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World kidney day 2022: कोविड पॉजिटिव थीं दोनों बहनें, छोटी ने दान की बड़ी बहन को किडनी

कोविड-19 महामारी के कारण कई अन्य बीमारियों के उपचार में चुनौतियां आईं हैं। जिनमें किडनी रोगों का उपचार और ट्रांसप्लांट भी शामिल है। पर इस दुर्लभ मामले में कोविड से रिकवरी के बाद किडनी का ट्रांसप्लांट किया गया है।
दिल्ली में छोटी बहन ने दान की बड़ी बहन को किडनी। चित्र: शटरस्टॉक
योगिता यादव Updated: 25 Apr 2022, 17:06 pm IST
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मार्च का महीना महिलाओं (International women’s day) का है और इस एक खास महीने में दुनिया भर में महिलाओं के योगदान पर चर्चा की जाती है। पर ज्यादातर यह चर्चा राजनीति, कॉरपोरेट और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ही सीमित हो कर रह जाती है। जबिक स्त्रियों की सफलता में जितना हाथ बहनापे का है, उतना शायद ही किसी और का होगा। बहनापे की एक ऐसी ही अनूठी मिसाल दिल्ली में सामने आई है। जहां एक निजी अस्पताल में छोटी बहन ने बड़ी बहन को किडनी दान (Kidney donate) कर उसे जीवन की अनमोल सौगात दी है। खास बात ये कि दोनों ही बहनें कोविड पॉजिटिव (Covid-19 positive) थीं। जिसकी वजह से ये ट्रांसप्लांट (Kidney transplant) डॉक्टरों के लिए भी खासा चुनौतीपूर्ण था।

विश्व गुर्दा दिवस (World kidney day)

10 मार्च को दुनिया भर में विश्व गुर्दा दिवस (World kidney day) के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। वर्ष 2006 से  इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ किडनी फाउंडेशन और इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी  द्वारा साझा रूप से मनाए जा रहे इस दिन का उद्देश्य लोगों को किडनी के स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करना और जोखिमों के प्रति आगाह करना है। विभिन्न कारणों के चलते अगर किसी व्यक्ति की किडनी फेल हो जाती है, तो किडनी ट्रांसप्लांट के जरिए उसका जीवन बचाया जा सकता है।

कब होती है किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत 

एक सामान्य व्यक्ति के शरीर में दो किडनी होती हैं। अगर किसी भी वजह से एक किडनी खराब हो जाए, तो व्यक्ति दूसरी किडनी के सहारे जीवित रह सकता है। इसे किडनी डायलिसिस से बेहतर विकल्प माना जाता है, क्योंकि इससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।

किडनी ट्रांसप्लांट एक जीवन रक्षक उपाय है। चित्र: शटरस्टॉक

यह अंतिम चरण के किडनी फेलियर वाले युवा मरीजों के लिए एक बेहतर विकल्प है। परंतु कोविड-19 महामारी के कारण किडनी ट्रांसप्लांट में जोखिम बढ़े हैं। नेशनल सेंटर फॉर बायोटैक्‍नोलॉजी इंफॉरमेशन की रिपोर्ट के अनुसार, ऑर्गेन डोनेशन और ट्रांसप्‍लांटेशन प्रोग्रामों पर कोविड-19 महामारी की वजह से काफी नकारात्‍मक असर पड़ा है।

दिल्ली में छोटी बहन ने दी बड़ी बहन को किडनी 

क्‍लीनिकल उत्‍कृष्‍टता के एक दुर्लभ मामले में, 46 वर्षीय एक महिला की किडनी को 53 वर्षीय महिला रोगी के शरीर में सफलतापूर्वक ट्रांसप्‍लांट किया गया है। किडनी की डोनर और रेसीपिएंट आपस में बहने हैं। यह ऐसा पहला मामला है जिसमें एक कोविड रिकवर्ड डोनर (Covid recoverd donar) की किडनी को एक अन्‍य कोविड रिकवर्ड रेसीपिएंट (covid recovered recipient) के शरीर में ट्रांसप्‍लांट किया गया।

रेसीपिएंट इस ट्रांसप्‍लांट प्रक्रिया के बाद स्‍वास्‍थ्‍य लाभ कर रही हैं और किसी प्रकार का संक्रमण, ट्रांसप्‍लांट ऑर्गेन फेलियर या अन्‍य कोई परेशानी सामने नहीं आयी है।

