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बुजुर्गों में सूंघने की क्षमता का कमजोर होना बढ़ा देता है ब्रेन हेल्थ से जुड़ी समस्याएं : शोध

वर्ल्ड सीनियर सिटीज़न डे के अवसर पर हम बुजुर्गों के स्वास्थ्य और मौजूदा स्थिति पर चर्चा करते हैं। वरिष्ठ नागरिकों के संदर्भ में हाल ही में प्रकाशित एक शोध में यह सामने आया है कि स्मैल करने की शक्ति का कम होते जाना, ब्रेन हेल्थ से जुड़ी समस्याओं का संकेत हो सकता है।
स्मैल करने की शक्ति का कम होते जाना, ब्रेन हेल्थ से जुड़ी समस्याओं का संकेत हो सकता है। चित्र – अडॉबीस्टॉक
ज्योति सोही Updated: 18 Oct 2023, 10:18 am IST
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स्मैल के ज़रिए हम अपने आसपास की दुनिया से कनैक्ट हो पाते हैं। खाने के अरोमा से लेकर गंदगी तक हर चीज़ की जांच उसकी गंध से करते हैं। रिसर्च में ऐसा पाया गया है कि जिन लोगों की स्मैल करने की क्षमता यानी घ्राण शक्ति कम होती है, वे उम्र बढ़ने (Senior citizen) के साथ तनावग्रस्त (Depression) होने लगते हैं। नाक बंद होने पर अक्सर घुटन का अनुभव करने लगते हैं। हाल ही में सामने आई एक रिसर्च में सामने आया है कि बुजुर्गों में सूंघने की शक्ति का कम होते जाना, मस्तिष्क संबंधी विकारों की ओर संकेत करता है। वर्ल्ड सीनियर सिटीजन डे पर आइए समझते हैं क्या है स्मैल और ब्रेन हेल्थ (how loss of smell affect mental health) का कनैक्शन।

आमतौर पर सर्दी-खांसी के समय नाक का पूरी तरह से न खुल पाना हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करने लगता है। ब्रेन धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगता है। जाॅल हाॅपकिन्स मेंडिसिन के वैज्ञानिकों के किए शोध से इस बात का पता चला है कि हायपोस्मिया (hyposmia) यानि स्मैल न आने की समस्या का संबध तनाव से है। अगर आप लंबे वक्त तक इस समस्या से जूझ रहे हैं, तो उम्र बढ़ने (Senior citizen) के साथ आप डिप्रेशन (depression) का शिकार हो सकते हैं। जानते हैं इस बारे में क्या कहती है रिसर्च।

वर्ल्ड सीनियर सिटीज़न डे

विश्वभर में 21 अगस्त को वर्ल्ड सीनियर सिटीज़न डे के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सीनियर सिटीजन्स को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाता है। साथ ही उन्हें स्वास्थ्य संबधी समस्याओं के जोखिम को कम करने की जानकारी भी दी जाती है। 60 साल से ज्यादा उम्र के लोग इस कैटेगरी में आते हैं। सालाना मनाए जाने वाले इस खास दिन जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस समय उन स्वास्थ्य समस्याओं और स्थितियों पर भी विचार किया जाना जरूरी है, जिनका सामना ज्यादातर बुजुर्गों को करना पड़ता है।

मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है सूंघने की कम क्षमता। चित्र : शटर स्टॉक

बुजुर्गों के बारे में क्या कहती है रिसर्च

इंटरनेशनल काउंसिल ऑन एक्टिव एजिंग के अनुसार गंध का उचित प्रकार से अनुमान न लगा पाना अल्जाइमर रोग (Alzheimer) और पार्किंसंस रोग (parkinsons) जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के जोखिम का प्राथमिक संकेत हो सकता है। फेडरल गर्वनमेंट स्टडी के मुताबिक 70 से 73 साल के ओल्डएज (Old age) 2,125 प्रतिभागियों पर एक रिसर्च की गई। 1999 में हुई इस रिसर्च के तहत जब लोगों की स्मैल पावर को चेक किया गया, तो पाया गया कि इनमें से 48 फीसदी लोगों को स्मैल संबधी किसी भी समस्या से जूझना नहीं पड़ रहा था। वहीं 28 फीसदी लोगों में स्मैल सेंस कम पाई , जिसे हायपोस्मिया (hyposmia) कहा जाता है। वहीं 24 फीसदी पार्टिसिपेंटस में स्मैल सेंस न के बराबर आंकी गई। वे लोग एनोस्मिया (anosmia) से ग्रस्त थे।

