जीवन में बढ़ने वाला तनाव न केवल मेंटल हेल्थ को प्रभावित करता है बल्कि इसका असर चेहरे की त्वचा पर भी नज़र आने लगता है। डिप्रेशन और एंग्जाइटी के साथ साथ तनाव चेहरे पर दाग धब्बों, झुर्रियों और एक्ने का कारण भी बनने लगता है। इसके अलावा चेहरे पर सूजन, इचिंग और हेयरलॉस का भी सामना करना पड़ता है। जानते हैं जीवन में बढ़ने वाला तनाव कैसे स्किन को करता है प्रभावित।
अमेरिकन अकेडमी ऑफ डर्माटोलॉजी एसोसिएशन के अनुसार स्किन शरीर का सबसे बड़ा आर्गन है। इसी के चलते शरीर के अंदर बढ़ने वाली समस्याओं का प्रभाव त्वचा पर भी दिखने लगता है। दरअसल, वे लोग जो अक्सर तनाव में रहते हैं, उसका असर मानसिक और शारीरिक स्वस्थ्य पर नज़र आने लगता है। स्किन पर सूजन, घाव का धीमी गति से भरना और मुहांसों की समस्या का सामना करना पड़ता है। दरअसल, तनाव के दौरान स्किन ग्लैंडस ज्यादा मात्रा में ऑयल प्रोड्यूस करते हैं। इसके चलते मुँहासे बढने लगती हैं। तनाव सोरायसिस और एक्जिमा जैसी स्किन कंडीशन को भी ट्रिगर करता हैं।
तनाव में रहने के दौरान शरीर में कार्टिसाल हार्मोन रिलीज़ होने लगता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार कोर्टिसोल मस्तिष्क के एक हिस्से हाइपोथैलेमसइसके चलते शरीर में कॉर्टिकोट्रोफिन.रिलीजिंग हार्मोन यानि सीआरएच का उत्पादन बढ़ जाता है। इससे सिबेशियस ग्लैंडस उत्तेजित होते हैं और ऑयल रिलीज़ होने लगता है। ज्यादा मात्रा में ऑयल रिलीज़ होने से पोर्स को बंद कर सकता है, जिससे एक्ने की समस्या बढ़ने लगती है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक तनाव के कारण नींद न आना, एजिंग, फाइन लाइंस और इलास्टीसिटी की कमी का सामना करना पड़ता है। स्किन में इलास्टीसिटी की कमी के चलते बैगी आइज़ का जोखिम बढ़ जाता है। दरअसल, तनाव का असर आंखों के मसल्स पर नज़र आने लगता है। इसस आंखों के नीचे सूजन बढ़ जाती है।
स्ट्रेस हार्मोन के चलते स्किन में कोलेजन की कमी बढ़ने लगती है। कोलेजन की मात्रा में गिरावट आने से स्किन की इलास्टीसिटी कम होती चली जाती है, जिससे चेहरे पर उम्र से पहले फाइन लाइंस नज़र आने लगती हैं। तनाव बढ़ने से ये प्रक्रिया तेज़ गति से बढ़ने लगती है। चेहरे पर नज़र आने वाली फाइन लाइंस धीरे धीरे गर्दन पर भी बढ़ने लगती हैं।
त्वचा में बढ़ने वाले सीबम प्रोडक्टशन के चलते बैक्टीरिया और डेड स्किन सेल्स की समस्या का सामना करना पड़ता है। इससे स्किन पर दाग धब्बे और झाईयां बढ़ जाती है। साथ ही त्वचा में कोलेजन के घटने से मेलेनिन का प्रभाव बढ़ जाता है, जिसके चलते चीक बोन्स, आंखों के नीचे और होठों के पास ब्लैमीशिज़ पनपने लगते हैं।
तनाव के चलते इम्यून सिस्टम कमज़ोर होने लगता है। ऐसे में त्वचा पर रैशेज, इंचिंग और रेडनेस का सामना करना पड़ता है। शरीर में बैक्टीरियल इंबैलेंस के चलते डिसबायोसिस की संभावना बढ़ जाती है। है। इसके चलते सोरायसिस, एग्जिमा और कॉटेंक्ट डर्माटाइटिस का जोखिम बढ़ जाता है।
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