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सेक्स पर बात करना मुश्किल तो है, पर उससे ज्यादा जरूरी है, बता रहीं हैं सेक्सुअल हेल्थ एडुकेटर करिश्मा स्वरूप

करिश्मा ने युवाओं, खासतौर से महिलाओं को अपनी जरूरतों और इच्छाओं को अभिव्यक्त करने के उद्देश्य से एक मुहिम की शुरूआत की है। वे मिथ्स को दूर कर सेक्स, आनंद, अतरंगता, संभोग, मासिक धर्म और सेक्सुअल हेल्थ पर बात कर रहीं हैं।
करिश्मा स्वरूप बता रहीं हैं क्यों जरूरी है भारतीय समाज में यौन स्वास्थ्य पर खुल कर बात करना।
टीम हेल्‍थ शॉट्स Updated: 6 Apr 2023, 14:38 pm IST
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भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला एक ऐसा देश है, जहां लोग अब भी सेक्स के बारे में बात करते झिझकते हैं। हांलाकि कभी कभार इस पर कुछ ऐसे स्वर ज़रूर सुनाई देते हैं, जो इस मुद्दे पर अपनी विचारधारा रखने की हिम्मत रखते हैं। ऐसी ही एक आवाज है सेक्सुअल हेल्थ एडुकेटर करिश्मा स्वरूप (sex health educator Karishma Swarup) की, जो न केवल लोगों को सेक्स के बारे में शिक्षित कर रही हैं, बल्कि भारत में सेक्सुएलिटी के इर्द गिर्द बुने टैबूज़ को भी तोड़ने की कोशिश कर रहीं हैं।

अपने कॉलेज के दिनों में एक छात्र सेक्सुअल हेल्थ एडुकेटर से मिलने के बाद करिश्मा का पूरा जीवन बदल गया। उस वक्त करिश्मा को ये एहसास हुआ कि वे लोगों को उस विषय पर एजुकेट करने की कोशिश कर रही हैंं, जिसे पेट्रीफाइंग माना जाता था। साथ ही कामुकता के बारे में खुलकर बोलने वाले लोगों को नीचा माना जाता है। करिश्मा ने युवाओं, खासतौर से महिलाओं को अपनी आवाज उठाने और अपनी जरूरतों और इच्छाओं को अभिव्यक्त करने के उद्देश्य से एक मुहिम की शुरूआत की। करिश्मा मिथ्स को दूर करने और सेक्स, आनंद, अतरंगता, संभोग, मासिक धर्म और सेक्सुअल हेल्थ के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने के लिए एक इंस्टाग्राम पेज चला रही हैं – जिसे @talkyounevergot नाम दिया गया है।

हेल्थ शॉट्स के साथ इस विशेष बातचीत में, करिश्मा स्वरूप ने एक सेक्स एडुकेटर के रूप में अपनी चुनौतियों, संघर्षों और आगे बढ़ने की रणनीति के बारे में बात कर रहीं हैं। साथ ही ट्रोलर्स और आलोचना करने वालों से कैसे निपटना है, यह भी।

करिश्मा अपने प्रयासों के ज़रिए सेक्सुएलिटी के इर्द गिर्द बुने टैबूज़ को तोड़ने की कोशिश कर रहीं हैं।

यौन स्वास्थ्य शिक्षक बनने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?

करिश्मा स्वरूप बताती हैं कि अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी से तालीम हासिल करने के दौरान उनका सफर एक सेक्सुअल हेल्थ एजुकेटर के तौर पर आरंभ हुआ। पहले सेमेस्टर के दौरान मेरी मुलाकात एक ऐसे छात्र से हुई, जो हाई स्कूल के छात्रों को सेक्स एजुकेशन दिया करता था। ये जानकर मैं वाकई अंचभित हो गई थी। दरअसल, मेरी पढ़ाई एक ऐसी कर्सवेटिव हाई स्कूल में हुई थी, जहां बायोलॉजी के बारे में तो चर्चा होती थी, मगर सेक्सुएलिटी के विषय पर कभी भी खुलकर बात नहीं हुई।

समय गुज़रता गया और तकरीबन एक साल बाद, मुझे एहसास हुआ कि मुझे इस बारे में और जानकारी एकत्रित करनी चाहिए। इसके चलते मैंने अमेरिका की एक बड़ी आर्गनाइजे़शन प्लान्ड पेरेंटहुड के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया और हाई स्कूल के छात्रों को सेक्स एजुकेशन देनी शुरू की ।

वास्तव में सेक्स सकारात्मकता या सेक्स पॉजिटिविटी क्या है?