कोविड-19 महामारी के दौरान कम नहीं थीं चुनौतियां 

इस किडनी ट्रांसप्‍लांट की योजना एक माह पूर्व बनायी गई थी, लेकिन जब दोनों मरीज़ इस प्रक्रिया के लिए अस्‍पताल पहुंचीं, तो वे कोविड पॉजिटिव पायी गईं (उल्‍लेखनीय है कि इलाज के लिए निर्धारित प्रोटोकॉल्‍स के मुताबिक मरीज़ों की कोविड जांच की जाती है)।

ऐसे में, इस सर्जरी को एक महीने के लिए टालना पड़ा। कोविड-19 से स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के बाद, मरीज़ की ट्रांसप्‍लांट सर्जरी की दोबारा योजना बनायी गई। कोविड-19 रिकवर्ड मरीज़ों में ऑर्गेन ट्रांसप्‍लांट को लेकर कई किस्‍म के जोखिम हैं।

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इस मामले में, डोनर से रेसीपिएंट को इंफेक्‍शन का खतरा था, क्‍योंकि रेसीपिएंट इम्‍युनोसप्रेरेसेंट थीं जो संक्रमण का जोखिम बढ़ाने वाली स्थिति है।

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ट्रांसप्‍लांट से पहले, रेसीपिएंट और डोनर दोनों को अनेक जांच प्रक्रियाओं से गुजारा गया। जिनमें कार्डियाक, लंग्‍स, पल्‍मोनोलॉजी टेस्‍ट तथा दो बार आरटी-पीसीआर शामिल है। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मरीज़ किसी प्रकार की पोस्‍ट कोविड संबंधी जटिलता से ग्रस्‍त नहीं है।

मददगार साबित हुई टेलीमेडिसिन

मरीज़ के इलाज और स्‍वास्‍थ्‍यलाभ में टेलीमेडिसिन ने भी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभायी, क्‍योंकि डॉक्‍टरों ने उन्‍हें कोविड-19 संक्रमण तथा अस्‍पतालों में होने वाले अन्‍य प्रकार के संक्रमणों से बचाने के लिए अस्‍पताल नहीं आने की सलाह दी थी। लेकिन साथ ही, मरीज़ों की स्थिति पर नज़र बनाए रखने के लिए उन्‍हें कभी-कभी अस्‍पताल भी बुलाया जाता था।

डॉ संजीव गुलाटी, डायरेक्‍टर, नेफ्रोलॉजी एवं किडनी ट्रांसप्‍लांट, फोर्टिस हॉस्‍पिटल वसंत कुंज तथा प्रेसीडेंट इलेक्‍ट – इंडिया सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी ने बताया, ”इस मामले में कई तरह की चुनौतियां और जोखिम पेश आए। डोनर और रेसीपिएंट दोनों ही कोविड-19 से हाल में रिकवर हुई थीं।”

उपचार के दौरान टेलीमेडिसिन का सहारा लेना पड़ा। चित्र: शटरस्‍टॉक

वे आगे कहते हैं, “हमें इन दोनों मरीज़ों की सुरक्षा के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करना था कि डोनर को एनेस्‍थीसिया/सर्जरी संबंधी किसी किस्‍म की जटिलता या कोविड-19 रीइंफेक्‍शन का सामना न करना पड़े। इसके अलावा यह भी जरूरी था कि हेल्‍थकेयर स्‍टाफ को कोविड न हो। सर्जरी के बाद मरीज़ अब पूरी तरह से स्‍वस्‍थ हो चुकी हैं और उनकी किडनी भी सही प्रकार से काम कर रही है। उन्‍हें किसी तरह का इंफेक्‍शन नहीं हुआ है और न ही ट्रांसप्‍लांट ऑर्गेन रिजेक्‍शन का मामला सामने आया है।”

डॉ गुलाटी ने बताया, ”यह मामला अन्‍य अस्‍पतालों के लिए किडनी ट्रांसप्‍लांट के मामले में महत्‍वपूर्ण संदर्भ है, क्‍योंकि कोविड के चलते अभी तक अन्‍य किसी भी अस्‍पताल में ट्रांसप्‍लांट नहीं किए जा रहे थे। इससे पहले, मेडिकल लिटरेचर और अन्‍य स्‍थापित प्रोटोकॉल्‍स में कोविड 19 जैसी महामारी की पृष्‍ठभूमि में ऑर्गेन डोनेशन संबंधी कोई उल्‍लेख नहीं मिलता।”

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योगिता यादव

कंटेंट हेड, हेल्थ शॉट्स हिंदी। वर्ष 2003 से पत्रकारिता में सक्रिय। ...और पढ़ें

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