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हाउस हेल्प खांसती रहती थी और ध्यान ही नहीं दिया, जानिए कैसे एक महिला उद्यमी हुई टीबी से संक्रमित

दिनों दिन बढ़ता तनाव और अनियमित खानपान शरीर के इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता है, जिससे संक्रमाक रोगों का खतरा बढ़ने लगता है। वहीं ट्यूबरक्लोसिस की गिनती भी संक्रमाक रोगों में की जाती है, जिसकी शुरूआत मामूली खांसी से होती है। मगर समय पर रोग की पहचान न हो पाने के कारण अंकाक्षा नेगी इस रोग से ग्रस्त हुई पर अटूट हौंसले और हिम्मत की बदौलत चुनौती का डटकर मुकाबला भी किया।
Updated On: 23 Mar 2025, 05:43 pm IST
मामूली खांसी से शुरू होने वाली ट्यूबरक्लोसिस नाम की बीमारी को क्षय रोग या टीबी भी कहा जाता है

रोजमर्रा के जीवन में घर और ऑफिस को मैनेज करते करते व्यक्ति खुद का ख्याल रखना पूरी तरह से भूल चुका होता है, जिससे शरीर में देखते ही देखते कई शारीरिक समस्याओं का खतरा बढ़ने लगता है। फिर चाहे मामूली बुखार या खांसी-ज़ुकाम हो या फिर ट्यूबरक्लोसिस जैसा गंभीर रोग। मामूली खांसी से शुरू होने वाली ट्यूबरक्लोसिस (Tuberculosis) नाम की बीमारी को क्षय रोग या टीबी भी कहा जाता है, जिसने अकांक्षा नेगी को अपना शिकार बना लिया।

चौंकाने वाली बात ये है कि अकांक्षा कब और कैसे इस रोग से ग्रस्त हुई। हांलाकि पहले पहले वो भी इस समस्या के लक्षणों को समझ नहीं पा रही थीं। मगर फिर भी इस रोग से ग्रस्त होने पर न केवल उन्होंने विपरीत परिस्थितियों का डटकर सामना किया, बल्कि अपनी चुनौतियों को ताकत में तब्दील कर दिया। जानते हैं ट्यूबरक्लोसिस (Tuberculosis) से अकांक्षा नेगी ने कैसे जंग लड़ी और जीत हासिल की।

अक्सर हम लोग इस बात को भूल जाते हैं कि दिन भर के दौरान न जाने घर की हाउस हेल्प से लेकर ऑफिस में सहकर्मियों तक कितने लोग हमारे संपर्क में आते हैं। ऐसे में हाइजीन का ख्याल न रख पाना सेहत के लिए बड़े नुकसान का कारण बनने लगता है। अकांक्षा नेगी डिज़ाइन और रंग की संस्थापक’ हैं। ये एक ऐसा जाना माना ज्वेलरी ब्रांड है, जिसे बॉलीवुड सेलिब्रिटी और फैशन प्रेमी बेहद पसंद करते हैं।

इस रोग से ग्रस्त होने पर न केवल उन्होंने विपरीत परिस्थितियों का डटकर सामना किया, बल्कि अपनी चुनौतियों को ताकत में तब्दील कर दिया।

अकांक्षा कैसे हुई ट्यूबरक्लोसिस की शिकार (How Akanksha became a victim of tuberculosis)

अहमदाबाद में डिज़ाइन की पढ़ाई करते वक्त सन् 2014 में अकांक्षा ने घर पर मदद के लिए एक हाउस हेल्प को हायर किया। जो घर के सभी कार्य बखूबी कर रही थीं। कपड़े और बर्तन धोने के दौरान वो लगातार खांसती थीं, जिसे अकांक्षा भी कई बार नोटिस कर चुकी थीं।

अकांक्षा नेगी उस महिला की बीमारी से बेखबर थीं। देखते ही देखते कुछ दिनों के भीतर अकांक्षा में भी खांसी की समस्या बढ़ने लगी। वो बताती हैं कि उन्हें अब शाम को रोज़ाना बुखार होने लगता था और फिर एक दिन नाक से खून भी बहने लगा। लगभग 3 से 4 सप्ताह तक ये समस्या यूं ही बनी रही। देखते ही देखते रात में सांस फूलने की समस्या शुरू हो गई, जिससे उठना भी मुश्किल होने लगा था। सबसे पहले चेकअप करवाया और फिर सभी टेस्ट करवाए गए, जिसमें ट्यूबरक्लोसिस (Tuberculosis) जैसा संक्रामक रोग डायग्नोज हुआ। हांलाकि इस रोग को क्योर होने में 6 महीने का वक्त लगता है, मगर समय पर सभी दवाएं लेने के कारण ये रोग 4 महीने में ही खत्म हो चुका था।

