हममें से ज्यादातर लोग वैलेंटाइन डे की तैयारियों में लगे हैं। अपने दिल की बात कहने और दूसरे के दिल की बात सुनने की कोशिश में जुटे हैं। पर क्या आप जानती हैं कि बच्चों और बड़ों की एक बड़ी आबादी का दिल यानी हार्ट सही ढंग से काम नहीं कर रहा है। वे जन्म से हृदय रोग से पीड़ित हैं। इसे जन्मजात हृदय दोष (सी.एच.डी. या Congenital Heart Defect) कहा जाता है। इसके प्रति लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए 14 फरवरी को विश्व जन्मजात हृदय दोष जागरूकता दिवस मनाया जाता है। जन्मजात हृदय दोष (Congenital Heart Defect) के बारे में जानने से पहले इस ख़ास दिवस के बारे में जानते हैं।
हर साल 14 फरवरी को मनाए जाने वाले जन्मजात हृदय दोष जागरूकता दिवस का उद्देश्य लोगों को जन्मजात हृदय दोष (CHD) के बारे में जागरूकता बढ़ाना और शिक्षित करना है। यह जन्म दोषों का एक घातक समूह है, जो हृदय को प्रभावित करता है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के अनुसार, जन्म लेने वाले प्रत्येक 1000 बच्चों में से आठ में किसी न किसी प्रकार का जन्मजात हृदय दोष होता है? जन्मजात हृदय दोष एक जानलेवा स्थिति है, जो हर साल हजारों लोगों की जान ले लेती है।
जर्नल ऑफ़ द अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार, जन्मजात हृदय दोष जन्म के समय मौजूद होते हैं। ये बच्चे के दिल की संरचना और उसके काम करने के तरीके को प्रभावित कर सकते हैं। ये हृदय से शरीर के बाकी हिस्सों तक ब्लड फ्लो को प्रभावित कर सकते हैं। सीएचडी हल्के (हार्ट में छोटा छेद) से लेकर गंभीर (हार्ट वाल्व नहीं होने, खराब रूप से बने हिस्से) तक हो सकते हैं।
हृदय दोष के साथ जन्म लेने वाले लगभग 4 में से 1 बच्चे में गंभीर सीएचडी होता है। गंभीर सीएचडी वाले शिशुओं को जीवन के पहले वर्ष में सर्जरी या अन्य प्रक्रियाओं की जरूरत पड़ती है।
इंडियन पीडियाट्रिक्स जर्नल के अनुसार, भारत में जन्मजात हृदय रोग के साथ पैदा होने वाले बच्चों की अनुमानित संख्या प्रति वर्ष 200,000 से अधिक है। यह पाया गया है कि इस स्थिति के साथ पैदा होने वाले अधिकांश बच्चे भारत के अधिक आबादी वाले राज्यों जैसे बिहार और उत्तर प्रदेश से होते हैं। इन शिशुओं को वह देखभाल नहीं मिलती जिसके वे हकदार हैं।
यूरोपियन हार्ट जर्नल के अनुसार, कुछ शिशुओं में उनके व्यक्तिगत जीन या क्रोमोजोम में परिवर्तन के कारण हृदय संबंधी दोष होते हैं। ऐसा माना जाता है कि सीएचडी जीन और अन्य कारकों के संयोजन के कारण होता है। पर्यावरण में मौजूद चीज़ें, मां का आहार, मां की स्वास्थ्य स्थितियां या गर्भावस्था के दौरान मां की दवा का उपयोग और गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक शराब का सेवन भी इसका कारण बन सकता है।
सीएचडी के लक्षण दोष और गंभीरता पर निर्भर करते हैं। कोई संकेत या लक्षण नहीं मिलने पर भी यह हो सकता है।
नीले रंग के नाखून या होंठ
तेज़ या परेशानी के साथ लेना
भोजन करते समय थकान होना
नींद नहीं आना
यूरोपियन हार्ट जर्नल के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान कुछ सीएचडी का निदान विशेष प्रकार के अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके किया जा सकता है। इसे फीटस इकोकार्डियोग्राम कहा जाता है। यह विकसित हो रहे बच्चे के दिल की अल्ट्रासाउंड तस्वीरें बनाता है। कुछ सीएचडी का पता जन्म के बाद या जीवन में बाद में, बचपन या एडल्ट एज के दौरान चलता है। यदि सीएचडी का संदेह हो, तो निदान की पुष्टि के लिए बच्चे को कई परीक्षण जैसे- इकोकार्डियोग्राम से गुजरना पड़ सकता है।
सीएचडी का उपचार मौजूद दोष के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है। कुछ प्रभावित शिशुओं और बच्चों को हृदय या रक्त वाहिकाओं की मरम्मत के लिए एक या अधिक सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। कुछ का इलाज कार्डियक कैथीटेराइजेशन नामक प्रक्रिया का उपयोग करके सर्जरी के बिना किया जा सकता है। एक लंबी ट्यूब, जिसे कैथेटर कहा जाता है, ब्लड वेसल्स के माध्यम से हृदय में डाली जाती है। इससे डॉक्टर माप और तस्वीरें ले सकता है, परीक्षण कर सकता है या समस्या को ठीक कर सकता है।
कभी-कभी हृदय दोष को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है। ये प्रक्रियाएं ब्लड फ्लो और हृदय के काम करने के तरीके में सुधार कर सकती हैं। यह ध्यान रखना जरूरी है कि भले ही मरीज के हृदय दोष को ठीक कर दिया गया हो, सीएचडी वाले कई लोग ठीक नहीं होते हैं। उन्हें लगातार देखभाल की जरूरत पड़ती है। हृदय दोष वाले किसी भी व्यक्ति को जीवन भर नियमित रूप से हृदय रोग विशेषज्ञ से मिलते रहना पड़ता है।
यदि बच्चा हृदय की कई गंभीर समस्या के साथ पैदा हुआ है, तो ओपन-हार्ट सर्जरी से इसे प्रभावी ढंग से ठीक किया जा सकता है। ऑपरेशन का समय समस्या के प्रकार, उसके लक्षण और गंभीरता पर निर्भर करता है। कैथेटर इंटरवेंशन भी किया जाता है, जहां एक पतली खोखली ट्यूब को धमनी के माध्यम से हृदय में डाला जाता है। जिन शिशुओं को दिल की समस्या के गंभीर लक्षण होते हैं, उनकी सर्जरी जन्म के शुरूआती दिनों या हफ़्तों में की जाती है। गंभीर मामलों में संभावना यह भी बन सकती है कि जीवन भर रोगी को स्वास्थ्य की नियमित जांच करानी पड़े।
सीएचडी से पीड़ित बच्चे के लिए पेरेंट्स को आहार संबंधी टिप्स डॉक्टर से लेने पड़ते हैं, क्योंकि हर चीज़ बच्चा खा नहीं सकता है। जन्मजात हृदय दोष वाले बच्चे की शारीरिक गतिविधि पर भी ध्यान देना पड़ता है। कुलमिलाकर उसकी जीवन भर स्पेशल केयर करनी पड़ती है।
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