कच्चे दूध की लोकप्रियता बढ़ रही है, लेकिन क्या यह आपकी सेहत के लिए अच्छा है?

कुछ लोग उबले हुए या फ्लेवर्ड मिल्क की बजाए इसे उसकी रॉ फाॅर्म में यानी कच्चा दूध पीना पसंद करते हैं। आपको यह बिना मिलावट वाला दूध ज्यादा फायदेमंद लग सकता है, पर ऐसा है नहीं।
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कच्चे दूध का सेवन सेहत के लिए हानिकारक। चित्र- शटर स्टॉक
संध्या सिंह Published: 27 Aug 2023, 14:00 pm IST
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कच्चे दूध के सेवन की सुरक्षा दुनिया भर में कई जगहों पर बहस और चिंता का विषय है। कच्चा दूध वह दूध है जिसे पास्चुरीकृत नहीं किया गया है, एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें हानिकारक बैक्टीरिया और रोगजनकों को मारने के लिए दूध को गर्म किया जाता है। जबकि कच्चे दूध के शौकीनों का तर्क है कि इसमें अधिक पोषक तत्व और लाभकारी एंजाइम होते हैं, स्वास्थ्य विशेषज्ञ अक्सर कच्चे दूध में मौजूद बैक्टीरिया और रोगजनकों से जुड़े संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के कारण इसके सेवन के खिलाफ चेतावनी देते हैं। तो सवाल यही कि क्या कच्चा दूध सही है या नही।

क्या होता है कच्चा दूध

कच्चा दूध वो डेयरी उत्पाद है जो पास्चुराइज्ड प्रक्रिया से नहीं गुजरा है। आसान शब्दों में समझे तो जब दूध गाय के थन से सीधे उपभोक्ता तक जाता है, तो इसे “कच्चा” माना जाता है।

इससे अलग, पास्चुराइज्ड दूध में दूध के हर कण को एक विशिष्ट तापमान पर गर्म किया जाता है, जो बैक्टीरिया को पनपने से रोकता है।

इस पास्चुराइज्ड प्रक्रिया का उद्देश्य संभावित हानिकारक बैक्टीरिया की संख्या को कम करके दूध और दूध उत्पादों को उपभोक्ताओं के लिए सुरक्षित बनाना है, साथ ही खराब बैक्टीरिया की संख्या को कम करके दूध की शेल्फ लाइफ में सुधार करना है।

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क्च्चे दूध के सावन से कुछ खाद्य जनित बिमारी हो सकती है जैसे दस्त, मतली, बुखार, उल्टी और थकान। चित्र- अडोबी स्टॉक

कच्चा दूध और पास्चुराइज्ड दूध

उपभोक्ताओं के कच्चे दूध को पसंद करने का सबसे बड़ कारण है यह दावा है कि यह पास्चुराइज्ड डेयरी की तुलना में एक स्वस्थ, अधिक पौष्टिक विकल्प है। लेकिन कुछ विशेषज्ञो का ये भी कहना है कि इसे जरूरत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।

यह सच है कि पास्चुराइज्ड प्रक्रिया दूध में पाए जाने वाले कुछ विटामिनों के प्रतिशत को कम कर सकती है, लेकिन यह उतना ज्यादा भी कम नहीं करता है जितना लगता है।

सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशनकी माने तो कच्चे दूध में कैम्पिलोबैक्टर, क्रिप्टोस्पोरिडियम, ई. कोली, लिस्टेरिया, ब्रुसेला और साल्मोनेला जैसे हानिकारक कीटाणु हो सकते हैं, जिनका सेवन करने पर भोजन से होने वाली बीमारी हो सकती है।

क्च्चे दूध के सावन से कुछ खाद्य जनित बिमारी हो सकती है जैसे दस्त, मतली, बुखार, उल्टी और थकान । अधिक गंभीर मामलों में, खाद्य विषाक्तता से गुर्दे की खराबी, मस्तिष्क क्षति, अत्यधिक डिहाइड्रेशन और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है।

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पास्चुराइज्ड प्रक्रिया दूध में पाए जाने वाले कुछ विटामिनों के प्रतिशत को कम कर सकती है। चित्र : शटरस्टॉक

पास्चुराइज्ड का इतिहास क्या है?

सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार पास्चुराइज्ड की शुरूआत ऐसे समय में हुई जब लाखों लोगट्यूबरक्लोसिस, स्कार्लेट फीवर, टाइफाइड बुखार और कच्चे दूध से फैलने वाली अन्य बीमारियों से बीमार हो गए और मर गए।

दूध का नियमित पास्चुराइज्ड संयुक्त राज्य अमेरिका में 1920 के दशक में शुरू हुआ और 1950 तक कंटैमिनेशन को कम करने और बीमारियों को कम करने के एक तरीके के रूप में जाना जाने लगा। इससे बीमार होने वाले लोगों की संख्या में कमी आई। कई डॉक्टर और वैज्ञानिक पास्चुराइज्ड को सार्वजनिक स्वास्थ्य के अब तक के सबसे प्रभावी खाद्य सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम में से एक मानते है।

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कई चिकित्सा और वैज्ञानिक संगठन मनुष्यों द्वारा उपभोग किए जाने वाले सभी दूध के लिए पास्चुराइज्ड की सलाह देते हैं। इन संगठनों में सीडीसी, यू.एस. फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन, अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स, अमेरिकन वेटरनरी मेडिकल एसोसिएशन, नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्टेट पब्लिक हेल्थ वेटेरिनेरियन्स शामिल हैं।

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लेखक के बारे में

दिल्ली यूनिवर्सिटी से जर्नलिज़्म ग्रेजुएट संध्या सिंह महिलाओं की सेहत, फिटनेस, ब्यूटी और जीवनशैली मुद्दों की अध्येता हैं। विभिन्न विशेषज्ञों और शोध संस्थानों से संपर्क कर वे  शोधपूर्ण-तथ्यात्मक सामग्री पाठकों के लिए मुहैया करवा रहीं हैं। संध्या बॉडी पॉजिटिविटी और महिला अधिकारों की समर्थक हैं। ...और पढ़ें

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