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SAD : जानिए क्या है लाइट थेरेपी, जो सर्दियों में उदासी से निजात दिला सकती है

जाड़े के दिनों में अचानक आपको कोई भी काम करने का मन नहीं कर सकता है। ज्यादा खाने को मन कर सकता है। ये सभी सीजनल अवसाद के लक्षण हैं। जानिये इसे ठीक करने की ख़ास थेरेपी।
बायोलॉजिकल रूप से अवसाद का धूप के साथ संबंध है। लाइट थेरेपी अवसाद दूर भगाता है। चित्र : शटरस्टॉक
स्मिता सिंह Updated: 20 Oct 2023, 09:56 am IST
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इस महीने न ऑफिस जाने का मन करता है और न घर का कोई काम निपटाने का। बाहर धूप भी नहीं निकल रही। सर्दियों में खिली हुई धूप मन खुश कर देती है। वातावरण में छाई हुई धुंध पूरे दिन के लिए मूड खराब कर देती है। ये सभी वाक्य हम जाड़े के दिनों में अनायास अक्सर कह देते हैं। हमें यह पता नहीं चल पाता है कि जाड़े के दिनों में मूड क्यों खराब हो जाता है? पर यह सच है कि धूप और मन यानी मूड का गहरा संबंध है।जाड़े के दिनों में तनाव, उदासी और एंग्जाइटी के इन लक्षणों को सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (Seasonal affective disorder) यानी सेड (SAD) कहा जाता है। इसे ठीक करने की एक ख़ास थेरेपी (light therapy for seasonal depression) है।

बिगड़े हुए मूड को कैसे ठीक किया जाए? मूड और धूप का क्या कनेक्शन है? इस दिलचस्प, लेकिन जरूरी विषय पर हेल्थ शॉट्स को जॉन हॉप्किंस यूनिवर्सिटी और वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में साइकिएट्री के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ऋषि गौतम ने विस्तार से बताया।

सामान्य अवसाद से अलग है मौसमी अवसाद (SAD)

किसी ख़ास सीजन में मूड खराब हो जाना सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) कहलाता है। यह एक प्रकार का अवसाद है। यह किसी विशेष मौसम या वर्ष के अंत में भी अनुभव किया जा सकता है। सीजनल अफेक्टिव डिसआर्डर (Seasonal Affective Disorder) सामान्य डिसआर्डर का ही एक प्रकार है। यह किसी ख़ास समय तक ही अनुभव किया जा सकता है। लेकिन सामान्य अवसाद लंबे समय तक बना रहता है। यह हमारे दैनिक जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर देता है।

सर्दियों में ज्यादा होता है सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर(SAD)

सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर किसी भी मौसम में अनुभव किया जा सकता है। लेकिन आमतौर पर यह सर्दियों में सबसे अधिक देखा जाता है। जाड़े की शुरुआत यानी अक्टूबर-नवम्बर से व्यक्ति के मूड में परिवर्तन होने लगता है। इसके कारण बिना किसी वजह के मन उदास रहने लगता है। कई दिन लगातार सुबह उठकर काम पर जाने का नहीं मन करता है। यहां तक कि रोजमर्रा के काम भी नहीं करने का मन करता है। व्यक्ति असमंजस में रहता है कि वह ऐसा क्यों महसूस हो रहा है?

मनचाहा काम नहीं कर पाने के कारण व्यक्ति हो जाता है अवसादग्रस्त (Depression)

डॉ. ऋषि गौतम बताते हैं, ‘दरअसल जाड़े की शुरुआत साल के अंत में होती है। अंतिम महीने में व्यक्ति यह सोचता है कि पूरे साल वह कौन-कौन सा कार्य नहीं कर पाया। स्कूलों में छुट्टियां शुरू होने के कारण वह परिवार और दोस्तों से मिलना चाहता है।

मनचाहा काम नहीं कर पाने के कारण व्यक्ति हो जाता है अवसादग्रस्त। चित्र शटरस्टॉक

त्योहार सेलीब्रेट करना चाहता है। किसी कारणवश यदि वह ऐसा नहीं कर पाता है, तो वह अवसादग्रस्त हो जाता है।’

क्या है अवसाद और धूप का कनेक्शन (Sunlight and Depression)

डॉ. ऋषि गौतम बताते हैं, ‘बायोलॉजिकल रूप से अवसाद का धूप के साथ संबंध है। सर्दियों में धूप की ड्यूरेशन और इंटेंसिटी दोनों कम हो जाती है। हमारे दिमाग में न्यूरोट्रांसमीटर होता है- सीरोटोनिन। सीरोटोनिन केमिकल हमारे मूड को रेगुलेट करता है। उसे सनलाइट एक्सपोज़र की बहुत जरूरत होती है। आंखों के रेटिना के माध्यम से उसे कितनी सनलाइट मिली, इसका पता चलता है। हम सभी लगातार बारिश के कारण मूड के खराब होने की बात कहते हैं। दरअसल ऐसा सेरोटोनिन के कारण होता है।’

धूप का एक्सपोज़र कम मिलने के कारण नींद नहीं आती है

सर्दियों में मूड ठीक रखने के लिए धूप का सेवन जरूरी है । चित्र : शटरस्टॉक

सर्दियों में धूप का एक्सपोज़र कम मिलने से दिमाग को समझ में नहीं आता है कि सेरोटोनिन कहां से प्रोडूस किया जाए। इसका सीधा इफ़ेक्ट हमारे मूड पर पड़ता है। इसकी वजह से नींद नहीं आती है। बेवजह भूख लगती रहती है। कार्बोहाइड्रेट खाने की इच्छा होती रहती है। इससे वजन बढ़ जाता है। इसके कारण शरीर को कई और परेशानियां भी होती हैं। सैड के कारण काम करने की इच्छा नहीं होती है।

क्या है वह थेरेपी, जिससे दिमाग की रोशनी की मांग की जा सकती है पूरी

डॉ. ऋषि गौत­म बताते हैं, ‘लाइट बॉक्स (light therapy lamp benefits) के माध्यम से दिमाग को रोशनी की खुराक दी जा सकती है। इसे लाइट थेरेपी (Light therapy) कहते हैं। मार्केट या ऑनलाइन लाइट बॉक्स की खरीद की जा सकती है। ध्यान यह रखना है कि बॉक्स की लाइट इंटेंसिटी 10, 000 लक्स (lux) से ऊपर होनी चाहिए।

चाय-कॉफ़ी के बाद इस लाइट बॉक्स के सामने बैठ जाएं। रोज आधा पौना घंटा उसके सामने बैठें। यदि मूड स्विंग अधिक होता है, तो दिन में दो बार इसके सामने बैठें। 1 घंटा सुबह और 1 घंटा शाम। अपने विचारों के साथ उसके सामने बैठें। इससे आपके दिमाग को यह किक मिलेगा कि आज की सनलाइट मिल गई। इससे सीरेटोनिन रिलीज़ होगा और आपका मूड भी बदल जाएगा। आप दिन भर अच्छा महसूस करेंगी। इसे पूरी सर्दियों में आजमाएं। जब तक कि आपका मूड इम्प्रूव नहीं हो जाए।

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स्मिता सिंह

स्वास्थ्य, सौंदर्य, रिलेशनशिप, साहित्य और अध्यात्म संबंधी मुद्दों पर शोध परक पत्रकारिता का अनुभव। महिलाओं और बच्चों से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करना और नए नजरिए से उन पर काम करना, यही लक्ष्य है। ...और पढ़ें

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