मौसम में बदलाव, बढ़ती ठंड और प्रदूषण का बढ़ता स्तर सांसों के लिए सबसे ज्यादा जोखिम खड़ा करते हैं। दिल्ली-एनसीआर सहित पूरे देश में प्रदूषण का स्तर इतना अधिक बढ़ गया है कि, इससे श्वसन.तंत्र से जुड़ी समस्याएं बढ़ने लगी हैं। वे लोग जो खासतौर से क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (Chronic Obstructive Pulmonary Disease) यानी सीओपीडी (COPD) से ग्रस्त हैं, उन्हें इस मौसम में खास एहतियात बरतने की जरूरत होती है। ठंडी हवा और धूल-मिट्टी के कारण खांसी, जुकाम और एयर पैसेज ब्लाॅक होने की परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप इसके ट्रिगर करने वाले कारकों और उससे बचाव के उपायों के बारे में जानें।
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (Chronic Obstructive Pulmonary Disease) के कारणों और उपचार के बारे में जानने के लिए हमने लंग्स हेल्थ एक्सपर्ट डॉ अवि कुमार से बात की। डॉ अवि कुमार फोर्टिस एस्कॉर्ट्स एंड हार्ट इंस्टीट्यूट ओखला में रेस्पिरेटरी मेडिसिन कंसल्टेंट के तौर पर काम कर रहे हैं।
सालाना नवंबर महीने को क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज मंथ के रूप में मनाया जाता है। इस साल सीओपीडी मंथ की थीम ब्रीथिंग इज़ लाइफ एक्ट अर्लियर है। हर साल मनाए जाने वाले इस खास मंथ का मकसद लोगों को क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज के बारे में जागरूक करना है और इससे बचाव के उपाय बताना है। इस मौके पर कई जगहों पर कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज एक ऐसी बीमारी है जिसका खतरा अत्यधिक धूम्रपान और वायु प्रदूषण के कारण बढ़ने लगता है। इस बीमारी से फेफड़े क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे लगातार खांसी, सांस लेने में तकलीफ, थकान और घबराहट महसूस होने लगती है। ठंड की शुरूआत के साथ इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों को अपना ख्याल रखना चाहिए। खासतौर से एयर पैसेज में होने वाली ब्लॉकेज से बचने के लिए स्मोकिंग और पॉल्यूटेंट्स के संपर्क में आने से बचना भी जरूरी है।
डब्लयूएचओ के अनुसार क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (Chronic Obstructive Pulmonary Disease) से सालाना 3 मिलियन से ज्यादा लोगों की मौत होती है। दुनिया भर में सीओपीडी स्वास्थ्य खराब होने का सातवां मुख्य कारण है और मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा जाेखिम कारक है। मध्यम और निम्न आय वाले देशों में ये बीमारी तेज़ी से पांव पसार रही है। वहीं उच्च आय वाले देशों में 70 प्रतिशत से ज्यादा मामले केवल लगातार स्मोकिंग करने के कारण बढ़ने लगे हैं। क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज को क्रोनिक ब्रोंकाइटिस भी कहा जाता है।
फोर्टिस एस्कॉर्ट्स एंड हार्ट इंस्टीट्यूट ओखला में रेस्पिरेटरी मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ अवि कुमार कहते हैं कि वे लोग जो सांस संबधी समस्याओं के शिकार होते हैं, उनका पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट करवाया जाता है। दरअसल इस बीमारी में सांस की नली में सिकुड़न आ जाती है। यह कितनी है, इसकी जांच के लिए यह टेस्ट करवाया जाता है। यह तय होने पर नली में होने वाली इंफ्लामेशन को खत्म करके उसे दोबारा से नॉर्मल लाने की कोशिश की जाती है। इसके लिए कुछ पेशेंट्स को ऑक्सीजन भी दी जाती है।
इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को निमोनिया और फ्लू के वैक्सीन के लिए प्रेरित किया जाता है। इससे रोगी का इम्यून सिस्टम मज़बूत होने लगता है और उससे मरीज़ कई प्रकार के बैक्टीरियल संक्रमण से भी बचा रहता है।
2. फिजियोथेरेपी है कारगर
वे मरीज़ जो सीओपीडी के शिकार होते हैं, उन्हें फिजियोथेरेपी की सलाह दी जाती है। इससे सांस संबधी समस्याओं की रोकथाम में मदद मिलती हैं। ऐसे मरीजों के मसल्स भी कमज़ोर होने लगते हैं। इसलिए उन्हें नियमित एक्सरसाइज़ की सलाह दी जाती है।
उचित पोषण बीमारी की रोकथाम में मददगार साबित होता है। अपनी मील को हेल्दी रखने के लिए एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटी इन्फ्लेमेटरी फूड्स को शामिल करना चाहिए। इसके लिए डाइट में हरी पत्तेदार सब्जियों समेत लाल और पीले फलों को शामिल किया जाता है। आहार में सेब, केला, कद्दू और बीटरूट को शामिल कर सकते हैं। जो फेफड़ों को होने वाले नुकसान से बचाने में सक्षम हैं।
डॉक्टर की सुझाई गई दवाएं लेना न भूलें। सेहत को बेहतर बनाए रखने के लिए दवाओं का सेवन बहुत ज़रूरी है। बाहर निकलने से पहले दवाओं का सेवन अवश्य करें। इससे वायु में मौजूद प्रदूषण फेफड़ों को क्षतिग्रस्त होने से रोकते है।
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