भारतीय माएं मातृत्व को अपना सबसे पहला दायित्व मानती आई हैं। कभी-कभी इसके लिए वे इतने अनरियलिस्टिक गोल सेट कर लेती हैं कि उनकी अपनी देखभाल और मानसिक स्वास्थ्य हाशिये पर चला जाता है। कुछ महिलाएं बच्चा आने के साथ ही अपना ख्याल रखना छोड़ देती हैं। उनके जीवन में अब प्राथमिकता बच्चा बन चुका होता है और वे अपनी ही लाइफ में बैक सीट ले लेती हैं। और फिर सेहत, रिलेशनशिप और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याओं का उन्हें सामना करना पड़ता है। पर थोड़ा ठहर कर, सभी चीजों के बीच समन्वय बैठाकर वे मदरहुड के साथ-साथ सेल्फ केयर (how to balance motherhood and self care) पर भी ध्यान दे सकती हैं। कैसे? यह बताने के लिए आज हमारे साथ एक एक्सपर्ट हैं।
इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए हमने बात की सीनियर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव से।
डॉ आशुतोष कहते हैं, ”ज्यादातर महिलाओं को मां बनने के बाद लगता है कि उनका बच्चा ही उनकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। अगर वे अपनी नींद या अपनी देखभाल पर ध्यान देंगी तो यह स्वार्थ होगा। जबकि यह खतरनाक टैबू है। जिसके कारण भारत में ज्यादातर महिलाएं मां बनने के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन (postpartum depression) का सामना करती हैं।”
वे आगे कहते हैं, “अगर आप अपने आप को समय देंगी और अपनी चीजों को भी साथ में करेंगी, तो यह आपकी सेहत, मूड और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा होगा। अपनी देखभाल को प्राथमिकता देकर आप बच्चे का ध्यान और ज्यादा अच्छे से रख सकती हैं।”
एक मां के रूप में, खुद को प्राथमिकताओं की सूची में अंतिम स्थान पर रखना आसान है। जबकि सेल्फ केयर कोई लग्जरी नहीं है, यह एक आवश्यकता है। जिस तरह आप अपने बच्चे की ज़रूरतों का ध्यान रखते हैं, उसी तरह आपको अपनी ज़रूरतों को भी पहचानना चाहिए और उन्हें पूरा करने के लिए सोच-समझकर कदम उठाने चाहिए। अपने बच्चे की प्रभावी ढंग से देखभाल करने की क्षमता में आत्म देखभाल को एक निवेश के रूप में मानना चाहिए।
मातृत्व और सेल्फ केयर में संतुलन के लिए एक अच्छे टाइम मैनेजमेंट की आवश्यकता होती है। एक दैनिक या साप्ताहिक कार्यक्रम बनाएं, जिसमें बच्चे की देखभाल और स्वयं की देखभाल दोनों के लिए समय को बांटें। इस तरह, आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपके पास खुद के काम के लिए कितना समय है। आप आपना यह कार्यक्रम अपने पार्टनर के साथ या किसी सहायक के साथ साझा कर सकती हैं। ताकि वे आपकी प्रतिबद्धताओं को समझें।
डाॅ आशुतोष सुझाव देते हैं, “अपनी देखभाल की चीजों के लिए एक टूलकिट विकसित करें जो आपके अनुरूप हो। इन सभी को अपने डेली रुटीन में समायोजित करें। जिससे आप अपनी प्राथमिकताओं को पूरा कर पाएं। मेडिटेशन, पढ़ना, व्यायाम या बाहर समय बिताने जैसी छोटी और लंबी गतिविधियों का मिश्रण शामिल करें। विभिन्न प्रकार के विकल्प होने से आप वह चुन सकती हैं जो आपके मूड और उपलब्ध समय के अनुकूल हों।”
मातृत्व का मतलब यह नहीं है कि आपको सब कुछ खुद ही करना होगा। अपने साथी, परिवार के सदस्यों या दोस्तों से सहायता लें। कार्य सौंपें, जिम्मेदारियां बांटें और अपनी अपनी देखभाल की आवश्यकताओं के बारे में बताएं। याद रखें कि मदद मांगने से आप असफल नहीं हो रहे हैं। आप अपनी सीमाओं को पहचानकर और सक्रिय रूप से समर्थन मांगकर दूसरों को भी बच्चे की देख भाल का मौका दे रही है।
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