कैसे प्रभावित होती है सूंघने की क्षमता

जाॅन हापकिन्स मेडिसिन के शोध से इस बात का पता लगाया गया है कि मनुष्य की स्मैल करने की क्षमता दो कैमिकल सेंसिज़ में से एक है। ये सेंसरी सेल्स के माध्यम से काम करता है। इन्हें आलफैक्टरी न्यूराॅंस कहा जाता है। इनमें गंध रिसेप्टर (smell receptor) मौजूद होता है। इनकी मदद से आसपास के सब्सटांस की ओर से जारी किए गए माॅलीक्यूल्स को पिक करता है। उन्हें बाद में इंटरप्रेट करने के लिए ब्रेन में रिले किया जाता है। स्मैल माॅलिक्यूल्स (smell molecules) जितने हाई होते हैं। स्मैल उतनी ही तेज़ी से हम तक पहुंचती है।

स्मैल और डिप्रेशन में क्या है संबध

जॉन्स हॉपकिंस के शोधकर्ताओं का कहना है ओल्फैक्शन (olfaction) और तनाव (depression) दोनों ही बायोलाॅजिकली (biologically) एक दूसरे से से जुड़े हो सकते हैं। पिरिफॉर्म कॉर्टेक्स ब्रेन का वो पार्ट, जो स्मैल को प्रोसेसे करता है। यह न्यूरॉन्स का कलेक्शन है जो स्मैल को पहचानने और हमारे अंदर स्मैल सेंस को प्रोडयूस करने में भी मददगार साबित होता है।

ये हमारे ब्रेन के टेम्पोरल लोब में मौजूद होता है। जो सेरेब्रम और सेरेब्रल कॉर्टेक्स का हिस्सा है। ये लिम्बिक सिस्टम का एक ऐसा काॅम्पोनेंट है, जो इमोशंस और मेमोरी को प्रभावित करता है।

स्मैल (smell) की कमी का असर हमारी हेल्थ और बिहेवियर पर भी दिखने लगता है। चित्र: शटरस्‍टॉक

हेल्थ और बिहेवियर पर इसका प्रभाव

स्मैल (smell) की कमी का असर हमारी हेल्थ और बिहेवियर पर भी दिखने लगता है। इसके चलते न तो आप खाने के स्वाद का आंनद ले पाते हैं आरै न ही उसे महसूस कर सकते हैं। इसका असर ओवरआल हेल्थ पर भी दिखने लगता है। दरअसल, स्मैल (smell) के ज़रिए हम आस पास की दुनिया के संपर्क में रहते हैं। अगर आप के साथ लगातार ये समस्या बनी हुई है, तो ये लेट लाइफ डिप्रेशन का कारण बनन लगता है।

मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है सूंघने की कम क्षमता

यादाश्त पर इसका प्रभाव दिखने लगता है। आप बातों को भूलने लगते हैं।

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बहुत जल्दी तनाव में आ जाते हैं और परेशान रहने लगते हैं।

घुटन का अनुभव करने लगते हैं और एकाग्रता भी कम हो जाती है।

व्यवहार में चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है।

इस समस्या से निपटने के लिए चीजों को स्मैल करन की कोशिश करें। अपनी नाक पर अपना ध्यान क्रद्रित करें। आवजेक्टस को स्मैल करने क प्रयास लगातार करें। इससे आपकी समस्या धीरे धीरे कम होने लगेगी। साथ ही तनाव का लेवल भी कम होता चला जाएगा। अगर स्थिति गंभीर हो रही है, तो अपने हेल्थ केयर विशेषज्ञ से तुरंत संपर्क करें।

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ज्योति सोही

लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं। ...और पढ़ें

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