हम सभी जानते हैं कि नींद की समस्या और मेंटल हेल्थ दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं। ये जीवन की गुणवत्ता पर भी प्रभाव डालते हैं। नींद रिप्रोडक्टिव हेल्थ पर भी प्रभाव डालती है। जिस तरह से मेनोपॉज़ के कारण महिलाओं को नींद की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उसी तरह नींद की कमी सेक्स हार्मोन पर प्रभाव डाल सकती है। यदि कोई भी महिला देर रात सोती है, तो उसके प्रोजेस्टेरॉन और एस्ट्रोजन हॉर्मोन (sleep effect on reproductive health ) प्रभावित हो सकते हैं।
कुछ हार्मोन लेवल नींद, भोजन और सामान्य व्यवहार से भी प्रभावित होते हैं। कई हार्मोनों का रेगुलेशन और मेटाबोलिज्म नींद के प्रभाव और आंतरिक सर्कैडियन प्रणाली (Circadian rhythm) के बीच इंटरैक्शन से प्रभावित होता है। ग्रोथ हार्मोन, मेलाटोनिन, कोर्टिसोल, लेप्टिन और घ्रेलिन का लेवल नींद और सर्कैडियन रिद्म से अत्यधिक प्रभावित होता है।
पर्याप्त नींद न लेने से हार्मोन असंतुलन हो सकता है। इसका रिप्रोडक्टिव हेल्थ पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। स्लीप साइकिल के प्रभावित होने से रिप्रोडक्टिव एजिंग में तेजी आ सकती है। ओवेरियन रिजर्व में समय से पहले गिरावट, अनियमित ईस्टरस सायकल (irregular estrous cycle) और प्रजनन दर में कमी (low reproductive rate) आ सकती है। यह मोटापा, इंसुलिन इंसेंसिटिविटी, डायबिटीज, हार्मोनल इम्बैलेंस और हंगर डिसऑर्डर से भी जुड़ा है।
प्रोजेस्टेरोन यूट्रस लाइनिंग को नियंत्रित करता है। यह गर्भावस्था को मेंटेन करने और इम्प्लांटेशन के लिए जरूरी है। रिप्रोडक्टिव हेल्थ जर्नल के अध्ययन के अनुसार, 259 नियमित रूप से माहवारी वाली महिलाओं पर स्टडी हुई। महिलाओं की दैनिक नींद की अवधि में हर घंटे की वृद्धि से ल्यूटियल फेज प्रोजेस्टेरोन लेवल में 9.4% की वृद्धि हुई। जिस तरह से तनाव प्रोजेस्टेरोन के लो लेवल से जुड़ा है, ठीक उसी तरह नींद शारीरिक तनाव के लिए जिम्मेदार है। यह लो प्रोजेस्टेरोन लेवल से भी जुड़ी है।
जब आप अच्छी नींद नहीं लेती हैं, तो सुबह उठने पर कोर्टिसोल हाई (lack of sleep causes high cortisol level) होता है। यह एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन के बीच टैंगो को बाधित कर सकता है। यह थायरॉयड को धीमा कर सकता है, जो मेटाबोलिज्म को प्रभावित कर सकता है। यह साबित हो चुका है कि लो एस्ट्रोजन देरी से नींद आने, नींद के बाद जागने पर मेंटल डिसऑर्डर का कारण बन सकता है। इसलिए हमेशा नींद लेने के लिए समय निकालें। एस्ट्रोजन लेवल लो होने पर शरीर का तापमान भी प्रभावित हो जायेगा।
संतुलित एस्ट्रोजन लेवल नींद की गुणवत्ता में सुधार करता है। इससे नींद जल्दी आती है और आप रात में बार-बार नहीं उठते। यह वासोमोटर लक्षणों को भी कम करती है। हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी के लिए एस्ट्रोजेन रिप्लेसमेंट थेरेपी अपनाई जाती है।
एस्ट्रोजेन रिप्लेसमेंट थेरेपी नींद और लाइफ क्वालिटी में सुधार करती है। इसलिए मेनोपॉज के कारण होने वाली अनिद्रा को ठीक करने के लिए हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी की सिफारिश की जाती है।
जबकि प्रोजेस्टेरोन स्लीप इंडक्शन या हिप्नोटिक इफेक्ट डालता है। यह एक पॉवरफुल रेस्पिरेटरी स्टीमुलेंट है। यह सेंट्रल और ओब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया एपिसोड की संख्या में कमी से जुड़ा हुआ है।
नींद और प्रोजेस्टेरोन – एस्ट्रोजेन लेवल एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। स्लीप क्वॉलिटी प्रभावित होने पर इन दोनों हॉर्मोन का सीक्रेशन प्रभावित (sleep effect on reproductive health) हो जाता है। वहीं प्रोजेस्टेरोन लेवल और एस्ट्रोजेन लेवल में गिरावट स्लीप क्वालिटी को प्रभावित कर देता है।
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