चलते समय सांस का फूलना और हाथों.पैरों में सूजन सुनने में भले ही आम लगें, मगर ये पल्मोनरी हाईपरटेंशन जैसी घातक बीमारी के शुरूआती लक्षण हो सकते हैं। जो फेफड़ों की धमनियों में रक्त के प्रवाह को कम कर देते हैं और ब्लड प्रेशर (Blood pressure) को बढ़ाने लगते हैं। इसका असर हृदय की मांसपेशियों पर पड़ने लगता है। ये समस्या किसी भी उम्र में आपको अपनी चपेट में ले सकती है। ये तकलीफ शरीर में धीमी गति से बढ़ने लगती है, जिससे लक्षण धीरे धीरे गंभीर होते चले जाते हैं। जानतें है क्या है पल्मोनरी हाईपरटेंशन (Pulmonary hypertension) और इससे कैसे बचा जा सकता है।
वैश्विक स्तर पर लगभग 1 फीसदी लोग पल्मोनरी हाइपरटेंशन (Pulmonary hypertension) से ग्रस्त है। नेशनल हार्ट, लंग्स एंड ब्लड इंस्टीट्यूट के अनुसार पल्मोनरी हाइपरटेंशन एक ऐसी स्थिति है जो फेफड़ों में ब्लड वेसल्स को प्रभावित करती है। फेफड़ों में रक्तचाप सामान्य से ज्यादा होने पर ये स्थिति पैदा होती है। शरीर में पल्मोनरी हाइपरटेंशन की समस्या बढ़ने से फेफड़ों में रक्त पंप करने के लिए हृदय को सामान्य से अधिक परिश्रम करना पड़ता है। जो हृदय के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक साबित होता है। इसके चलते सांस लेने में दिक्कत, सीने में दर्द और शरीर में हल्कापन महसूस होने लगता है।
पल्मोनरी हाईपरटेंशन (Pulmonary hypertension) के कारणों और उपचार के बारे में जानने के लिए हमने लंग्स हेल्थ एक्सपर्ट डॉ अवि कुमार से बात की। डॉ अवि कुमार फोर्टिस एस्कॉर्ट्स एंड हार्ट इंस्टीट्यूट ओखला में रेस्पिरेटरी मेडिसिन कंसल्टेंट हैं।
डॉ अवि कुमार के अनुसार पल्मोनरी आर्टरीज का प्रेशर जब 30 से ज्यादा हो जाता है, तो उसे पल्मोनरी हाइपरटेंशन कहा जाता है। ये समस्या किसी न किसी डिज़ीज के कारण शरीर में बढ़ने लगती है। सीओपीडी से लेकर लेफ्ट हार्ट फेलियर तक किसी भी समस्या से ग्रस्त व्यक्ति को इसका सामना करना पड़ सकता है।
कुछ बीमारियों के चलते भी पल्मोनरी हाइपरटेंशन का जोखिम बढ़ जाता है। जो लोग ऑटो इम्यून बीमारी ग्लाइकोजन स्टोरेज से ग्रस्त हैं, उन्हें भी पल्मोनरी हाइपरटेंशन (Pulmonary hypertension) का जोखिम बढ़ने लगता है। इसकी पहचान करने के लिए कई प्रकार के टेस्ट करवाए जाते हैं।
सीओपीडी से ग्रस्त होने पर इसका खतरा बढ़ जाता है
इंटरस्टीशियल लंग डिजीज वाले पेशेंटस में इसकी संभावना बढ़ जाती है।
लेफ्ट हार्ट फेलियर वाले पेशेंट्स इस समस्या का शिकार हो जाते हैं
थ्रामोएम्बाल्जिम के रोगी में भी इसका जोखिम बढ़ने लगता है
ग्लाइकोजन स्टोरज डिज़ीज से भी ये रोग पनपने लगता है
एचआईवी के मरीज इस बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं
सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार किसी भी उम्र के लोग पल्मोनरी हाइपरटेंशन (Pulmonary hypertension) का शिकार हो सकते हैं। 30 से लेकर 60 वर्ष की उम्र के लोगों में यह समस्या ज्यादा पाई जाती है। दरअसल, लंग्स की आर्टरीज संकुचित होने के कारण ब्लड फ्लो उचित तरीके से नहीं हो पाता है, जिससे फेफड़ों में ऑक्सीजऩ पूरी तरह से नहीं पहुंच पाती है।
चलते समय सांस फूलने लगती है
हाथों और पैरों में सूजन बढ़ जाती है
शरीर में ऑक्सीजन की कमी
थकान महसूस होना
लगातार खांसी की समस्या
चेस्ट पेन का बढ़ना भी इस समस्या को दर्शाता है
डॉ अवि कुमार के अनुसार पल्मोनरी हाइपरटेंशन की जांच के लिए पहले मरीज का इसीजी और इको होता है। फिर एक्सरे करवाया जाता है। इसके अलावा टीएफटी और ब्लड टेस्ट करवाते हैं। टेस्ट से इस बात की जानकारी मिलती है कि पेशेंट को हार्ट या लंग्स की वजह से कोई परेशानी तो नहीं आ रही है। इसके अलावा इस बात की भी जांच की जाती है कि एबोलिज्म तो नहीं है। जो क्लॉट का कारण बनने लगता है।
जांच के बाद पेशेंट की शारीरिक स्थिति के अनुसार उन्हें एंटी इंफ्लामेटरी समेत कई प्रकार की दवाएं दी जाती है। हाल ही में आई एक स्टडी के अनुसार आईयू स्कूल ऑफ मेडिसिन में एमडी और प्रोफेसर और पीडियाटरिक्स डॉ मार्गेट ए सेक्वार्ज के अनुसार प्रोटीन एसपीएचके 2 के माध्यम से एक एपिजेनेटिक मार्ग की खोज की गई है। इसके ज़रिए पल्मोनरी हाईपरटेंशन में वसकुलर रीमॉडेलिंग को रिवर्स किया जा सकता है। पल्मोनरी हाईपरटेंशन कई अज्ञात तरीकों से शरीर में बढ़ने लगता हैं। इसकी एक पहचान कोशिकाओं के अतिवृद्धि के कारण रक्त वाहिकाओं का मोटा होना भी है, जिसे वसकुलर रीमॉडेलिंग भी कहा जाता है।