समय पर सभी दवाएं लेने के कारण ये रोग 4 महीने में ही खत्म हो चुका था।

कोविड में फिर से लौटा ट्यूबरक्लोसिस रोग (Tuberculosis disease returned again in Covid)

2021 में जब देशभर के लोग कोविड से बेहाल हो रहे थे। उसी बीच अकांक्षा बताती हैं कि उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और खांसी बढ़ चुकी थी। ऐसे में उन्हें 9 से 10 दिन एडमिट रहना पड़ा। वो बताती है कि इम्यूनिटी लो हो चुकी थी। फिर दोबारा से दिसंबर 2021 से दोबारा कफिंग हाने लगी। अब अकांक्षा में ट्यूबरक्लोसिस (Tuberculosis) के लक्षण दोबारा दिखने लगे थे। सीटी स्कैन में लंग्स में प्रोबल्म पाई गई।

शरीर में कई बदलाव हुए महसूस (Body changes during Tuberculosis disease)

बहुत सारे टेस्ट करवाने के बाद टीबी की रिपोर्ट पॉज़िटिव आई। दवा लेने के एक महीने बाद डॉक्टर्स ने स्पूटम टेस्ट करवाया। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट या एमडीआर टीबी का टेस्ट करवाने के बाद 18 महीनों तक इलाज चला। इसमें 24 गोलियां एक दिन में खानी होती थीं। 6 घंटे में 20-20 मिनट के गैप पर दवाएं लेती थी।

इस दौरान शरीर में हीमोग्लोबिन डाउन हो चुका था। ऐसे में ब्लड चढ़ाया गया। इसके अलावा शरीर में मसल्स पेन और ज्वाइंट पेन की भी समस्या बनी हुई थी। दवाओं के साइड इफेक्ट भी होने लगे थे। 6 महीने बाद इसीजी हुईं। परिफ़ेरल न्यूरोपैथी की समस्या बढ़ने लगी। मैं पूरी तरह से टूट चुकी थी

हाइजीन का ख्याल न रख पाना सेहत के लिए बड़े नुकसान का कारण बनने लगता है।

पेरेंट्स और छोटी बहन ने दिया साथ 

अब मार्च 2023 में वापिस कोविड हो गया था। इसमें वेटलॉस और हेयरलॉस का सामना करना पड़ा। टीबी के दौरान और कोविड के बाद अकांक्षा का 30 किलो वज़न कम हो चुका था। लोगों से मिलना जुलना भी बंद कर चुकी थी। ऐसी स्थिति का मुकाबला करने के लिए मुझे पेरेंटस का पूरा सपोर्ट मिला। उन्होंने दिन रात मेरा ख्याल रखा और मुझे इस चैनौती का सामना करने के लिए भी मोटिवेट किया। पेरेंट्स के अलावा मेरी बहन भी मज़बूती से हर मुश्किल घड़ी में कंधे से कंधा मिलाकर मेरे साथ खड़ी रहीं। हर तरह के चेकअप और टेस्ट करवाने के बाद दवाओं को कोर्स खत्म हो गया और टीबी सितंबर 2023 खत्म हो गया था।

एक लंबी बीमारी के बाद अकांक्षा अपने जज़्बे और हिम्मत की बदौलत दोबारा से दुनिया से कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार हो गईं। उन्हें अपना लक्ष्य साफ नज़र आ रहा है। एमडीआर टीबी सर्वाइवर के रूप में उन्होंने विपरीत परिस्थितियों का डटकर सामना किया और हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी चुनौतियों को ताकत में बदला और साबित कर दिखाया कि जुनून और दृढ़ता से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। तीन साल बीतने के बावजूद भी अकांक्षा आज भी परिफ़ेरल न्यूरोपैथी से ग्रस्त हैं।

पेरेंट्स के अलावा मेरी बहन भी मज़बूती से हर मुश्किल घड़ी में कंधे से कंधा मिलाकर मेरे साथ खड़ी रहीं।

वो टीबी (Tuberculosis) पेशेंट्स को एक ही सलाह देती हैं कि उन्हें अपना इलाज बीच में नहीं छोड़ना चाहिए। हांलाकि कई दवाओं का सेवन करने से मानसिक तनाव की भी समस्या बढ़ जाती है। लेकिन नियमित रूप से इलाज करवाने और दवाओं को खाने से बीमारी से राहत मिल सकती है।

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लेखक के बारे में
ज्योति सोही

लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं।

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