन का इंजेक्शन मेरा दोस्त बन चुका है।

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ये बेमिसाल और प्रेरक कहानियां हमारी रीडर्स की हैं, जिन्‍हें वे स्‍वयं अपने जैसी अन्‍य रीडर्स के साथ शेयर कर रहीं हैं। अपनी हिम्‍मत के साथ यूं  ही आगे बढ़तीं रहें  और दूसरों के लिए मिसाल बनें। शुभकामनाएं! ...और पढ़ें

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