पीरियड साइकल के दौरान अधिकतर महिलाओं को ऐंठन, थकान, मूड स्विंग और ब्लोटिंग की समस्या से दो चार होना पड़ता है। मगर मासिक धर्म खत्म होने के बाद भी अगर आप इन लक्षणों को महसूस कर रही हैं, तो शायद आप पोस्ट मेंसट्रुअल सिंड्रोम का शिकार है। शरीर में हार्मोनल इंबैलेंस समेत कई कारणों से ये समस्या बढ़ने लगती है, जो पीएमएस का कारण साबित होता है। अगर आप भी पीरियड खत्म होने के बाद चिड़चिड़ेपन का शिकार है और थकान अनुभव कर रही हैं, तो ये पोस्ट मेंसट्रुअल सिंड्रोम का कारण बन सकता है। जानते हैं पोस्ट मेंसट्रुअल सिंड्रोम (Post menstrual syndrome) क्या है और इससे कैसे डील करें।
इस बारे में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ शिवानी सिंह का कहना है कि पीरियड के बाद शरीर में एस्ट्रोजेन और टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्तर बढ़ने से पोस्ट मेंसट्रुअल सिंड्रोम का खतरा बढ़ जाता है। शरीर में हार्मोनल बदलाव से होने वाली इस समस्या के लक्षणों को दो भागों में बांटा जाता है। एक है शारीरिक और दूसरा है मनोवैज्ञानिक।
जहां कुछ महिलाएं पीरियड के बाद भी बैक पेन, पेट में ऐंठन, ज्वाइंट पेन और सेक्सुअल पेन से होकर गुज़रना पड़ता है, वहीं कुछ महिलाएं तनाव और एंग्ज़ाइटी की शिकार हो जाती हैं।
बायोमेड सेंट्रल की एक रिसर्च के अनुसार 90 फीसदी महिलाएं पीरियड से पहले प्री मेंसट्रुअल सिंड्रोम का अनुभव करती हैं, तो वही 20 से 40 फीसदी महिलाएं पोस्ट मेंसट्रुअल सिंड्रोम का सामना करती हैं। एक से दो सप्ताह के मध्यम इस समस्या के लक्षण अपने आप खत्म हो जाते हैं।
फीमेल हार्मोन पीरियड के दौरान बढ़ते घटते रहते हैं। पीरियड के दौरान शरीर में एस्ट्रोजेन और टेस्टोस्टेरोन हार्मोन के स्तर में वृद्धि होने लगती है। इससे महिलाओं को पोस्ट मेंसट्रुअल सिंड्रोम का सामना करना पड़ता है। हार्मोनस में आन वाले बदलाव के चलते अर्ली फॉलिक्यूलर स्टेज में इस समस्या के लक्षण नज़र आने लगते हैं।
ब्लड लॉस होने से शरीर में थकान और कमज़ोरी महसूस होने लगती है। इससे एनर्जी के लेवल में भी बदलाव दिखने लगता है। शरीर में खून की मात्रा कम होने से व्यवहार में चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है, जो एंग्ज़ाइटी और मूड सि्ंवग का कारण बन जाता है।
पीरियड साइकल के दौरान ऐंठन और कमर दर्द नींद को बाधित कर देता है, जिससे हर वक्त तनाव की स्थिति बनी रहती है। मासिक धर्म के दौरान बहुत सी महिलाओं को ब्लोटिंग और उल्टी की समस्या का सामना करना पड़ता है, जिसके चलते वे उचित आहार की प्राप्ति नहीं कर पाते हैं।
पीरियड के दौरान होने वाले ब्लड लॉस के चलते एनर्जी का लेवल कम होने लगता है, जिससे थकान, कमज़ोरी और तनाव बढ़ने लगता है। ऐसे में अपनी डाइट में विटामिन, कैल्शियम और मिनरल को शामिल करें। इससे शरीर में उचित पोषण की प्राप्ति होने लगती है, जिससे शरीर हेल्दी बना रहता है।
शरीर में बढ़ने वाले हार्मोनल इंबैलेस को दूर करने के लिए शरीर को फिजीकली एक्टिव रखना ज़रूरी है। कुछ देर एक्सरसाइज़ करें, जो ब्लड सर्कुलेशन को नियमित करने में मदद करता है। कुछ देर स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज़ करने और वॉक पर जाने से मसल्स में मज़बूती बढ़ती है, जिससे शारीरिक अंगों में होने वाली दर्द कम होने लगती है।
ब्लीडिंग और पेट के निचले हिस्से में होने वाली ऐंठन के कारण नींद बाधित होने लगती है। ऐसे में नींद पूरी करने के लिए समय से सोएं और उठें, जिससे शरीर में तनाव की समस्या कम होने लगती है।
सर्दी के मौसम में खुद को रिलैक्स रखने के लिए अगर आप हॉट बाथ नहीं ले पाती हैं, तो ऑयल मसाज से खुद को आराम पहुंचाएं। इससे शरीर में होने वाली थकान और मांसपेशियों का दर्द दूर होता है। बॉडी रिलैक्स होने से शरीर में हैप्पर हार्मोन रिलीज़ होने लगते है।
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