सेक्स पॉजिटिविटी कामुकता के आसपास फैली नेगेटिविटी को दूर करने के लिए चलाया गया एक मूवमेंट है। इसके तहत ये जानना आसान होता है कि लोगों की नजऱ में सेक्सुएलिटी किसे कहते हैं। इसका मतलब सेक्स करना हो सकता है या फिर सेक्स नहीं भी हो सकता है। कुछ के हिसाब से मास्टरबेशन को सेक्स् से जोड़कर देखा जा सकता है। सेक्स पॉजिटिविटी का मतलब उन वर्जनाओं या टैबूज़ को तोडना है, जो हमें इस मुद्दे पर खुलकर बात करने से रोक रहा है। ये समझना होगा कि ये चीज़ पूरी तरह से नॉर्मल है। एक ऐसा विषय जिस पर लोग विचार कर सकते हैं, सीख सकते हैं और आगे बढ़कर बात कर सकते हैं।

सेक्स के बारे में सबसे बड़ी वर्जना क्या है जो अभी भी मौजूद है?

हमारे समाज में ऐसी अवधारण है कि वर्जिनिटी को प्योर और संरक्षित करके रखना ज़रूरी है। ये एक महिला के जीवन पर गंभीर प्रभाव डालती है। जब हम इस बारे में बात करते हैं, तो हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि हमारे देश में सेक्स को संस्कृति से जोड़कर देखा जाता है। यहां पर अगर कोई महिला बच्चे पैदा करने के अलावा किसी और कारण से सेक्स कर रही है, तो उसे गलत समझा जाता है और उसके प्रति समाज का रवैया नकारात्मक हो जाता है। जब भी सेक्स को लेकर समाज में बढ़ रहे मतभेदों पर बात होती है, तो धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू को इससे अलग नहीं किया जाता है।

यौन स्वास्थ्य शिक्षक के रूप में अब तक आपके सामने सबसे बड़ी चुनौतियां क्या हैं?

सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक था इंस्टाग्राम जैसे मंच पर अपनी पहचान को बनाए रखना। दरअसल, महामारी के दौरान, हम लोगों का काम ऑनलाइन होने लगा था। इसके ज़रिए हम आसानी से बहुत से लोगों तक पहुंच सके और उनसे बातचीत कर पाए। बहुत से लेगों तक पहुंचने का अर्थ ये कतई नहीं था कि मैनें उन्हें इस विषय पर कटाक्ष करने का मौका दिया है। इसके चलते मुझे लंबे वक्त तक डीएम और गैरज़रूरी इमेजिज़ के ज़रिए ट्रोलिंग को झेलना पड़ा।

कुछ कारणों से इंस्टाग्राम यौन शिक्षा को अनुचित मानता है। इसके चलते मुझे सेंसरशिप से होकर गुज़रना पड़ा। दरअसल, यह एक ऐसा मंच है, जहां पर इस बात पर ज़ोर दिया जाता है कि कोई वीडियो कैसा दिखता है। उनके मुताबिक इस तरह के विडियोज़ किसी भी मेंटल हेल्थ को खराब कर सकता है। इसके चलते सोशल मीडिया पर कई बार ट्रोल भी होना पड़ा। इस तरह की कंडीशन से निपटने के लिए मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ खड़ा रहा।

क्या उदार समाज (अमेरिका) की तुलना में अधिक रूढ़िवादी समाज (जैसे भारत) के दर्शकों में भारी अंतर था?

पहले पहल जब मैं भारत वापिस लौटी, तो मुझे लगा कि मुझे मिलने वाले प्रश्नों के प्रकार और लोगों को जिन चीजों के बारे में जानने की उत्सुकता हैं, उनमें बहुत अंतर होगा। फिर समय के साथ एहसास हुआ कि यहां भी लोग उसी प्रकार के कांटेंट पढ़ रहे है, जैसा अमेरिका में पढ़ा जा रहा है। चाहे आप अमेरिका में हैं या आप भारत में हैं, ये सेक्स को लेकर लोगों में जो मिथ्स है, वो एक ही जैसे हैं।

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अमेरिका में, जो एक बड़ा अंतर देखने को मिला, वो ये है कि कंडोम के बाउल के साथ हम किसी भी क्लासरूम में एंटर कर सकते हैं। इसके अलावा इस विषय पर खुलकर बातचीत भी कर सकते हैं। वहीं भारत में बहुत सी पाबंदियों के चलते स्कूल और इस्टीटयूटस में सेक्स पर बातचीत करने को लेकर संकोच का अनुभव किया जाता है।

करिश्मा ने महिलाओं को अपनी इच्छाओं को अभिव्यक्त करने के उद्देश्य से एक मुहिम की शुरूआत की है।

आपकी नजर में यौन स्वास्थ्य के बारे में अब भी सामाजिक रूप से हम कहां पिछड़ रहे हैं?

सेक्सुअल हेल्थ की जब बात आती है, तो भारत उसमें काफी पिछड़ा हुआ नज़र आता है। हमारी सोसायटी में हर ओर टैबूज़ नज़र आते हैं। बहुत कम जगह है, जहां सेक्स के बारे में खुलकर और नॉन जज्मेंटल बात की जाती हैं। इतना ही नहीं, अगर आप डाक्टर्स के संपर्क में भी आते हैं, तो पाएंगे कि वे मानते है कि अगर आप शादीशुदा नहीं है, तो आपको सेक्स के बारे में कोई जानकारी नहीं होगी और न ही आप सेक्सुअली एक्टिव होंगे। इस बात को कन्फर्म किए बगैर वे आपसे कई प्रकार की जानकारियां साझी करने लगते हैं।

दरअसल, हमारे समाज में युवा यौन रूप से सक्रिय तो हैं, मगर उनके पास देखभाल करने के उपाय नहीं हैं। अरबन एलीट सोसायटी में भी यही समस्या देखने को मिलती है। वहीं, जब रूरल सेक्सुअल हेल्थ की जब बात आती है, तो ये पूरी तरह से अलग मानी जाती है। हमारे देश ने राज्यों में परिवार नियोजन, गर्भनिरोधक, जनसंख्या को कम करने आदि में बहुत निवेश किया है। मगर लोगों की सेक्सुअल हेल्थ को लेकर कोई महत्व नहीं दिया गया है। ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों तक अब भी पीरियड साइकिल हाइजीन प्रोडक्टस और स्वच्छ बाथरूम जैसी बुनियादी चीजें नहीं पहुंची है। सोचने वाली बात ये है कि जब तक वे मासिक धर्म पर बात करने में सक्षम नहीं है, तो वे यौन स्वास्थ्य से जुड़ी बातों पर तर्क वितर्क नहीं कर पाएंगे।

उन महिलाओं के लिए आपका क्या संदेश है जो यौन शिक्षा को एक सफल व्यवसाय के तौर पर अपनाना चाहती हैं?

करिश्मा कहती हैं कि अपनी आवाज पर भरोसा करो और आज की महिलाओं के लिए यही मेरा मैसेज है। कई बार, हम समाज में मौजूद पितृसत्तात्मक प्रणाली से दुखी और निराश महसूस करने लगते हैं। वहीं दूसरी ओर एक मां का होना और देखभाल करना एक खूबूसरत चीज़ है। मगर फिर भी बहुत सी बातें इस बात पर आकर रूक जाती हैं कि एक महिला क्या चाहती है।

हमें सोचना चाहिए कि एक महिला क्या करना चाहती है, क्या महिलाओं की जल्दी शादी होनी चाहिए, उन्हें किससे शादी करनी है, क्या वह हिटिरोसेक्सुअल है और क्या नहीं। कई बार महिलाओं को गहराई से पता होता है कि वे क्या चाहती हैं और क्या नहीं। मगर वे खुद पर भरोसा करने में असमर्थ हो जाती हैं। महिलाओं को अपनी आवाज उठाने, गुस्सा करने, दुखी होने और निराश होने के सभी अधिकार हैंं। क्योंकि अगर आप ऐसा नहीं करेंगे, तो कोई और आपके लिए स्टैण्ड नहीं लेगा।

(करिश्मा स्वरूप को सेक्सुअल हेल्थ एडुकेटर श्रेणी में हेल्थ शॉट्स शी स्लेज़ अवार्ड्स के लिए नामांकित किया गया है। उनके लिए वोट करने के लिए या हमारे अन्य उम्मीदवारों के बारे में जानने के लिए, कृपया इस लिंक पर क्लिक करें – शी स्लेज अवॉर्ड्स!

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